पलकी शर्मा का कॉलम: मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने का समय आ गया है h3>
6 घंटे पहले
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पलकी शर्मा मैनेजिंग एडिटर FirstPost
ट्रम्प ने चीन पर 245% टैरिफ के साथ उस पर लगभग प्रतिबंध लगा दिया है। बीजिंग जवाबी कार्रवाई कर रहा है। 75 से ज्यादा देश किसी सौदे पर दस्तखत करके इस झटके से बचने की उम्मीद कर रहे हैं। रूबल आसमान छू रहा है। वैश्विक व्यापार-व्यवस्था में उथल-पुथल मची हुई है। यूरोप का कहना है कि जिस ‘पश्चिम’ को हम अब तक जानते थे, उसका अब कोई अस्तित्व नहीं है। इस सबके बीच भारत का प्रदर्शन कैसा है? भारत को इस उतार-चढ़ाव और अनिश्चितता से कैसे निपटना चाहिए? क्या वह इस ट्रेड-वॉर को अपने लिए एक अवसर में बदल सकता है?
अच्छी खबर यह है कि भारत शुरुआती झटके से पहले ही उबर चुका है। मुद्रास्फीति घटी है और बाजार फिर से अच्छा प्रदर्शन करने लगे हैं। बुरी खबर यह है कि विकास का पूर्वानुमान गिरा है। इसलिए, झटका तो लगेगा, लेकिन भारत इस झटके को कम करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है। शायद वह इससे कुछ लाभ भी कमा सकता है। जेडी वेंस अपने परिवार के साथ अगले सप्ताह भारत आएंगे। ट्रम्प प्रशासन के सत्ता सम्भालने के बाद से नई दिल्ली में कई हाई-प्रोफाइल दौरे और मुलाकातें हुई हैं।
उन्होंने ट्रेड-डील सुरक्षित करने के लिए बातचीत के दौर को तेज कर दिया है। भारत की रणनीति ट्रम्प के साथ मिलकर काम करने की है, चीन की तरह उनसे लड़ने की नहीं। इसलिए निवेशक भारत को लेकर ज्यादा उत्साहित हैं। यह बात भारत के हित में है कि वह चीन या मेक्सिको की तरह निर्यात-संचालित अर्थव्यवस्था नहीं है। इसलिए टैरिफ का जोखिम भारत के लिए इनकी तुलना में कम ही रहने वाला था। साथ ही, भारत इस क्षेत्र में सबसे खराब टैरिफ से भी प्रभावित नहीं हुआ है।
चीन की तुलना में- जिस पर 245% टैरिफ है- वियतनाम पर कुल मिलाकर 46% टैरिफ है, बांग्लादेश पर 37% है और भारत पर 26% है। व्यापार-वार्ताएं चाहे जैसी रहें, यह अंतर भारत के पक्ष में काम कर सकता है, विशेष रूप से तीन उच्च-मूल्य वाले उद्योगों- टेक्स्टाइल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी में।विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प के टैरिफ भारत के लिए नए दरवाजे खोल सकते हैं।
उदाहरण के लिए, सेमीकंडक्टरों की आपूर्ति में, जिस पर फिलहाल ताइवान का वर्चस्व है। उसे 30% से अधिक टैरिफ का सामना करना पड़ा है। इसलिए यदि आपूर्ति-शृंखलाएं बदलती हैं तो भारत खुद को एक विकल्प के रूप में पेश कर सकता है। यह पैकेजिंग, टेस्टिंग और लो-एंड चिप निर्माण जैसी अपेक्षाकृत सुगम चीजों से शुरू कर सकता है। इसी तरह, मशीनरी और खिलौने जैसे क्षेत्रों में भी अवसर हैं, जिन पर अभी चीन का दबदबा है।
