कोरोना संकट में राहत के लिए नए नोट छापने से इस तरह भड़क सकती है महंगाई h3>
हाइलाइट्स:
- नए नोट छापने (Money Printing) से अर्थव्यवस्था की सेहत को सुधारने के तर्क दिए जा रहे हैं।
- नोट छापने (Money Printing) की पूरी प्रक्रिया के लिए 3 साल तक की एडवांस प्लानिंग की जरूरत होती है।
- नए नोट छापने (Money Printing) का सबसे बड़ा खतरा इंफ्लेशन (Inflation) बढ़ना ही है।
नई दिल्ली
देश में कोरोना संकट (Covid Crisis) के दूसरे चरण की वजह से अर्थव्यवस्था (Economy) पर काफी असर पड़ा है। कोविड19 की दूसरी लहर ने आर्थिक गतिविधियों (Economic Activities) को फिर से झटका दे दिया तो विभिन्न तबकों की ओर से बड़े वित्तीय प्रोत्साहन (Stimulas) की मांग उठ रही है। इसमें मनी प्रिंटिंग भी शामिल है। विश्लेषकों का कहना है कि नोट छापने (Money Printing) से अर्थव्यवस्था की सेहत को सुधारा जा सकता है और कोविड महामारी की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुए सेक्टर्स को राहत दी जा सकती है।
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नए नोट छापने की प्लानिंग
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत की इकनॉमी में नकदी बढ़ाकर आम नागरिक की खर्च करने की क्षमता बढ़ाई जाए। देश की अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने (Liquidity) के लिए तुरंत नोट छापना संभव नहीं है। नए नोट छापने (Money Printing) की पूरी प्रक्रिया के लिए 3 साल तक की एडवांस प्लानिंग की जरूरत होती है। नोट छापने (Money Printing) के लिए जरूरी प्रिंटिंग पेपर के लिए छह महीने की वेटिंग होती है जबकि इंक के लिए एक साल पहले आर्डर देना होता है। नोट छापने (Money Printing) की पूरी प्रक्रिया के लिए 3 साल तक की एडवांस प्लानिंग की जरूरत होती है।
नए नोट छापने से खतरा
अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के लिए नए नोट छापने (Money Printing) का सबसे बड़ा खतरा इंफ्लेशन (Inflation) बढ़ना ही है। जिम्बाब्वे और वेनेजुएला जैसे देशों में सरकार ने राहत देने के लिए नोट छापे तो वहां महंगाई (Inflation) चरम पर पहुंच गई। दोनों देशों में अर्थव्यवस्था को खराब हालत से उबारने के लिए सरकारों ने नोट छपवाए। इकनॉमी में पैसा बढ़ा तो चीजों की मांग भी बढ़ी। जिम्बाब्वे में साल 2008 में महंगाई (Inflation) की वृद्धि दर करोड़ों में पहुंच गई थी। छोटी सी चीज़ खरीदने के लिए भी बोरा भरकर पैसे ले जाना पड़ता था। जिम्बाब्वे में 1 अंडे की कीमत 30 अरब से ज़्यादा हो गई थी। वेनेजुएला में भी कुछ ऐसा ही देखा गया था।
महंगाई बढ़ने का असर
इस तरह महंगाई (Inflation) बढ़ने को अर्थशास्त्र में हाइपरइंफ्लेशन कहा जाता है। किसी देश की अर्थव्यवस्था अगर एक बार हाइपरइंफ्लेशन मोड में पहुंच जाए तो वहां से निकलना मुश्किल साबित होता है। देश की मुद्रा नीति (Monetary Policy) का देश के सभी नागरिकों पर समान प्रभाव पड़ता है। महंगाई (Inflation) बढ़ने के बाद देश के सभी लोगों की परचेसिंग पावर कम हो जाती है। इस हिसाब से उन्हें इनडायरेक्ट रूप से अधिक टैक्स देना पड़ता है। यदि आपको पहले ₹100 में 5 किलो गेहूं मिलता था और अब महंगाई (Inflation) बढ़ने की वजह से इसकी जगह 4 किलो गेहूं मिलता है, तो यह समझ लीजिए कि 1 किलो गेहूं आपने टैक्स के रूप में चुका दिया है।
नकदी का चलन बढ़ा
आरबीआई के आंकड़े के अनुसार, मार्च, 2021 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी का चलन (Money Circulation) बढ़कर 28.6 खबर रुपये पहुंच गया। यह पिछले साल के मुकाबले 16.8 फीसदी अधिक है। मार्च 2019 तक नकदी का चलन (Money Circulation) 21 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। साल 2016-17 में भारत की अर्थव्यवस्था में करेंसी का सर्कुलेशन (Money Circulation) घटकर 13 लाख करोड़ पर पहुंच गया था। महज कुछ वर्षों में ही 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की नकदी छाप ली गई है।
RBI के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने क्या कहा?
