जलवायु संकट का नतीजा है आफत की बारिश | The result of the climate crisis is the rain of disaster | Patrika News

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जलवायु संकट का नतीजा है आफत की बारिश | The result of the climate crisis is the rain of disaster | Patrika News

जलवायु संकट का नतीजा है आफत की बारिश | The result of the climate crisis is the rain of disaster | Patrika News


भोपालPublished: Mar 24, 2023 02:50:13 pm

किसानों पर चौतरफा मार पड़ रही है। बजट में कृषि पर जो खर्च निर्धारित किया जाता है, दुर्भाग्यवश पिछले दस वर्षों में उससे काफी कम खर्च किया गया।

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बेमौसम आंधी, बारिश और ओलावृष्टि किसानों पर कहर बनकर टूटी है। मप्र के ज्यादातर इलाकों में पिछले चार दिन से रुक-रुककर बारिश का दौर जारी है। अभी 25 से 30 प्रतिशत किसान ही रबी की फसल काट पाए हैं। ऐसे में गेहूं और सरसों की फसलों को काफी नुकसान हुआ है। गेहूं की फसल खेतों में गिर गयी है। सरसों की फलियां चटक गयी हैं। हालांकि, कृषि और बीमा अधिकारी इसे बड़ा नुकसान नहीं मान रहे। पर किसानों के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें हैं। लगातार आठवें साल किसानों की किसानों की कुल आय खेती से घटी है। एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार अब किसान की आय खेती से महज 37 प्रतिशत रह गयी है। ऐसे में बारिश ने रही-सही कमाई पर भी बट्टा लगा दिया है। ऐसे में घर खर्च के लिए अब 60 प्रतिशत किसानों को मजबूरन अपने श्रम को बाजार में बेचना पड़ेगा। सीधे शब्दों में कहें तो उन्हें मजदूरी करनी पड़ेगी। कृषि पर संसदीय समिति की रिपोर्ट बताती है कि किसानों को पशुपालन से महज 15 प्रतिशत की आय होती है। बारिश से पशुओं के चारे की भी किल्लत होगी। ऐसे में उसे पशुपालन से भी घाटा होना तय है।
किसानों पर चौतरफा मार पड़ रही है। बजट में कृषि पर जो खर्च निर्धारित किया जाता है, दुर्भाग्यवश पिछले दस वर्षांे में उससे काफी कम खर्च किया गया। वर्ष 1919-21 में तो बजट राशि में से 28 प्रतिशत कम खर्च हुआ। किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं के जरिए बजट की 55 प्रतिशत से राशि अब नगदी के रूप में दी जा रही है। राजनीति से प्रेरित इन लोकलुभावन कामों से कृषि और उत्पादकता की दीर्घकालीन नीतियां प्रभावित हो रही हैं। गंभीर बात यह है कि इससे फूड सस्टेनबिलिटी के लिए नए खाद्यान्न विकल्प खोजने में भी बाधा आ रही है। विकल्पहीनता की स्थिति में किसान परंपरागत खेती को ही बाध्य हैं। बेमौसम बारिश जलवायु संकट का नतीजा है। इस तरह की स्थितियां अब हर साल बनेंगी। इसलिए किसानों के लिए अब फूड सिक्योरिटी के साथ-साथ उनकी आय बढ़ाने के नए तरीकों पर भी गंभीरता से सोचना होगा। पूरी दुनिया में हंगर इंडेक्स से बाहर निकलने की नीति पर काम हो रहा है। न्यूट्रिशनल डाइट के ठोस विकल्प तलाशे जा रहे हैं। फूड सिक्योरिटी के साथ-साथ शून्य कार्बन उत्सर्जन जैसे उपायों पर काम हो रहा है। वनस्पतियों पर आधारित खाद्य पदार्थ, प्रोटीन,आयरन, कैल्शियम, विटामिन डी, ओमेगा-3, फाइबर और एंटी ऑक्सीडेंट वाली फसलों को बोने पर जोर दिया जा रहा है। पर्यावरण अनुकूल फसलों को उगाकर ही पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली हासिल की जा सकती है। फूड प्रोडॅक्शन और खाने-पीने की आदतें पर्यावरण के अनुकूल हों तो सेहत तो सुधरेगी ही किसानों की आर्थिक हालत भी ठीक होगी। मौसम की मार से बचना है तो इस दिशा में भी गंभीरता से सोचना होगा।

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