दादा कोंडके के नाम दर्ज है सबसे ज्यादा सिल्वर जुबली हिट्स का गिनीज रिकॉर्ड, सेंसर बोर्ड की उड़ गई थी नींद
दादा कोंडके कहां के रहने वाले थे? उनका असली नाम क्या था? कैसे मुंबई की एक चॉल में रहने वाले और राशन की छोटी सी दुकान पर काम करने वाले कृष्णा कैसे दादा कोंडके बन गिनीज बुक तक पहुंचे, आइए आपको विस्तार से इनकी कहानी बताते हैं।
चॉल में हुए पैदा, मचाए रखते थे आतंक
फोटो: www.facebook.com/nfaiofficial
दादा कोंडके का पूरा नाम कृष्णा ‘दादा कोंडके’ था। उनका जन्म मुंबई के नायगांव में 8 अगस्त 1932 को एक चॉल में कोली परिवार में हुआ था। उनका परिवार कॉटन की मिल में काम करता था और किसी का भी फिल्मी दुनिया से दूर-दूर तक से नाता नहीं था। दादा कोंडके ने साल 1998 में ‘रेडिफ’ को दिए इंटरव्यू में बताया था कि बचपन में उनका चॉल और आसपास के इलाके में खूब आतंक था। चॉल में जहां दादा कोंडके का परिवार रहता था, वहां बहुत ही बदहाल स्थिति थी। लोग कबूतर के घोंसलों जैसे घरों में रहते थे और हर तरफ गंदगी थी। लेकिन दादा कोंडके तो एकदम आतंक थे। दादा कोंडके ने बताया था कि उनके इलाके में कोई भी किसी को परेशान करता या उत्पात मचाता तो वह उसकी कुटाई कर देते थे। फिर पानी की बोतल हो या फिर पत्थर या ईंट, जो हाथ में आया, दादा कोंडके उसी से बदला लेते थे।
भाई को छोड़ पूरे परिवार की मौत
एक्टर जगदीप के साथ दादा कोंडके, फोटो: Twitter@FilmHistoryPics
लेकिन जो दादा कोंडके दूसरों की नाक में दम कर देते थे, कभी उनके ऊपर विपत्ति टूटेगी, यह सपने में भी नहीं सोचा था। दादा कोंडके का पूरा परिवार एक हादसे में मर गया और सिर्फ बड़ा भाई ही बचा। यह घटना कब घटी, यह तो पता नहीं, पर उस त्रासदी ने दादा कोंडके को बेहाल कर दिया था। उस भयावह घटना को याद कर दादा कोंडके ने बताया था, ‘मैं बुरी तरह टूट गया था। सोचता था कि भगवान ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैं किसी से बात नहीं करता था। खाना तक नहीं खाया जाता था। मुझे लगा कि मैं पागल हो जाऊंगा। फिर अचानक ही मैंने फैला किया कि मैं अपना दुख भूलकर क्यों न लोगों को हंसाऊं? इस तरह मैंने कॉमेडी करना शुरू कर दिया।’
राशन की दुकान और लोकल बैंड में काम
दादा कोंडके, फोटो: YouTube
परिवार के जाने के बाद दादा कोंडके ने गुजारे के लिए पास ही ‘अपना बाजार’ नाम की मार्केट में एक दुकान पर 60 रुपये में काम करना शुरू कर दिया। वह दुकान पर राशन पैक करने का काम करते और इसके लिए महीने के 60 रुपये मिलते। दुकान पर नौकरी के अलावा दादा कोंडके ने शादी में बजाए जाने वाले बैंड के साथ काम करना शुरू कर दिया। वह बैंड वालों के साथ लगभग हर इंस्ट्रुमेंट बजाते थे और अच्छी तरह पारंगत हो चुके थे। बैंड में दादा कोंडके को प्ले करने का भी मौका मिला। लोग उनकी कॉमेडी के कायल हो गए और धीरे-धीरे चर्चे पूरे महाराष्ट्र फैल गए। दादा कोंडके का आखिरी प्ले ‘इच्छा माझी पूरी करा’ था, जो इतना हिट रहा कि 1500 रातों तक चला। गोवा तक में दोदा कोंडके चर्चित हो गए थे।
आशा भोसले की बदौलत बने एक्टर
दादा कोंडके, फोटो: ETimes
सिंगर आशा भोसले भी दादा कोंडके की फैन थीं। वह दादा कोंडके का मुंबई में होने वाला ‘इच्छा माझी’ शो जरूर देखने जाती थीं। उन्हीं की बदौलत दादा कोंडके को फिल्मों में मौका मिला और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दादा कोंडके ने 1969 में मराठी फिल्म ‘ताम्बड़ी माटी’ से एक्टिंग डेब्यू किया। इस फिल्म को बेस्ट मराठी फीचर फिल्म का नैशनल अवॉर्ड मिला था। साल 1971 में दादा कोंडके प्रोड्यूसर बन गए और कई फिल्में बनाईं। उन्होंने कई फिल्में बनाईं। लेकिन इनमें डबल मीनिंग डायलॉग होते थे और टाइटल भी द्विअर्थी होते थे। बताया जाता है कि दादा कोंडके की फिल्मों से सेंसर बोर्ड की भी नींद उड़ी रहती थी। लेकिन एक्टर ऐसे तर्क देते थे कि सेंसर बोर्ड भी दादा कोंडके की फिल्मों को बैन नहीं कर पाता था।
सेक्स कॉमेडी की शुरुआत, गिनीज रिकॉर्ड
दादा कोंडके की 9 फिल्में ऐसी रहीं, जिन्होंने सिल्वर जुबली मनाई। यानी वो थिएटर्स में लगातार 25 हफ्तों तक चलीं। इस वजह से दादा कोंडके का नाम गिनीज बुक में दर्ज किया गया। लेकिन दादा कोंडके का 14 मार्च 1998 को निधन हो गया। उन्होंने नलिनी नाम की महिला से शादी की थी, लेकिन 1967 में ही उनका तलाक हो चुका था। बाद में वह अकेले ही रह गए।