पॉजिटिव स्टोरी- ऑनलाइन पलंग-कुर्सी बेचकर 300 करोड़ का बिजनेस: 50 हजार कर्ज लेकर शुरू किया काम, आज हर महीने 4 हजार ऑर्डर h3>
‘1980 के आसपास की बात है। उस वक्त राजस्थान का सरदारशहर ज्यादा डेवलप नहीं था। बाहर जाकर नौकरी, काम-धंधा करने की भी कोई अपॉर्च्युनिटी नहीं थी। बड़ा परिवार था, लिहाजा दादा ने शहर में ही एक छोटी-सी हार्डवेयर की दुकान खोल ली।
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पहले से उनके कुछ जानने वाले आसपास के गांव से लकड़ी खरीदकर बेचा करते थे। दादा ने भी दुकान चलाने के साथ गांव-गांव जाकर लकड़ी खरीदना शुरू कर दिया। कुछ ही साल बाद वे लकड़ी की खरीद-बिक्री करने में माहिर हो गए।
1991 का साल बीत रहा था। पापा ने दादा के साथ मिलकर लकड़ी से बने प्रोडक्ट को बेचने की दुकान खोल ली। उन्होंने पलंग, कुर्सी, टेबल जैसे प्रोडक्ट बनाने शुरू कर दिए। पहले तो आसपास के लोग ही लकड़ी का सामान खरीदकर ले जाते थे, फिर आसपास के शहर, दूसरे राज्यों से भी लोग आकर लकड़ी का सामान खरीदने लगे।’
कुर्सी, पलंग, सोफा जैसे फर्नीचर को ऑनलाइन बेचने वाली 300 करोड़ की कंपनी ‘सराफ फर्नीचर’ के को-फाउंडर रघुनंदन सराफ अपने पुराने दिनों को याद कर रहे हैं। फैक्ट्री में आसपास लकड़ी, फर्नीचर आइटम्स और पट्टी का अंबार लगा हुआ है।
रघुनंदन सराफ राजस्थान के चुरू जिले स्थित सरदारशहर के रहने वाले हैं।
मेरे एक जानने वाले ने रघुनंदन सराफ के बारे में बताया था। कहा था कि राजस्थान के सरदारशहर की एक कंपनी पलंग-कुर्सी जैसे फर्नीचर आइटम्स बेचकर 300 करोड़ का बिजनेस खड़ा कर चुकी है।
दिल्ली से 300 किलोमीटर की दूरी तय करने के दौरान मैं बार-बार यही सोच रहा था कि शायद इस शहर में लकड़ी की पैदावार ज्यादा होगी। क्वालिटी भी बेहतर होगी, इसलिए कंपनी इतने छोटे-से शहर में इतना बड़ा बिजनेस कर रही है।
पहुंचने पर शहर का हाल ऐसा मालूम पड़ता है कि रास्ते में गलती से गाड़ी का शीशा नीचे उतर जाए, तो धुल-मिट्टी से सन जाएं। हाल-ही में डेवलप हुए कुछ इंडस्ट्रियल एरिया नजर आ रहे हैं।
रघुनंदन सराफ कहते हैं, ‘10 साल पहले तक यहां कुछ भी नहीं था। अभी कुछ सालों में ही थोड़ा-बहुत डेवलपमेंट हुआ है। 2009 में 50 हजार रुपए से मैंने ऑनलाइन फर्नीचर बेचने की शुरुआत की थी। पहले फर्नीचर का फैमिली बिजनेस था। आज हर महीने 4 हजार से अधिक ऑर्डर की सप्लाई कर रहे हैं। 300 करोड़ की वैल्यूएशन पर कंपनी खड़ी है।’
रघुनंदन सराफ की आज 10 फैक्ट्री हैं। यहीं से एक्सपोर्ट का भी बिजनेस चलता है।
यहां लकड़ी की पैदावार ज्यादा है क्या? मैं पहला सवाल रघुनंदन से यही करता हूं।
रघुनंदन कुछ लकड़ी का बोटा दिखाते हुए कहते हैं, ‘यहां कुछ नहीं होता है। सारी लकड़ियां पंजाब और दूसरे राज्यों से आती हैं। सरदारशहर की मिट्टी में विश्वास है। इस वजह से लकड़ी और चांदी का बिजनेस ठोक-बजाकर होता है।
