क्या मोबाइल से खिंच सकती है कैमरे जैसी तस्वीर? फ़िर कैसे बिक जाते हैं 400 करोड़ के DSLR?

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क्या मोबाइल से खिंच सकती है कैमरे जैसी तस्वीर? फ़िर कैसे बिक जाते हैं 400 करोड़ के DSLR?

क्या मोबाइल से खिंच सकती है कैमरे जैसी तस्वीर? फ़िर कैसे बिक जाते हैं 400 करोड़ के DSLR?

नई दिल्लीः ‘तस्वीर लेना भी ज़रूरी है ज़िंदगी में साहब, आइने गुज़रा वक्त नहीं बताया करते…।’ यह एक लाइन इतनी बार, इतनी जगह इस्तेमाल हुई है कि इससे आपका भी सामना ज़रूर हुआ होगा। लेकिन, तस्वीर लेने की यह ज़रूरत, यदि शौक के साथ मिल जाए तो यह कितनी ख़र्चीली हो सकती है, इसका अंदाज़ा इसी से लगा लीजिए कि दिल्ली का फ़ोटो बाज़ार 400 करोड़ का है। इसका मतलब है कि यहां हर साल करीब 400 करोड़ के कैमरे और एसेसरीज बिक जाते हैं। यह हालत तब है, जबकि हर ज़ेब में मोबाइल है और हर मोबाइल में कैमरा। लेकिन, करोड़ों मोबाइल कैमरों वाली दिल्ली में कुछ हज़ार डीएसएलआर (डिजिटल सिंगल लेंस रिफ्लेक्स) कैमरे, यहां के फ़ोटो बाज़ार में किसी बादशाह की मानिंद शान से बरकरार हैं।

मोबाइल ने छोटा किया कैमरे का बाजार

लाल किला मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलिए तो कुछ कदम चलने पर ही फ़ोटो मार्केट है। मार्केट बाहर से सामान्य नज़र आता है, लेकिन अंदर जाइए तो एक अलग ही दुनिया है। हर तरफ़ कैमरे, लेंस, ट्राइपॉड नज़र आते हैं और नज़र आते हैं इन्हें दिखाते हुए दुकानदार, इनके बारे में जानकारी लेते ग्राहक। कुछ दुकानों पर कैमरे खुले पड़े हैं और इनकी मरम्मत हो रही है। जितना अच्छा कैमरा, उतनी अधिक क़ीमत और मरम्मत में ख़र्च भी उतना ही ज्यादा। एक दुकानदार विकास से बातचीत शुरू होती है। यह पूछने पर कि क्या मोबाइल के कारण कैमरों के बाज़ार पर कोई असर पड़ा है? विकास मुस्करा देते हैं। कहते हैं, फ़र्क तो हर चीज़ का पड़ता ही है लेकिन यदि आप यह जानना चाहते हैं कि मुनाफ़ा कम हो रहा है या अधिक, तो हम कहना चाहेंगे पहले से अधिक। यदि ऐसा ना भी हो तो यूं समझिए कि रकम के हिसाब से पहले से कम बिक्री नहीं हो रही। हां, यदि कैमरों की संख्या की बात करेंगे तो उस लिहाज़ से ज़रूर बिक्री घटी है। पहले कम रेंज के छोटे कैमरे सबसे अधिक बिकते थे, जबकि अब इनका मार्केट ख़त्म हो गया है। अब ग्राहक सिर्फ डीएसएलआर (डिजिटल सिंगल लेंस रिफ्लेक्स) मांगते हैं, जिसकी क़ीमत ही शुरू होती है 37-48 हज़ार से। अब इस तरह यदि पहले 4-5 हज़ार के 8 कैमरे बेचते और अब एक कैमरा बेचते हैं, तो बात एक ही है। जबकि, डीएसएलआर कैमरों की बिक्री भी अच्छी है। इनमें भी 4k कैमरे काफ़ी महंगे हैं। आप सोचिए कि कुछ कैमरे तो 2-ढाई करोड़ तक के हैं। यदि ऐसा कैमरा सप्ताह-महीने में एक भी बिक जाता हो तो क्या बुरा है?

