पर्याप्त रोजगार और कुशल कार्यबल के अभाव में बोझ बन सकता है जनसांख्यिकी लाभांश: रिपोर्ट

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पर्याप्त रोजगार और कुशल कार्यबल के अभाव में बोझ बन सकता है जनसांख्यिकी लाभांश: रिपोर्ट

पर्याप्त रोजगार और कुशल कार्यबल के अभाव में बोझ बन सकता है जनसांख्यिकी लाभांश: रिपोर्ट

नयी दिल्ली, तीन अप्रैल (भाषा) वर्ष 2020 से लेकर 2050 के बीच भारत में 15 से 64 साल की कामकाजी उम्र वाले समूह में 18.3 करोड़ नए लोग जुड़ जाएंगे लेकिन पर्याप्त नौकरियों और जरूरी कुशल कार्यबल के अभाव में देश का जनसांख्यिकीय लाभांश एक बोझ भी बन सकता है। रविवार को जारी एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई।

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की तरफ से भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश पर तैयार इस रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘अगर भारत पर्याप्त नौकरियों का सृजन नहीं करता है या भारतीय कामगार इन नौकरियों के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हैं तो यह जनसांख्यिकीय लाभांश एक बोझ में तब्दील हो ल सकता है। इस लाभांश का फायदा उठाने में शिक्षा और कौशल विकास सबसे अधिक सहायक होंगे।’’

रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या सांख्यिकी डेटाबेस का हवाला देते हुए कहती है कि वर्ष 2020 से 2050 के बीच भारत में 15 से 64 वर्ष की उम्र वाले कामकाजी समूह में अतिरिक्त 18.3 करोड़ लोग जुड़ेंगे। इस तरह अगले तीन दशक में वैश्विक कार्यबल में जो वृद्धि होगी उसमें भारत की हिस्सेदारी 22 फीसदी रहेगी।

सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, ‘‘हालांकि निवेश, पुनरुद्धार और अवसंचरना भारत की आर्थिक वृद्धि के कारक हैं लेकिन इनमें से कोई भी भारत के कामकाजी उम्र समूह में लोगों की उपलब्धता से ज्यादा सुनिश्चित नहीं है। भारत की युवा आबादी, इसका जनसांख्यिकीय लाभांश भारत को वैश्विक उत्पादन का केंद्र बनने और माल एवं सेवाओं का बड़ा उपभोक्ता बनने में सक्षम बनाता है।’’

लेकिन रिपोर्ट कहती है कि भारत के पास इस लाभांश का लाभ उठा सकने लायक समय नहीं रहेगा। इसके मुताबिक, ‘‘2020-30 के बीच कामकाजी उम्र समूह में 10.1 करोड़ लोग जुड़ेंगे, फिर 2030-40 में यह संख्या घटकर 6.1 करोड़ और उसके बाद 2040-50 के बीच 2.1 करोड़ हो जाएगी। 2050 के बाद भारत की कामकाजी उम्र समूह की आबादी घटने लगेगी।’’

इस तरह भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठाने के लिए 2020-50 के बीच का बहुत कम समय ही मिल पाएगा।

रिपोर्ट में भारत के श्रम बाजार के असंतुलनों के विश्लेषण के आधार पर कहा गया है कि कौशल का सही जगह इस्तेमाल नहीं होने और कौशल की कमी का असर उत्पादन की वृद्धि पर पड़ सकता है। इसमें कहा गया कि 2019-20 में भारत के 54.2 करोड़ लोगों के कामकाजी समूह में से महज 7.3 करोड़ लोगों को ही व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त था।

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