पंजाब में पुलिसवाले-रिटायर्ड फौजी का भी फर्जी एनकाउंटर: 32 साल बाद सामने आया झूठ, फैमिली बोली- आतंकियों से कनेक्शन बताकर उठाया

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पंजाब में पुलिसवाले-रिटायर्ड फौजी का भी फर्जी एनकाउंटर:  32 साल बाद सामने आया झूठ, फैमिली बोली- आतंकियों से कनेक्शन बताकर उठाया

पंजाब में पुलिसवाले-रिटायर्ड फौजी का भी फर्जी एनकाउंटर: 32 साल बाद सामने आया झूठ, फैमिली बोली- आतंकियों से कनेक्शन बताकर उठाया

जगदीप सिंह और गुरनाम सिंह। पंजाब पुलिस में कॉन्स्टेबल और होमगार्ड थे। दोनों को पुलिस ने घर से उठाया और फेक एनकाउंटर में मार दिया। तारीख थी 30 नवंबर, 1992। एनकाउंटर के बाद पुलिस ने एक झूठी कहानी गढ़ी। कहा कि गुरनाम को हथियार के साथ पकड़ा गया था। उसे और

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पुलिस ने अपने ही डिपार्टमेंट के दो लोगों को मारा और लावारिस बताकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। मामला कोर्ट पहुंचा, तो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पुलिस का झूठ सामने आ गया। जगदीप और गुरनाम को सिर में एक ही जगह गोली लगी थी।

सवाल उठा कि दो लोगों को एक ही तरह से गोली कैसे लग सकती है, जबकि एक पुलिस कस्टडी में है और दूसरा हमलावर। इस मामले में 32 साल बाद 23 दिसंबर 2024 को तीन पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।

2 हजार मौतें, लावारिस बताकर अंतिम संस्कार कर दिया पंजाब में 1990 के दशक में उग्रवाद चरम पर था। केंद्र सरकार ने राज्य में ‘द पंजाब डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट’ लागू किया था, जिसके तहत कुछ खास आदेशों का उल्लंघन करने पर पुलिस किसी को भी गोली मार सकती थी। इस दौरान पुलिस ने करीब 2000 लाशों को लावारिस बताकर अंतिम संस्कार कर दिया या नदी-नहर में फेंक दिया।

बाद में CBI ने फेक एनकाउंटर के 70 केस रजिस्टर किए। इनमें दिसंबर 2024 तक कोर्ट ने 59 केस में पुलिसवालों को दोषी माना। 11 केस पेंडिंग हैं। फर्जी एनकाउंटर का खुलासा करने वाले जसवंत सिंह खालड़ा पर मशहूर पंजाबी सिंगर दिलजीत दोसांझ ‘पंजाब-95’ नाम की फिल्म बना रहे हैं।

दैनिक NEWS4SOCIALने 27 जनवरी को एक्टिविस्ट जसवंत सिंह खालड़ा, 6 फरवरी को सब्जी बेचने वाले गुलशन कुमार और 11 फरवरी को वाइस प्रिंसिपल सुखदेव सिंह के फेक एनकाउंटर पर स्टोरी पब्लिश की थी।

आज पढ़िए उन 6 लोगों की कहानी, जिन्हें घर से उठाकर मार दिया गया। इनमें पुलिसवाले, सरकारी कर्मचारी और रिटायर्ड फौजी और उसका नाबालिग बेटा शामिल थे। इनमें से किसी की डेडबॉडी नहीं मिली। 32 साल बाद कोर्ट ने इनकी मौत को फेक एनकाउंटर मान लिया, लेकिन परिवार को डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिला है।

पहली कहानी जगदीप सिंह की

अफसर के गनमैन को छेड़खानी करने से रोका, पुलिस ने ससुराल से उठाया

हम तरन तारन में जगदीप के भाई सुखदीप सिंह से मिले। बिजली विभाग से रिटायरमेंट के बाद सुखदीप किताबों से घिरे रहते हैं। पंजाब में 90 के दशक में हुए फेक एनकाउंटर पर रिसर्च कर रहे हैं।

