पिछले तीन दशक से खत्म नहीं हो रहा इंदौर का डेड एंड | Indore’s dead end is not ending for the last three decades | Patrika News h3>
विडंबना यह है कि इन प्रोजेक्ट पर न तो रेल मंत्रालय गंभीरता दिखा रहा है और न शहर के जनप्रतिनिधि। इनमें से एक प्रोजेक्ट का तो सर्वे ही 26 साल से चल रहा है। अन्य प्रोजेक्ट अब भी कागजों तक ही सीमित है। जिन प्रोजेक्ट का काम शुरू हो चुका है, वह भी कछुआ चाल से आगे बढ़ रहे हैं। दो प्रोजेक्ट को जिंदा रखने के लिए बजट में हर साल टोकन राशि एक-एक हजार रुपए दी जा रही है। 6 हजार रुपए इन प्रोजेक्ट को बजट में दिए गए।
इंदौर-खंडवा रेल प्रोजेक्ट: 26 वर्ष से चल रहा सर्वे
वर्ष 2008 में रतलाम-इंदौर-महू-सनावद-खंडवा-अकोला बड़ी लाइन प्रोजेक्ट को रेलवे ने विशेष दर्जा दिया। यह प्रोजेक्ट जब मंजूर हुआ था, तब लागत 1400 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 4000 करोड़ रुपए हो गई है। महज महू-सनावद प्रोजेक्ट में ही 2400 करोड़ से ज्यादा खर्च होने का अनुमान है। महू-सनावद खंड में ग्रेडिएंट बदलने के लिए पहला सर्वे 1996 में शुरू हुआ। इसमें गलती की वजह से दूसरा सर्वे हुआ। इस सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद फाइनल लोकेशन सर्वे सितंबर 2021 में शुरू हुआ और इसी माह पूरा होना था, लेकिन अब फिर से सर्वे किया जाएगा। रेल लाइन सर्वे से लेकर जमीन अधिग्रहण सर्वे का काम 31 मई तक करना था। अब काम दूसरी कंपनी को सौंपा गया है, जो पांच महीने में पूरा करेगी। जानकारों का कहना है कि बारिश से सर्वे में परेशानी आएगी। जमीन अधिग्रहण भी अटक जाएगा।
इंदौर-मनमाड़ रेल प्रोजेक्ट: स्वीकृति का ही इंतजार
इंदौर-मनमाड़ रेल प्रोजेक्ट वर्ष 2017 में स्वीकृत हुआ तब इसकी लागत करीब 10 हजार करोड़ थी। वर्ष 2018 में तय किया गया कि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र राज्य सरकारें और जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) के आपसी सहयोग से इसे बनाया जाएगा। इस आशय का एमओयू साइन किया गया। ये भी तय किया गया कि प्रोजेक्ट लागत का 15 प्रश महाराष्ट्र सरकार, 15 प्रश मध्यप्रदेश सरकार, 55 प्रश जेएनपीटी और 15 प्रश जहाज रानी मंत्रालय द्वारा वहन किया जाएगा। इसके बनने से इंदौर-मुंबई के बीच की दूरी 250 किमी कम हो जाएगी। उत्तर भारत और दक्षिण भारत जाने में भी कम समय लगेगा। मध्य रेलवे के कुछ हिस्से में पुल पुलियाओं के टेंडर निकाले गए हैं। हाल ही में रेलवे ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को शुरू करने की स्वीकृति नहीं मिली है। ऐसे में मनमाड़-इंदौर रेललाइन संघर्ष समिति ने न्यायालय जाने की तैयारी में है।
इंदौर-बुधनी-जबलपुर प्रोजेक्ट: सर्वे अधूरा
इंदौर-बुधनी नई रेल लाइन प्रोजेक्ट 2018-19 में स्वीकृत हुआ था। अब तक बुधनी की तरफ से सिर्फ छोटे पुल-पुलियाएं ही बन पाए हैं, जबकि स्वीकृति के वक्त इसे 31 मार्च 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य था। 3262 करोड़ के प्रोजेक्ट में अब तक 90 करोड़ रुपए ही मिले हैं। इसमें ज्यादातर राशि खर्च भी हो चुकी है। अब रेल विकास निगम लिमिटेड को बड़े फंड की जरूरत है, क्योंकि इस लाइन के लिए 1600 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होना है। इसके लिए कम से कम 450 करोड़ चाहिए। अधिकारियों का मानना है कि डेढ़ साल में जमीन अधिग्रहण पूरा होगा। दावा है कि जमीन अधिग्रहण के बाद चार-पांच साल में काम पूरा किया जाएगा। यह पूरा प्रोजेक्ट पश्चिम मध्य रेलवे की मॉनिटरिंग में होगा। इस प्रोजेक्ट में 50 फीसदी राशि राज्य सरकार और 50 फीसदी केंद्र सरकार देगी। प्रोजेक्ट पूरा होने पर 49 लाख रोजगार मिलने का दावा है।