कारोबारी टैरिफ से बचने के लिए अपना माल कहीं और बनाने की कोशिश करेंगे। भारत अमेरिका के साथ रेयर-अर्थ खनिजों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में भी सहयोग करना चाहता है। ये सेमीकंडक्टर, ईवी मोटर, लड़ाकू जेट, मिसाइलें, विंड टर्बाइन और यहां तक कि एलईडी लाइट जैसे कई महत्वपूर्ण उत्पादों में भी प्रमुख तत्व हैं। एक मायने में, ये भविष्य की धातुएं हैं। इनके उत्पादन पर चीन का लगभग एकाधिकार रहा है। वह सभी रेयर-अर्थ उत्पादों का 70% और रेयर-अर्थ मैग्नेट्स का 90% उत्पादित करता है। ये तत्व ईवी निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
हाल ही में चीन ने अमेरिका को इनका निर्यात रोक दिया है। इससे अमेरिकी व्यवसाय ठप्प हो सकते हैं।क्या भारत इसमें कोई भूमिका निभा सकता है? सैद्धांतिक रूप से, हां। क्योंकि चीन और ब्राजील के बाद भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रेयर-अर्थ भंडार है। वास्तव में, इनमें से अधिकांश धातुएं ‘रेयर’ नहीं हैं। ये पूरी दुनिया में पाई जाती हैं। समस्या उनको एक्स्ट्रैक्ट और प्रोसेस करने की है। भारत और अमेरिका इस पर सहयोग करने की उम्मीद कर रहे हैं। यह बात मोदी की हाल में व्हाइट हाउस यात्रा के दौरान सामने आई। दोनों पक्षों ने अवसरों का पता लगाने पर सहमति व्यक्त की। लेकिन इसमें समय लगेगा। और आज समय ही सबसे ज्यादा मायने रखता है।
यही बात भारत को चीनी कारखानों का विकल्प बनाने पर भी लागू होती है। अधिकांश नीति-निर्माताओं को लगता है कि समय आ गया है। लेकिन केवल टैरिफ ही कंपनियों को प्रभावित नहीं करेंगे। दूसरे फैक्टर्स भी हैं। जैसे, कच्चा माल कितना सस्ता है, सार्वजनिक बुनियादी ढांचा कितना अच्छा है, जमीन हासिल करना और व्यवसाय स्थापित करना कितना आसान है, और आप विवादों को कितनी जल्दी सुलझा सकते हैं? ये फैक्टर्स शायद टैरिफ से भी ज्यादा महत्व रखते हैं।
- भारत का ध्यान मैन्युफैक्चरिंग का एक मजबूत माहौल बनाने पर होना चाहिए। पिछले 10 वर्षों में बुनियादी ढांचे में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। ईज़ ऑफ डुइंग बिजनेस की स्थिति भी सुधरी है। लेकिन बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं।)
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6 घंटे पहले
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पलकी शर्मा मैनेजिंग एडिटर FirstPost
ट्रम्प ने चीन पर 245% टैरिफ के साथ उस पर लगभग प्रतिबंध लगा दिया है। बीजिंग जवाबी कार्रवाई कर रहा है। 75 से ज्यादा देश किसी सौदे पर दस्तखत करके इस झटके से बचने की उम्मीद कर रहे हैं। रूबल आसमान छू रहा है। वैश्विक व्यापार-व्यवस्था में उथल-पुथल मची हुई है। यूरोप का कहना है कि जिस ‘पश्चिम’ को हम अब तक जानते थे, उसका अब कोई अस्तित्व नहीं है। इस सबके बीच भारत का प्रदर्शन कैसा है? भारत को इस उतार-चढ़ाव और अनिश्चितता से कैसे निपटना चाहिए? क्या वह इस ट्रेड-वॉर को अपने लिए एक अवसर में बदल सकता है?