बातचीत शुरू हुई तो बोले,’जगदीप की शादी 1989 में हुई थी। 1992 में पुलिस ने एनकाउंटर में मार दिया। तब भाभी प्रेग्नेंट थीं। भाई की मौत के 6 महीने बाद भाभी ने बेटी को जन्म दिया। उसे मेरी बहन ने गोद ले लिया। भाभी कब तक अकेले रहतीं, मन शांत हुआ तो उन्होंने नई जिंदगी शुरू की। दूसरी शादी कर विदेश चली गईं। भाई की बेटी मेरी बहन के पास ही रही। अब उसकी शादी हो गई है।’

आपके भाई तो पुलिस में थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि पुलिसवालों ने उनका फेक एनकाउंटर कर दिया? सुखदीप सिंह जवाब देते हैं, ’तब पंजाब में बहुत खराब माहौल था। पुलिस जिसे चाहती, उसे उग्रवादी बना देती थी।’

‘मेरे भाई की तरन तारन के एक पुलिस अधिकारी के गनमैन से झड़प हो गई थी। गनमैन एक लड़की से बदतमीजी कर रहे थे। उन्होंने SSP से जगदीप की शिकायत कर दी। उन्हें बताया कि लड़के का नाम मक्खन है।’

‘पुलिसवाले भाई को ढूंढने लगे। उन्होंने पता लगा लिया कि मक्खन का पूरा नाम जगदीप सिंह मक्खन है और वो कॉन्स्टेबल है। उसकी जालंधर के पास पोस्टिंग है।’

‘घटना वाली रात भाई ससुराल गए थे। तरन तारन से 8-9 किमी दूर जौड़ा गांव में उनकी ससुराल थी। रात में पुलिसवाले वहां पहुंचे और भाई को उठाकर तरन तारन थाने ले गए। मुझे लगता है कि वहीं उन्हें मार दिया गया।’

CBI की जांच में फेक एनकाउंटर की बात जगदीप सिंह के पिता प्रीतम सिंह की शिकायत पर CBI ने FIR दर्ज की थी। CBI की जांच के मुताबिक, अक्टूबर 1992 में जगदीप सास सविंदर कौर के साथ तरन तारन में गुरुद्वारे गए थे। सविंदर कौर गुरुद्वारे में सेवादार थीं। यहां एक लड़की और दो पुलिसवालों की बहस हो गई। दोनों SHO गुरबचन सिंह के गनमैन थे। वे लड़की से बदतमीजी कर रहे थे। इस पर जगदीप सिंह ने दोनों को टोका था।

18 नवंबर, 1992 को जगदीप सिंह ससुराल में थे। घर में पत्नी प्रवेश कौर और सास सविंदर कौर थीं। तभी पुलिस फोर्स पहुंची। उन्होंने दरवाजा खुलवाने की कोशिश की। सविंदर कौर ने दरवाजा खोला, तो पुलिस ने फायर कर दिया। इसमें सविंदर कौर की मौत हो गई।

इसके बाद पुलिस ने जगदीप सिंह को हिरासत में ले लिया। उसे तरन तारन सिटी थाने ले गए। 30 नवंबर को फेक एनकाउंटर में जगदीप को मार दिया गया।

पुलिस ने दावा किया, सविंदर की मौत आतंकियों के हमले में हुई पंजाब पुलिस ने दावा किया था कि जगदीप की सास सविंदर कौर की मौत आतंकी संगठन खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के हमले में हुई थी। ये भी आरोप लगा कि पुलिस ने जगदीप की पत्नी प्रवेश कौर से खाली कागज पर साइन करा लिए। उस पर लिखा कि मेरे घर पर आतंकियों ने हमला किया था। इसमें मां सविंदर कौर की मौत हो गई।

इस मामले में 19 नवंबर, 1992 को पुलिस ने पट्टी थाने में FIR दर्ज की थी। एक शख्स को आरोपी बनाकर उसका बयान रिकॉर्ड कर लिया गया। CBI जांच में पुलिस के दावे फर्जी साबित हुए।

दूसरी कहानी गुरनाम सिंह की

पुलिस घर से ले गई, फैमिली को अखबार से एनकाउंटर का पता चला

जिस दिन जगदीप सिंह का फेक एनकाउंटर किया गया, उसी दिन पुलिस ने 20 साल के होमगार्ड गुरनाम सिंह पाली को भी मारा था। दोनों के सिर में एक-एक गोली मारी गई थी। इस बारे में जानने के लिए हम गुरनाम सिंह के घर पहुंचे। यहां उनके भाई हीरा सिंह मिले।

