दूध से लेकर ड्राइफ्रूट खाता है यह बकरा, कीमत 4 लाख रुपये, जामा मस्जिद के सामने फिर सजी बकरा मंडी

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दूध से लेकर ड्राइफ्रूट खाता है यह बकरा, कीमत 4 लाख रुपये, जामा मस्जिद के सामने फिर सजी बकरा मंडी

दूध से लेकर ड्राइफ्रूट खाता है यह बकरा, कीमत 4 लाख रुपये, जामा मस्जिद के सामने फिर सजी बकरा मंडी

नई दिल्ली : कोविड-19 महामारी के दौर में दो साल बाद बकरों की मंडी सजी है। ईद-उल-अजहा यानी बकरीद रविवार 10 जुलाई 2022 को है। यह दिन कुरबानी का होता है। जामा मस्जिद स्थित मीना बाजार के सामने बकरों का सबसे बड़ा बाजार लगा है। यहां दिल्ली समेत आस-पास के शहरों से व्यापारी और खरीदार पहुंच रहे हैं। इस बार महंगाई की मार बकरा कारोबारियों पर भी पड़ी है। बकरों को खिलाना-पिलाना, देखभाल, इलाज और ट्रांसपोर्टेशन आदि महंगा हुआ है। इस हिसाब से रेट भी बढ़ाए गए हैं। दो साल पहले जो बकरा 10 हजार रुपये में बिकता था, उसका दाम अब 16 से 18 हजार रुपये पहुंच गया है। जो आदमी 10 बकरों की कुर्बानी करता था, वह अब 5 बकरे ही खरीद रहा है। रोजाना डिमांड के मुताबिक दूसरे शहरों से बकरे आ रहे हैं। जामा मस्जिद के अलावा जामिया, ओखला, सीलमपुर, जाफराबाद, तुर्कमान गेट, गाजीपुर और लोनी में बकरे थोक में बिकते हैं। आइए, बकरा व्यापारियों से जानते हैं कि इस बार कैसी रहेगी उनकी ईद?

30 डेरों में हो रहा कारोबार
जामा मस्जिद के सामने बकरा व्यापारियों के करीब 30 डेरे लगे हैं। बकरों को गर्मी से बचाने के लिए पंखे भी लगे हैं। बकरों के चारे और पानी का प्रबंध भी यहीं है। रात में बकरे, उनके मालिक और देखरेख करने वाले ठहरते हैं। कोरोना से पहले महीनेभर तक बकरों की मंडी लगती थी। इस बार 15 दिन पहले मंडी लगाने की इजाजत मिली है। यहां अलवर, जोधपुर, जयपुर, बरेली, मुरादाबाद, मेरठ, रामपुर, पानीपत, सोनीपत और गुरुग्राम से बकरे आते हैं। मंडी में सोजत, दुंबे, बागपत की नस्ल गंगापरी और हैदराबाद के बकरे भी हैं। जिन बकरों पर चांद-तारे या उर्दू में अल्लाह लिखा है, उसके दाम ज्यादा हैं। दूर-दूर से लोग ऐसे बकरों को देखने भी आ रहे हैं।

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दूध-ड्राईफ्रूट्स खिलाकर तैयार किया 4 लाख का बकरा
बकरा कारोबारी मोहम्मद दानिश ने कहा कि इस बार गर्मी खूब पड़ रही है। इसने हम जैसे व्यापारियों के लिए मुश्किल खड़ी कर रही है। बकरों को गर्मी से बचाना पड़ता है, वरना बीमार पड़ सकते हैं। दिल्ली में मेवाती और बर्बरा बकरे ज्यादा बिकते हैं। मेवाती बकरा 200 किलो, पंजाबी बकरा 230 किलो और बर्बरा बकरा 100 किलो तक होता है। इनकी देखरेख आसान नहीं है। हफ्ते में 2 बार नहलाना पड़ता है। रोजाना टाइम पर खाना देना पड़ता है। ये चने की दाल, गेहूं, दलिया और अनाज में सब कुछ खा लेते है। बकरों के अलग कमरे होते हैं। अच्छा बकरा तैयार करने में रोजाना 400 से 500 रुपये का खर्चा है। जो बकरा दिखने में खूबसूरत और मोटा-ताजा दिखता है, उसका रेट अधिक हो जाता है। अपने पास एक बेहतरीन बकरा भी है, जिसकी सेवा सबसे अधिक हो रही है। उसे ड्राइफ्रूट्स तक खिला रहे हैं। दूध पिला रहे हैं। इस बार उसकी कीमत 4 लाख रुपये रखी है।