प्रोफेशनल की पसंद DSLR

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फोटो मार्केट में ही संजीव बंसल मिल जाते हैं। कैमरे की अच्छी जानकारी रखने वाले संजीव भी वही बात दोहराते हैं, जो पहले विकास कह चुके होते हैं। संजीव कहते हैं, मोबाइल की वजह से कैमरों के बाज़ार पर फर्क ज़रूर पड़ा है, लेकिन छोटे कैमरों पर। स्टील कैमरे पहले ख़त्म हुए, फ़िर दूसरे छोटे कैमरे भी कंपनियों ने बनाने बंद कर दिए, क्योंकि इनकी क्वालिटी जैसी ही तस्वीरें मोबाइल कैमरों से भी खींची जा सकती हैं। लेकिन, डीएसएलआर ने न सिर्फ कैमरों का बाज़ार ख़त्म होने से रोक लिया है, बल्कि तस्वीरों की दुनिया में इसका दबदबा भी बरकरार रखा है। इसका कारण यह है कि डीएसएलआर वाली तस्वीरें अब भी कोई मोबाइल कैमरा नहीं दे सकता है। मोबाइल से कैमरों की तस्वीरें कितनी अलग होती हैं? इस सवाल पर संजीव कहते हैं, आप इसे यूं समझिए कि मोबाइल की मास्टरी बात करने की है, जबकि कैमरे की मास्टरी फ़ोटो खींचने की। 40 हज़ार के एक मोबाइल में कैमरे के अलावा भी बहुत कुछ होता है, जबकि 40 हज़ार खर्च पर हम एक डीएसएलआर कैमरा लेते ही हैं, सिर्फ तस्वीर खींचने के लिए। दोनों की तस्वीरों में जमीन-आसमान का फर्क होता है। प्रोफेशनल आज भी डीएसएलआर ही पसंद करते हैं। मोबाइल रूटीन यूज़ के लिए ठीक है।

मोबाइल और कैमरे की तस्वीर में क्या है अंतर?

मोबाइल और कैमरे की तस्वीर में क्या है अंतर?

यह पूछने पर कि एक ही क़ीमत के मोबाइल और कैमरे से फ़ोटो खींचने पर किसकी तस्वीर अच्छी आएगी? संजीव कहते हैं, बेशक कैमरे की तस्वीर अच्छी होगी। क्यों? इस पर संजीव जवाब देते हैं, मोबाइल का सेंसर बहुत छोटा होता है, जबकि कैमरे का सेंसर और प्रोसेसर बड़ा होता है। अधिकतर मोबाइल यूज़र समझते हैं कि अधिक मेगापिक्सल वाले मोबाइल कैमरे से तस्वीर अच्छी आ जाएगी, मगर ऐसा नहीं है। मेगापिक्सल किसी फोटो को डिटेल्ड में कैप्चर करने का काम करता है, जबकि सेंसर किसी इमेज को क्रिएट करने के लिए बेहतर लाइट कैप्चर करता है। सिर्फ मेगापिक्सल से काम नहीं बनता। सेंसर का साइज़ भी महत्वपूर्ण है। ज्यादा मेगापिक्सल का मतलब है कि अधिक रिज़ॉल्यूशन वाली इमेज़ बन सकती है। लेकिन, क्वालिटी के लिए सेंसर साइज़ भी ज़रूरी है। बड़े सेंसर अधिक प्रकाश को कैप्चर कर सकते हैं, जिससे लो लाइट परफॉर्मेंस और इमेज़ क्वालिटी बेहतर आती है। इसके साथ ही लेंस की क्वालिटी भी मायने रखती है। लेंस के मामले में मोबाइल और डीएसएलआर में कोई तुलना नहीं है। संजीव उदाहरण से समझाते हैं: अब जैसे, आपको जूलरी की फोटो खींचनी है तो मैक्रो लेंस सही रहेगा, जबकि वाइड एंगल तस्वीर लेनी है तो यह वाइड एंगल लेंस से ही अच्छी आएगी। कैमरे में यह ख़ासियत है कि आप ज़रूरत के हिसाब से लेंस का इस्तेमाल कर सकते हैं। मोबाइल में फ़िलहाल ऐसी बात नहीं है।

DSLR में क्या ख़ास?

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यूं तो कैमरा और फोन की तस्वीरों में आज भी काफ़ी फर्क है लेकिन यह भी सही है कि स्मार्टफोन कैमरा ने छोटे डिजिटल कैमरों के मार्केट को तोड़कर रख दिया। CIPA यानी, कैमरा एंड इमेजिंग प्रॉडक्ट्स एसोसिएशन के अनुसार, 1951 से लेकर करीब 2010 तक फोटोग्राफी कैमरा में जबरदस्त बूम आया पर अचानक 2010 के बाद छोटे कैमरों का बाज़ार धड़ाम हो गया। इसका कारण स्मार्टफोन कैमरे ही थे। अब भी स्मार्टफोन कैमरे अपग्रेड हो रहे हैं। हालांकि ये डीएसएलआर से अभी भी पीछे है, इसलिए डीएसएलआर का बाज़ार बचा हुआ है। ऐसे में सवाल है कि इसमें ऐसा भी क्या ख़ास है? दरअसल, डीएसएलआर कैमरे सभी प्रकार के कैमरों में सबसे भारी और फीचर से भरपूर होते हैं। डीएसएलआर में लेंस बदलने की सुविधा के साथ ही मैन्युअल कंट्रोल भी मिलते हैं। इसमें बड़ा सेंसर, बेहतर डायनेमिक रेंज के साथ कुछ में तो 4K विडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा भी मिलती है।

​​क्या है क़ीमत?