वे कहते हैं, ‘गुरनाम सिंह 10वीं पास करके होमगार्ड भर्ती हुआ था। उसकी तैनाती तरन तारन सिविल लाइन में थी। 20 नवंबर, 1992 को वो ड्यूटी पर गया था। शाम करीब 7:30 बजे घर आया। फिर खाना खाकर सोने चला गया। 21 नवंबर की सुबह करीब 4:30 बजे घर का दरवाजा खटखटाया गया। मां दरवाजे पर गई और पूछा- कौन है। जवाब मिला कि थाने से आए हैं।’

हीरा सिंह गुरनाम की फोटो दिखाते हैं। कहते हैं- उसकी शादी भी नहीं हुई थी। आप फोटो देखिए, कितनी कम उम्र का दिख रहा है।

हीरा सिंह आगे बताते हैं, ‘मां ने दरवाजा खोल दिया। बाहर SHO गुरबचन सिंह के साथ कुछ पुलिसवाले थे। गुरबचन सिंह ने पूछा- गुरनाम सिंह ​​पाली कौन है। तब तक गुरनाम भी वहां आ गया। उसने कहा कि मैं गुरनाम सिंह हूं। गुरबचन सिंह ने कहा- थाने चलो, कुछ सवाल पूछने हैं।’

‘गुरनाम वर्दी पहनने के लिए अंदर जाने लगा। पुलिसवालों ने उसे वर्दी पहनने से रोक दिया। बोले कि जो कपड़े पहने हैं, उसी में चलो। बाहर जाते ही पुलिसवालों ने उसकी बांह पकड़ी और जबरदस्ती आगे ले जाने लगे। ये देख मां ने शोर मचाया। पुलिसवालों ने धमकी दी कि अगर कोई कुछ बोला, तो सभी को थाने ले जाएंगे। सुबह 10 बजे थाने आकर इससे मिल लेना।’

‘अगले दिन हम लोग एडवोकेट काबल सिंह के साथ थाने गए। SHO गुरबचन सिंह से पूछा कि गुरनाम सिंह को क्यों लाए हैं? जवाब मिला कि उसके आतंकियों से कनेक्शन पता चले हैं, इसलिए पूछताछ करनी है। 2-3 दिन बाद छोड़ देंगे। अगले दिन हम दोबारा गए, लेकिन पुलिस ने गुरनाम से नहीं मिलने दिया। मां से गंदे तरीके से बात की और हमें भगा दिया।’

हीरा सिंह कहते हैं-

25 नवंबर को हम गुरनाम से मिल पाए। 29 नवंबर को हमने SSP, DGP और दूसरे अफसरों को टेलीग्राम भेजा। 1 दिसंबर की सुबह अखबार से पता चला कि पुलिस ने गुरनाम को एनकाउंटर में मार दिया है।

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आतंकियों के हमले की कहानी गढ़ी, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से सच सामने आया जगदीप और गुरनाम की मौत का सच कैसे सामने आया, इसका जवाब एडवोकेट सरबजीत सिंह वेरका ने दिया। उन्होंने फेक एनकाउंटर के केस बिना फीस लिए लड़े हैं।

वे कहते हैं, ‘SHO गुरबचन सिंह ने जगदीप सिंह और गुरनाम सिंह को गलत तरीके से उठाया था। दोनों को अवैध हिरासत में रखा। पुलिस ने एक कहानी बनाई। बताया कि गुरनाम सिंह को अवैध हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ में उसने बताया कि और भी हथियार किसी जगह छुपा रखे हैं।’

‘30 नवंबर की रात पुलिस टीम उसे हथियारों की रिकवरी के लिए ले गई थी। उसी दौरान उग्रवादियों ने हमला कर दिया। इस हमले में गुरनाम सिंह की मौत हो गई। इसके बाद पुलिस ने फायरिंग की, तो एक उग्रवादी भी मारा गया। मरने वाला शख्स जगदीप सिंह मक्खन था।’

‘पुलिस ने बिना परिवार को बताए दोनों की लाशों का अंतिम संस्कार कर दिया। केस के ट्रायल के दौरान पुलिस ने कहा कि रात में काफी धुंध थी। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। तभी उग्रवादियों ने हमला किया। उसी में जगदीप और गुरनाम को गोली लगी।’