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लोग ले रहे बकरे की फोटो, बना रहे वीडियो
बकरा कारोबारी सुभाष चंद ने कहा कि हर साल राजस्थान से जामा मस्जिद आकर बकरे बेचते हैं। अपने खुद के बकरे तैयार करते हैं। इस बार दो खास बकरे भी हमारे पास हैं। एक पर अल्लाह मोहम्मद और चांद-तारा बना है। दूसरे पर मोहम्मद और चांद-तारा बना है। अभी तक बकरों के दाम तय नहीं किए हैं। जो मालिक देगा, खुश होकर ले लेंगे। फिर भी ऐसे बकरों की काफी डिमांड रहती है। लोग यहां आकर बकरों की फोटो और विडियो ले रहे हैं। रेट भी पूछते हैं। बाजार में अभी उम्मीद के मुताबिक ग्राहक नहीं है। वरना, ईद के हफ्ते-10 दिन पहले ही यहां अच्छी भीड़ रहती थी। दूर-दूर से खरीदार आते थे। एक-एक आदमी 5 से 20 बकरे तक खरीदकर ले जाते थे। इस बार बड़े खरीदार नहीं दिख रहे हैं। महंगे बकरे भी कम बिक रहे हैं। लोगों की खरीद क्षमता भी कमजोर हुई है। किफायती दामों में त्योहार मनाना चाहते है। इस बार सबकी जेब ठीक नहीं हैं।

सही जगह से खरीदें कुर्बानी के बकरे
बकरा कारोबारी शहजान अली हर आदमी मंडी में कुछ कमाने आता है। हम भी नेक उम्मीद से आए हैं। दो साल तो बिल्कुल काम नहीं हुआ। मेरे पास 4 लाख रुपये का मेवाती बकरा है। अभी रोज 10 से 12 बकरे बेच रहा हूं। हमारे पास ऐसे भी बकरे हैं, जिन्हें हाथ से खाना खिलाया जाता है। इनकी कीमत भी अधिक है। बकरीद के मौके पर कुर्बानी देने वालों को सही जगह से बकरा खरीदना चाहिए। वरना, उनके साथ धोखा भी हो सकता है। बहुत से लोग कमजोर बकरे को बेसन का पानी पिला देते हैं, जो खरीदते वक्त तो मोटा-ताजा होता है, लेकिन सुबह ही कमजोर हो जाता है। कुछ बकरे कुर्बानी से पहले मर भी जाते हैं। यह नाजायज है। ईद के पहले यदि खबर उड़ गई कि मंडी में बकरे खत्म हो गए हैं, तो इसके रेट तेजी से उठते हैं। इसका कुछ लोग गलत लाभ उठाते हैं। इनसे बचना बहुत जरूरी है। वहीं गली-मोहल्लों में बिकने वाले बकरों से परहेज करना चाहिए।

दुंबे की होती है मुख्य कुर्बानी
बकरा विक्रेता इरफान चौधरी का कहना है कि दो साल बाद मीना बाजार में बकरे बेचने की परमिशन मिली है। कोरोना की वजह से 2020 और 2021 में गली-मोहल्ले, सड़क, चौक-चौराहे पर जाकर बकरे बेचे थे। गोदाम किराये पर लिए। जान-पहचान वालों को बकरे बेचे थे। हम सालों से इस बिजनेस में हैं। पूरे साल बकरों का पालन-पोषण करते हैं। कोई दूसरा काम भी नहीं कर सकते। अब कोरोना केस कम हुए हैं, तो सरकार ने ढील दी है। उम्मीद है कि इस बार ईद अच्छी बीतेगी। अभी महंगे बकरों के ग्राहक कम हैं। जुमे की नमाज के बाद असल खरीदारी होती है। तब हर तरह के बकरों के खरीदार आएंगे। मुख्य कुर्बानी दुंबे की होती है, जो काफी महंगा होता है। हर कोई नहीं खरीद पाता, तो बकरे की कुर्बानी दी जाती है। दुंबा तुर्की की नस्ल है। आम दुंबे के बच्चा 40 से 50 हजार रुपये में मिलता है, जिसे पालना पड़ता है। दुंबे के सींग नहीं होते हैं। इसके पीछे चक्की होती है।

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