​​क्या है क़ीमत?

डीएसएलआर में कैनन, निकोन, सोनी प्रमुख ब्राड्स हैं। हालांकि इनके अलावा पैनासोनिक, ओलिम्पस, फुजी, पेंटैक्स आदि कंपनियां भी डीएसएलआर कैमरे बनाती हैं। दुकानदार बताते हैं कि 40 से 60 हज़ार क़ीमत वाले कैमरे सबसे अधिक बिकते हैं, लेकिन इस शौक के कुछ कद्रदान लाखों से करोड़ों तक के कैमरे भी ख़रीदते हैं। कैनन EOS 1500D DSLR 38 हज़ार तक में आ जाता है। इसमें 18-55 mm लेंस मिलता है। तो वहीं, निकोन का ही D850 की क़ीमत ढाई लाख से अधिक है। इसमें 24-120 mm लेंस मिलता है। संजीव कहते हैं कि हम लोग पहले ग्राहक की रिक्वायरमेंट समझते हैं और फ़िर उसकी ज़रूरत के हिसाब से कैमरा सजेस्ट करते हैं। डीएसएलआर में भी फ्रेम और क्रॉप सेंसर वाले दो प्रकार के कैमरे होते हैं। फुल फ्रेम सेंसर से मतलब है वह सेंसर साइज़ जो 35 mm फॉर्मेट फ़िल्म के बराबर हो यानी 36 एमएम x 24 एमएम। फुल फ्रेम कैमरे अपने बड़े सेंसर के कारण भारी और महंगे आते हैं पर यह प्रोफेशनल फोटोग्राफी के लिए बेहतरीन माने जाते हैं| इनकी डायनामिक रेंज और कम रौशनी में फोटो खींचने की क्षमता बेहतरीन होती है। वहीं क्रॉप सेंसर या APSC (एडवांस फोटो सिस्टम टाइप-सी) कैमरे का सेंसर 35mm फिल्म या फुल फ्रेम सेंसर से छोटा होता है और इसलिए ये कैमरे हल्के और कुछ सस्ते होते हैं। APSC कैमरे का सेंसर कितना छोटा होगा, यह क्रॉप फैक्टर से तय होता है। इसी कारण इसे क्रॉप सेंसर कैमरा भी कहते हैं। इनका डायनामिक रेंज फुल फ्रेम कैमरों से कम होता है।

आने वाले दिनों में क्या ख़त्म हो जाएगा कैमरा?

आने वाले दिनों में क्या ख़त्म हो जाएगा कैमरा?

अब तो फ्लैगशिप फोन से काफी अच्छी तस्वीरें खींची जा रही हैं, ऐसे में आने वाले दिनों में कैमरे का भविष्य है? संजीव सवालिया अंदाज़ में ही जवाब देते हैं। कहते हैं, इतने महंगे मोबाइल आने के बाद भी क्या आपने किसी शादी समारोह में फोटोग्राफर को दुल्हन की तस्वीर मोबाइल से लेते हुए देखा है? जिस दिन ऐसा हो जाए, समझिएगा सच में कैमरा मार्केट के लिए संकट है, लेकिन तब तक नहीं।

फोटो मार्केट के प्रेजिडेंट ने क्या कहा?

फोटो मार्केट के प्रेजिडेंट ने क्या कहा?

फोटो ट्रेडर्स असोसिएशन के प्रेजिडेंट हैं विजय सेठी। विजय सेठी इस मार्केट के दुकानदारों की ही बात आगे बढ़ाते हैं। वह कहते हैं, आम आदमी कैमरों से मोबाइल पर शिफ्ट हो गया, लेकिन प्रोफेशनल अभी भी कैमरों की ही मांग करते हैं। यही कारण है कि आम आदमी के इस्तेमाल वाले कैमरे बंद हो गए, लेकिन डीएसएलआर का जलवा बरकरार है। इन कैमरों की बदौलत दिल्ली में सालाना करीब 300 से 400 करोड़ का कारोबार होता है। वेडिंग सीजन में कैमरों की मांग बढ़ जाती है, क्योंकि तमाम मोबाइल से तस्वीरें खींची जाने के बाद भी फील तो तभी आता है, तब तस्वीर कैमरे से खींची जाती है।

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