‘दोनों का पोस्टमॉर्टम कराया गया था। पता चला कि दोनों को ठीक एक जगह गोली लगी थी। सिर के एक तरफ गोली लगी और दूसरी तरफ आंख के पास से निकल गई। ये कैसे हो सकता है कि दो लोगों को एक जैसे गोली लगे। ये एविडेंस काफी अहम था। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया।’

CBI जांच में जगदीप सिंह और गुरनाम सिंह को लगी गोली की स्पेशल रिपोर्ट बनाई गई थी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में स्केच से बताया गया कि गोली कहां से सिर में घुसी और किस जगह से बाहर निकली। गुरनाम सिंह पाली को पुलिस ने कस्टडी में बताया था। इसलिए पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में गुरनाम सिंह के अलावा मरने वाले दूसरे शख्स को अननोन लिखा गया।

रिपोर्ट में बताया गया कि गुरनाम सिंह के सिर पर दाहिने कान के ऊपरी हिस्से में गोली लगी थी। इसे रिपोर्ट में नंबर-1 बताया गया है। ये बुलेट सिर से होते हुए बाईं आंख से निकली। बाहर निकलने वाली बुलेट को नंबर-2 दिखाया गया है।

इसी तरह जिसे अननोन डेडबॉडी बताया गया, वो जगदीप सिंह मक्खन की थी। उन्हें बाएं कान के ठीक ऊपर गोली लगी। इसे नंबर-1 दिखाया गया है। ये गोली दाईं आंख से निकली थी। इस स्पॉट को नंबर-2 बताया गया है। घने कोहरे और अंधेरे में आखिर दोनों को एक ही तरीके और एक ही डायरेक्शन में सिर्फ 1-1 गोली कैसे लगी। ये सवाल फेक एनकाउंटर साबित करने के लिए काफी था।

कोर्ट ने कहा- सच छिपाने के लिए पुलिस ने फर्जी डॉक्यूमेंट बनाए 23 दिसंबर, 2024 को CBI कोर्ट के स्पेशल जज राकेश कुमार गुप्ता ने पुलिसवालों को दोषी करार दिया। CBI कोर्ट ने कहा- कोई शक नहीं है कि SHO गुरबचन सिंह ने ही गुरनाम सिंह पाली का अपहरण किया था। ये अपहरण उनके घर से 21 नवंबर, 1992 को किया गया। उन्हें 29 नवंबर तक अवैध हिरासत में रखा गया। इसके बाद जगदीप सिंह मक्खन के साथ गुरनाम सिंह पाली की भी हत्या कर दी गई।

इन दोनों हत्याओं में गुरबचन सिंह, SI रेशम सिंह और ASI हंसराज सिंह दोषी हैं। पुलिस ने एनकाउंटर को सही बताने के लिए फर्जी डॉक्यूमेंट बनाए। गुरबचन सिंह को अपहरण-हत्या, रेशम सिंह और हंसराज सिंह को हत्या और साजिश रचने का दोषी करार दिया जाता है।

आखिरी कहानी, प्यारा सिंह, हरफूल सिंह, गुरदीप सिंह और स्वर्ण सिंह की

चारों को ट्रैक्टर पर बिठाकर ले गई पुलिस, फिर पता नहीं चला

आखिर में हम अमृतसर से करीब 35 किमी दूर जियोबाला गांव पहुंचे। यहां के प्यारा सिंह, उनके 17 साल के बेटे हरफूल सिंह, उनके रिश्तेदार गुरदीप सिंह और स्वर्ण सिंह को पुलिस ने फेक एनकाउंटर में मारकर लाश गायब कर दी। प्यारा सिंह रिटायर्ड फौजी और गुरदीप सरकारी कर्मचारी थे। अब तक पता नहीं चला कि चारों की मौत कैसे हुई और उनकी डेडबॉडी कहां गईं।

32 साल बाद कोर्ट ने मान लिया कि चारों को फेक एनकाउंटर में मारा गया है। फिर भी फैमिली को इनका डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिला। यही वजह है कि बिजली विभाग में नौकरी करने वाले गुरदीप सिंह के परिवार को सरकारी मदद नहीं मिली। उनके दोनों बेटों की पढ़ाई छूट गई। वे अब ड्राइवरी करते हैं।