किसी ने सरदारशहर में आकर कोई सामान लकड़ी या चांदी से रिलेटेड खरीदा, मतलब वह सौ फीसदी पक्का। सरदारशहर से सटा हुआ मिलिट्री बेस कैंप है। आर्मी के लोगों ने सबसे पहले यहां से लकड़ी से बने सामान खरीदने शुरू किए थे, फिर माउथ पब्लिसिटी से बिजनेस बढ़ने लगा।
पापा-दादा, लकड़ी के साथ-साथ फर्नीचर बनाकर बेचने लगे। शुरुआत में आर्मी वाले आते थे, ज्यादातर वही लोग खरीदते थे। फिर किसी ने पापा को बताया कि एक्सपोर्ट करने से बिजनेस और बढ़ेगा।
अब घर में तो किसी को अंग्रेजी आती नहीं थी। विदेश में किसी से बात करने के लिए अंग्रेजी पहली जरूरत थी। पापा और ताऊजी ने मुझे दुकान पर ले जाना शुरू किया। मैं कस्टमर से बातचीत करता था। धीरे-धीरे फर्नीचर के एक्सपोर्ट का बिजनेस चल पड़ा।’
जब रघुनंदन की फैमिली ने फर्नीचर एक्सपोर्ट करना शुरू किया था, तो वह फॉरेन के क्लाइंट से बातचीत करने में मदद करते थे।
आप सरदारशहर में ही थे?
‘मैं घर का पहला बच्चा था, जिसे पढ़ने के लिए बाहर भेजा गया। 7वीं के बाद जयपुर गया फिर दिल्ली। वहीं से पूरी पढ़ाई की। 2004 के आसपास की बात है। मेरे एक ताऊजी की रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई।
वह हमारी फैमिली के लिए बड़ा झटका था। पापा का हमेशा कहना था, पढ़ो-लिखो कहीं भी, लेकिन रहो हमेशा फैमिली के साथ। बचपन से लाइफ में फैमिली के रोल की बातें घर कर गई थीं। सरदारशहर में रहकर दूसरा कोई काम करना पॉसिबल ही नहीं था।
मैं यही सोचता था पढ़-लिखकर वापस गांव आना है और फैमिली बिजनेस संभालना है। 2009 की बात है, साल बीत रहा था। मैंने दिल्ली के श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से एमबीए कम्प्लीट किया ही था कि घर पर कुछ घटनाएं हुईं।
आनन-फानन में घर बुला लिया गया। मैंने सोचा था कि दिल्ली में ही पहले कुछ करूंगा, फिर वापस गांव जाऊंगा। फैमिली बिजनेस जॉइन करने के अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नहीं था।
रघुनंदन की कंपनी ‘सराफ फर्नीचर’ हर तरह के नए-नए फर्नीचर आइटम्स को डिजाइन करती है।
2009-10 में ऑनलाइन फर्नीचर का बिजनेस?
‘उस वक्त तो मेरे गांव में इंटरनेट भी नहीं था। शहर जाकर कैफे में बैठकर इंटरनेट चलाते थे। मैंने दिल्ली में रहकर पढ़ाई की थी, इसलिए ये समझ गया था कि आने वाला वक्त ऑनलाइन का ही है।
एक रोज पापा से कहा कि फर्नीचर का ऑनलाइन बिजनेस करना चाहता हूं। वे चौंक गए। उनका कहना था- ऑनलाइन खरीदेगा कौन? फिर उन्होंने कहा- खर्चा कितना आएगा? सच कहूं तो मुझे भी नहीं पता था कि इस बिजनेस को शुरू करने में कितना पैसा लगेगा।
ज्यादा पैसा मांगता, तो शायद घर से परमिशन भी नहीं मिलती। मैंने बोला- 50 हजार रुपए। पापा मान गए। उस समय 16 हजार में सिर्फ इंटरनेट कनेक्शन लगवाया था। उसके बाद खुद से वेबसाइट डिजाइन की और प्रोडक्ट की फोटो अपलोड करके बेचना शुरू किया।
सिटी के भीतर एक भी कूरियर सर्विस वाले नहीं थे। मैं जयपुर जाकर कूरियर वालों के हाथ-पैर जोड़ता, उन्हें सरदारशहर में अपनी दुकान पर लाता। वे देखते ही कहते- यह कोई कागज, कलम, किताब, कपड़ा है जो समेटकर बोरी में डालकर पहुंचा दें। फर्नीचर कैसे जाएगा।