दाहोद-इंदौर रेल प्रोजेक्ट: दो साल से काम बंद
वर्ष 2007-08 में दाहोद-इंदौर रेल प्रोजेक्ट 678.54 करोड़ की लागत से स्वीकृत किया था। जून 2012 में रेलवे बोर्ड ने 1640.04 करोड़ स्वीकृत किए। दाहोद-इंदौर वाया सरदारपुर-झाबुआ-धार रेल लाइन प्रोजेक्ट की कुल लंबाई 204.76 किमी है। इंदौर-राऊ 12 किमी व राऊ-टीही 9 किमी का काम जून 2016 व मार्च 2017 में कार्य पूरा होकर 21 किमी तैयार है। मई-2020 से इस प्रोजेक्ट का काम बंद है।
छलका था ताई का दर्द
चार वर्ष पहले रेलवे के एक आयोजन में इंदौर स्टेशन पर एक कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष रहते हुए पूर्व सांसद सुमित्रा महाजन का भी लंबित रेल परियोजनाओं को लेकर दर्द छलक चुका है। उन्होंने तब इंदौर-खंडवा रेल प्रोजेक्ट में देरी को लेकर दु:खी मन से यहां तक कह दिया था कि अपने जीवनकाल में ही वह इस प्रोजेक्ट को पूरा होते देखना चाहती हैं।
अब बोल रहे स्वीकृति नहीं मिली 15 साल के संघर्ष के बाद इंदौर-मनमाड़ लाइन को रेलवे ने मंजूरी दी। 10 हजार करोड़ की इस परियोजना में मप्र और महाराष्ट्र सरकार राशि के लिए मंजूरी दे चुके हैं। रेलवे ने हाल ही में जवाब दिया है कि इस प्रोजेक्ट के लिए स्वीकृति नहीं मिली है। हम न्यायालय में मामला ले जाएंगे।
-मनोज मराठे, अध्यक्ष, इंदौर-मनमाड़ संघर्ष समिति
खाता चालू, इंतजार लंबा
55 से ज्यादा ट्रेनों का संचालन होता है इंदौर से 250 किमी कम हो जाएगी इंदौर-मुंबई की दूरी 450 करोड़ चाहिए जमीन अधिग्रहण के लिए एक प्रोजेक्ट में
49 लाख लोगों को मिल सकता है रोजगार प्रोजेक्ट पूरा होने पर
विडंबना यह है कि इन प्रोजेक्ट पर न तो रेल मंत्रालय गंभीरता दिखा रहा है और न शहर के जनप्रतिनिधि। इनमें से एक प्रोजेक्ट का तो सर्वे ही 26 साल से चल रहा है। अन्य प्रोजेक्ट अब भी कागजों तक ही सीमित है। जिन प्रोजेक्ट का काम शुरू हो चुका है, वह भी कछुआ चाल से आगे बढ़ रहे हैं। दो प्रोजेक्ट को जिंदा रखने के लिए बजट में हर साल टोकन राशि एक-एक हजार रुपए दी जा रही है। 6 हजार रुपए इन प्रोजेक्ट को बजट में दिए गए।
इंदौर-खंडवा रेल प्रोजेक्ट: 26 वर्ष से चल रहा सर्वे
वर्ष 2008 में रतलाम-इंदौर-महू-सनावद-खंडवा-अकोला बड़ी लाइन प्रोजेक्ट को रेलवे ने विशेष दर्जा दिया। यह प्रोजेक्ट जब मंजूर हुआ था, तब लागत 1400 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 4000 करोड़ रुपए हो गई है। महज महू-सनावद प्रोजेक्ट में ही 2400 करोड़ से ज्यादा खर्च होने का अनुमान है। महू-सनावद खंड में ग्रेडिएंट बदलने के लिए पहला सर्वे 1996 में शुरू हुआ। इसमें गलती की वजह से दूसरा सर्वे हुआ। इस सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद फाइनल लोकेशन सर्वे सितंबर 2021 में शुरू हुआ और इसी माह पूरा होना था, लेकिन अब फिर से सर्वे किया जाएगा। रेल लाइन सर्वे से लेकर जमीन अधिग्रहण सर्वे का काम 31 मई तक करना था। अब काम दूसरी कंपनी को सौंपा गया है, जो पांच महीने में पूरा करेगी। जानकारों का कहना है कि बारिश से सर्वे में परेशानी आएगी। जमीन अधिग्रहण भी अटक जाएगा।