गुरदीप सिंह की पत्नी हरजीत कौर कहती हैं, ‘मेरे पति स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी करते थे। उन पर कोई क्रिमिनल केस नहीं था। 23 जुलाई, 1992 की रात 8 बजे 10-12 पुलिसवाले घर आए थे। घर पर सास, ससुर और बच्चे भी थे। इतने पुलिसवालों को देखकर हम लोग डर गए। वे मेरे पति को उठा ले गए और बाहर ट्रैक्टर पर बैठा दिया। फिर कभी उनका पता नहीं चला।’

गुरदीप के साथ पुलिस ने प्यारा सिंह, हरफूल सिंह और स्वर्ण सिंह को भी उठाया था। ये प्यारा सिंह के बेटे हैं। वे चारों की फोटो दिखाते हैं, जिस पर लापता लिखा है।

खेत में काम कर रहे गुरमीत सिंह के बेटे परमजीत सिंह बताते हैं, ‘मैं तब बहुत छोटा था। स्कूल में पढ़ता था। उन दिनों बारिश हो रही थी। पापा बीमार थे। रात में पुलिस की कई गाड़ियां आई थीं। मैं, मेरी दो बहनें और छोटा भाई पापा के साथ थे। पुलिसवालों ने पापा से नाम पूछा। उन्होंने बताया कि मेरा नाम गुरदीप सिंह है। मैं बिजली बोर्ड में नौकरी करता हूं।’

‘फिर पुलिसवाले लौट गए और दूसरे घर में गए। वहां एक लड़के को पकड़ लिया। वो शोर मचाने लगा। शोर सुनकर पापा उसके घर चले गए। पापा ने कहा कि ये तो छोटा बच्चा है। इसे क्यों पकड़ लिया। इसके बाद पुलिसवालों ने बच्चे को छोड़कर पापा को पकड़ लिया। उन्हें ट्रैक्टर में डालकर ले जाने लगे। उसमें तीन लोग और थे। पुलिसवालों ने किसी बड़े अधिकारी को फोन पर बताया कि 4 लोगों को पकड़ लिया है।’

‘32 साल केस चला। हम लोग जीत भी गए। कोर्ट ने मान लिया कि ये फेक एनकाउंटर था, लेकिन हमारी जिंदगी बर्बाद हो गई। मैं पढ़ नहीं पाया। आज ड्राइवर का काम करता हूं। छोटा भाई भी ड्राइवर है। बहनों की शादी गरीब घरों में करनी पड़ी।’

फेक एनकाउंटर में इंस्पेक्टर को 10 साल की सजा पीड़ित पक्ष की ओर से केस की पैरवी एडवोकेट सरबजीत सिंह ने की थी। वे कहते हैं कि जिन 4 लोगों को पुलिस ने उठाया था, उनमें फौजी प्यारा सिंह का बेटा हरफूल सिंह भी था। इस पर दूसरे जिले के SP ने लोकल थानेदार को लेटर लिखा था कि अगर इनकी गलती नहीं है, तो छोड़ दें। अगर केस है तो कोर्ट में पेश करें।’

‘इसके बाद भी पुलिस ने चारों को मार दिया। डेडबॉडी को लावारिस बताकर दफना दिया। उनकी लाशें आज तक नहीं मिलीं। 31 मार्च, 2023 को तब इंस्पेक्टर रहे सुरिंदर पाल सिंह को 10 साल की सजा सुनाई गई।’

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सब्जीवाले को आतंकी बताकर उठाया, फिर गोली मार दी

22 जून, 1993 की बात है। पंजाब के तरन तारन में रहने वाले चमन लाल के घर अचानक कुछ पुलिसवाले पहुंचे। चमन और उनके 3 बेटों को थाने ले गए। कुछ दिन बाद चमन और दो बेटों को छोड़ दिया, लेकिन एक बेटे गुलशन को नहीं छोड़ा। पुलिस ने उसे एक महीने हिरासत में रखा। 22 जुलाई को पता चला कि पुलिस ने आतंकी बताकर उसका एनकाउंटर कर दिया। गुलशन सब्जी बेचता था। पढ़िए ये रिपोर्ट…