अच्छी खबर यह है कि भारत शुरुआती झटके से पहले ही उबर चुका है। मुद्रास्फीति घटी है और बाजार फिर से अच्छा प्रदर्शन करने लगे हैं। बुरी खबर यह है कि विकास का पूर्वानुमान गिरा है। इसलिए, झटका तो लगेगा, लेकिन भारत इस झटके को कम करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है। शायद वह इससे कुछ लाभ भी कमा सकता है। जेडी वेंस अपने परिवार के साथ अगले सप्ताह भारत आएंगे। ट्रम्प प्रशासन के सत्ता सम्भालने के बाद से नई दिल्ली में कई हाई-प्रोफाइल दौरे और मुलाकातें हुई हैं।
उन्होंने ट्रेड-डील सुरक्षित करने के लिए बातचीत के दौर को तेज कर दिया है। भारत की रणनीति ट्रम्प के साथ मिलकर काम करने की है, चीन की तरह उनसे लड़ने की नहीं। इसलिए निवेशक भारत को लेकर ज्यादा उत्साहित हैं। यह बात भारत के हित में है कि वह चीन या मेक्सिको की तरह निर्यात-संचालित अर्थव्यवस्था नहीं है। इसलिए टैरिफ का जोखिम भारत के लिए इनकी तुलना में कम ही रहने वाला था। साथ ही, भारत इस क्षेत्र में सबसे खराब टैरिफ से भी प्रभावित नहीं हुआ है।
चीन की तुलना में- जिस पर 245% टैरिफ है- वियतनाम पर कुल मिलाकर 46% टैरिफ है, बांग्लादेश पर 37% है और भारत पर 26% है। व्यापार-वार्ताएं चाहे जैसी रहें, यह अंतर भारत के पक्ष में काम कर सकता है, विशेष रूप से तीन उच्च-मूल्य वाले उद्योगों- टेक्स्टाइल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी में।विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प के टैरिफ भारत के लिए नए दरवाजे खोल सकते हैं।
उदाहरण के लिए, सेमीकंडक्टरों की आपूर्ति में, जिस पर फिलहाल ताइवान का वर्चस्व है। उसे 30% से अधिक टैरिफ का सामना करना पड़ा है। इसलिए यदि आपूर्ति-शृंखलाएं बदलती हैं तो भारत खुद को एक विकल्प के रूप में पेश कर सकता है। यह पैकेजिंग, टेस्टिंग और लो-एंड चिप निर्माण जैसी अपेक्षाकृत सुगम चीजों से शुरू कर सकता है। इसी तरह, मशीनरी और खिलौने जैसे क्षेत्रों में भी अवसर हैं, जिन पर अभी चीन का दबदबा है।
कारोबारी टैरिफ से बचने के लिए अपना माल कहीं और बनाने की कोशिश करेंगे। भारत अमेरिका के साथ रेयर-अर्थ खनिजों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में भी सहयोग करना चाहता है। ये सेमीकंडक्टर, ईवी मोटर, लड़ाकू जेट, मिसाइलें, विंड टर्बाइन और यहां तक कि एलईडी लाइट जैसे कई महत्वपूर्ण उत्पादों में भी प्रमुख तत्व हैं। एक मायने में, ये भविष्य की धातुएं हैं। इनके उत्पादन पर चीन का लगभग एकाधिकार रहा है। वह सभी रेयर-अर्थ उत्पादों का 70% और रेयर-अर्थ मैग्नेट्स का 90% उत्पादित करता है। ये तत्व ईवी निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
हाल ही में चीन ने अमेरिका को इनका निर्यात रोक दिया है। इससे अमेरिकी व्यवसाय ठप्प हो सकते हैं।क्या भारत इसमें कोई भूमिका निभा सकता है? सैद्धांतिक रूप से, हां। क्योंकि चीन और ब्राजील के बाद भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रेयर-अर्थ भंडार है। वास्तव में, इनमें से अधिकांश धातुएं ‘रेयर’ नहीं हैं। ये पूरी दुनिया में पाई जाती हैं। समस्या उनको एक्स्ट्रैक्ट और प्रोसेस करने की है। भारत और अमेरिका इस पर सहयोग करने की उम्मीद कर रहे हैं। यह बात मोदी की हाल में व्हाइट हाउस यात्रा के दौरान सामने आई। दोनों पक्षों ने अवसरों का पता लगाने पर सहमति व्यक्त की। लेकिन इसमें समय लगेगा। और आज समय ही सबसे ज्यादा मायने रखता है।
यही बात भारत को चीनी कारखानों का विकल्प बनाने पर भी लागू होती है। अधिकांश नीति-निर्माताओं को लगता है कि समय आ गया है। लेकिन केवल टैरिफ ही कंपनियों को प्रभावित नहीं करेंगे। दूसरे फैक्टर्स भी हैं। जैसे, कच्चा माल कितना सस्ता है, सार्वजनिक बुनियादी ढांचा कितना अच्छा है, जमीन हासिल करना और व्यवसाय स्थापित करना कितना आसान है, और आप विवादों को कितनी जल्दी सुलझा सकते हैं? ये फैक्टर्स शायद टैरिफ से भी ज्यादा महत्व रखते हैं।
- भारत का ध्यान मैन्युफैक्चरिंग का एक मजबूत माहौल बनाने पर होना चाहिए। पिछले 10 वर्षों में बुनियादी ढांचे में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। ईज़ ऑफ डुइंग बिजनेस की स्थिति भी सुधरी है। लेकिन बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं।)
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