इंदौर-मनमाड़ रेल प्रोजेक्ट: स्वीकृति का ही इंतजार
इंदौर-मनमाड़ रेल प्रोजेक्ट वर्ष 2017 में स्वीकृत हुआ तब इसकी लागत करीब 10 हजार करोड़ थी। वर्ष 2018 में तय किया गया कि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र राज्य सरकारें और जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) के आपसी सहयोग से इसे बनाया जाएगा। इस आशय का एमओयू साइन किया गया। ये भी तय किया गया कि प्रोजेक्ट लागत का 15 प्रश महाराष्ट्र सरकार, 15 प्रश मध्यप्रदेश सरकार, 55 प्रश जेएनपीटी और 15 प्रश जहाज रानी मंत्रालय द्वारा वहन किया जाएगा। इसके बनने से इंदौर-मुंबई के बीच की दूरी 250 किमी कम हो जाएगी। उत्तर भारत और दक्षिण भारत जाने में भी कम समय लगेगा। मध्य रेलवे के कुछ हिस्से में पुल पुलियाओं के टेंडर निकाले गए हैं। हाल ही में रेलवे ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को शुरू करने की स्वीकृति नहीं मिली है। ऐसे में मनमाड़-इंदौर रेललाइन संघर्ष समिति ने न्यायालय जाने की तैयारी में है।
इंदौर-बुधनी-जबलपुर प्रोजेक्ट: सर्वे अधूरा
इंदौर-बुधनी नई रेल लाइन प्रोजेक्ट 2018-19 में स्वीकृत हुआ था। अब तक बुधनी की तरफ से सिर्फ छोटे पुल-पुलियाएं ही बन पाए हैं, जबकि स्वीकृति के वक्त इसे 31 मार्च 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य था। 3262 करोड़ के प्रोजेक्ट में अब तक 90 करोड़ रुपए ही मिले हैं। इसमें ज्यादातर राशि खर्च भी हो चुकी है। अब रेल विकास निगम लिमिटेड को बड़े फंड की जरूरत है, क्योंकि इस लाइन के लिए 1600 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होना है। इसके लिए कम से कम 450 करोड़ चाहिए। अधिकारियों का मानना है कि डेढ़ साल में जमीन अधिग्रहण पूरा होगा। दावा है कि जमीन अधिग्रहण के बाद चार-पांच साल में काम पूरा किया जाएगा। यह पूरा प्रोजेक्ट पश्चिम मध्य रेलवे की मॉनिटरिंग में होगा। इस प्रोजेक्ट में 50 फीसदी राशि राज्य सरकार और 50 फीसदी केंद्र सरकार देगी। प्रोजेक्ट पूरा होने पर 49 लाख रोजगार मिलने का दावा है।
दाहोद-इंदौर रेल प्रोजेक्ट: दो साल से काम बंद
वर्ष 2007-08 में दाहोद-इंदौर रेल प्रोजेक्ट 678.54 करोड़ की लागत से स्वीकृत किया था। जून 2012 में रेलवे बोर्ड ने 1640.04 करोड़ स्वीकृत किए। दाहोद-इंदौर वाया सरदारपुर-झाबुआ-धार रेल लाइन प्रोजेक्ट की कुल लंबाई 204.76 किमी है। इंदौर-राऊ 12 किमी व राऊ-टीही 9 किमी का काम जून 2016 व मार्च 2017 में कार्य पूरा होकर 21 किमी तैयार है। मई-2020 से इस प्रोजेक्ट का काम बंद है।
छलका था ताई का दर्द
चार वर्ष पहले रेलवे के एक आयोजन में इंदौर स्टेशन पर एक कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष रहते हुए पूर्व सांसद सुमित्रा महाजन का भी लंबित रेल परियोजनाओं को लेकर दर्द छलक चुका है। उन्होंने तब इंदौर-खंडवा रेल प्रोजेक्ट में देरी को लेकर दु:खी मन से यहां तक कह दिया था कि अपने जीवनकाल में ही वह इस प्रोजेक्ट को पूरा होते देखना चाहती हैं।
-मनोज मराठे, अध्यक्ष, इंदौर-मनमाड़ संघर्ष समिति
खाता चालू, इंतजार लंबा
55 से ज्यादा ट्रेनों का संचालन होता है इंदौर से 250 किमी कम हो जाएगी इंदौर-मुंबई की दूरी 450 करोड़ चाहिए जमीन अधिग्रहण के लिए एक प्रोजेक्ट में
49 लाख लोगों को मिल सकता है रोजगार प्रोजेक्ट पूरा होने पर