मैं खुद अपने स्टाफ के साथ मिलकर यहां से 250 किलोमीटर दूर जयपुर जाकर कूरियर करवाता। उस वक्त साउथ से ज्यादा ऑर्डर आते थे। धीरे-धीरे जब इंडिया में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म आने लगे, तब यह और आसान हो गया।’
रघुनंदन के साथ उनकी टीम के कुछ लोग। फेस्टिवल सीजन में रघुनंदन की फैक्ट्री में दो शिफ्ट में काम होता है।
रघुनंदन मुझे अपने शोरूम में लेकर चलते हैं। यहां अलग-अलग डिजाइन में दर्जनों सोफे, बेड, टेबल, कबर्ड जैसे फर्नीचर रखे हुए हैं। कहने लगे, ‘हर महीने 4 हजार के करीब ऑर्डर आते हैं। एक फैक्ट्री से हमने शुरुआत की थी, 2009 तक दो फैक्ट्री और 60-70 लोग काम करते थे। आज 10 फैक्ट्रियां हैं और 2500 के करीब स्टाफ है।
ये सब एक दिन में नहीं हुआ है। कहते हैं न जो मार्केट में दिखता है, वही बिकता है। हमने भी इसी फॉर्मूले को अप्लाई किया। 2015 के बाद से हमने बड़े-बड़े मेट्रोपोलिटन सिटी में ऑफलाइन आउटलेट खोलने शुरू किए।
आज दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, जयपुर जैसे शहर में हमारे ऑफलाइन आउटलेट्स हैं। इससे हमारी माउथ पब्लिसिटी हुई, जिससे ऑनलाइन कस्टमर भी आने लगे। हमने लाइफटाइम वारंटी देना शुरू किया।’
रघुनंदन की फैक्ट्री में केमिकल प्रोसेस का प्लांट लगा हुआ है। सामने एक ट्रक से लकड़ी के पट्टे उतारे जा रहे हैं। वे कहते हैं, ‘इसी प्लांट में लकड़ी का केमिकल प्रोसेस होता है, जिसकी वजह से दीमक नहीं लगती।
पंजाब, बिहार जैसे अलग-अलग राज्यों से लकड़ी आती है। फिर यहां के कारीगर डिजाइन के मुताबिक प्रोडक्ट तैयार करते हैं।’
1. पॉजिटिव स्टोरी- साड़ी के फॉल-अस्तर से डेढ़ करोड़ का बिजनेस:15 साल कॉर्पोरेट जॉब की, पत्नी की 3 लाख की सेविंग्स से बनाई कंपनी
‘पाली का साड़ी फॉल, अस्तर, रूबिया, पॉपलीन देशभर में मशहूर है। मैं इसी तरह का कारोबार कर रहे अखिलेश जैन से मिलने आया हूं। सुबह के 10 बज रहे हैं। एक फैक्ट्री में अलग-अलग कलर में दर्जनों कपड़े के गट्ठर रखे हुए हैं। सामने एक शेड में 200 मीटर के थान के कपड़े को वर्टिकल टांगकर सुखाया जा रहा है।
अखिलेश इशारा करते हुए कहते हैं, ‘अभी ये कपड़े जोधपुर फैक्ट्री से आ रहे हैं। पाली से जोधपुर 60 किलोमीटर है। सूखने के बाद इसी कपड़े को अलग-अलग साइज में काटकर साड़ी के फॉल, अस्तर के कपड़े, पॉपलीन-रूबिया बनाया जाता है।’ पढ़िए पूरी खबर
2. पॉजिटिव स्टोरी- 3 महीने में 7 करोड़ का बिजनेस:जॉब छोड़कर शुरू की कंपनी, 10 कॉलेज के 1500 स्टूडेंट को स्किल्ड किया
‘हमारा काम ही है कॉलेज से पास होने वाले बच्चों को स्किल्ड करके कॉर्पोरेट इंडस्ट्री के लायक बनाना है। अभी तक हम 10 से ज्यादा कॉलेज के 1500 से अधिक स्टूडेंट्स को स्किल्ड कर चुके हैं। इस जर्नी की शुरुआत 2016 में हुई थी। हालांकि हमने 2022 के बाद इस पर काम करना शुरू किया। इससे पहले तक हम बैंकिंग सेक्टर के लिए काम कर रहे थे। सॉफ्टवेयर बनाते थे।’ पढ़िए पूरी खबर