RBI के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने कहा कि मॉनेटरी एक्सपेंशन (Monetary Expension) एक तरह से अप्रत्यक्ष तरीके से पहले से हो रहा है। आरबीआई भी विभिन्न परिचालनों के जरिए बड़े पैमाने पर लिक्विडिटी सिस्टम में मुहैया करा रहा है। केन्द्रीय बैंक की मदद से उधारी के जरिए खर्च को सहयोग मिल रहा है। रंगराजन के मुताबिक, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए सरकार का खर्च बढ़ाए जाने की जरूरत है। वैक्सिनेशन के लिए भी रकम का आवंटन दोगुना करने की जरूरत है।
डी सुब्बाराव की क्या है राय?
RBI के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव का कहना है कि मौजूदा हालात में आरबीआई को घाटे का प्रत्यक्ष तौर पर मॉनेटाइजेशन (Direct Monetisation) करने की जरूरत नहीं है। अगर ऐसा किया गया तो फायदे से कहीं ज्यादा लागत होगी। बैंकिंग सिस्टम में पहले ही भारी मात्रा में लिक्विडिटी (Liquidity) है। बैंक फंड से भरे पड़े हैं और उन्हें सरकार को फाइनेंस मुहैया कराने में खुशी होगी। उन्होंने कहा कि डायरेक्ट मॉनेटाइजेशन (Direct Monetisation) किसी भी देश के लिए आखिरी उपाय होना चाहिए, विशेषकर भारत जैसे उभरते देश के लिए। डायरेक्ट मॉनेटाइजेशन (Direct Monetisation) हमारी पॉलिसी क्रेडिबिलिटी को नुकसान पहुंचाएगा, जो लॉन्ग टर्म में महंगा साबित होगा।
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हाइलाइट्स:
- नए नोट छापने (Money Printing) से अर्थव्यवस्था की सेहत को सुधारने के तर्क दिए जा रहे हैं।
- नोट छापने (Money Printing) की पूरी प्रक्रिया के लिए 3 साल तक की एडवांस प्लानिंग की जरूरत होती है।
- नए नोट छापने (Money Printing) का सबसे बड़ा खतरा इंफ्लेशन (Inflation) बढ़ना ही है।
देश में कोरोना संकट (Covid Crisis) के दूसरे चरण की वजह से अर्थव्यवस्था (Economy) पर काफी असर पड़ा है। कोविड19 की दूसरी लहर ने आर्थिक गतिविधियों (Economic Activities) को फिर से झटका दे दिया तो विभिन्न तबकों की ओर से बड़े वित्तीय प्रोत्साहन (Stimulas) की मांग उठ रही है। इसमें मनी प्रिंटिंग भी शामिल है। विश्लेषकों का कहना है कि नोट छापने (Money Printing) से अर्थव्यवस्था की सेहत को सुधारा जा सकता है और कोविड महामारी की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुए सेक्टर्स को राहत दी जा सकती है।
यह भी पढ़ें: आपको भी कोई नकली जीरा, सरसों तेल या सेनेटाइजर तो नहीं बेच गया, जानिए क्या है वजह?
नए नोट छापने की प्लानिंग
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत की इकनॉमी में नकदी बढ़ाकर आम नागरिक की खर्च करने की क्षमता बढ़ाई जाए। देश की अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने (Liquidity) के लिए तुरंत नोट छापना संभव नहीं है। नए नोट छापने (Money Printing) की पूरी प्रक्रिया के लिए 3 साल तक की एडवांस प्लानिंग की जरूरत होती है। नोट छापने (Money Printing) के लिए जरूरी प्रिंटिंग पेपर के लिए छह महीने की वेटिंग होती है जबकि इंक के लिए एक साल पहले आर्डर देना होता है। नोट छापने (Money Printing) की पूरी प्रक्रिया के लिए 3 साल तक की एडवांस प्लानिंग की जरूरत होती है।
नए नोट छापने से खतरा
अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के लिए नए नोट छापने (Money Printing) का सबसे बड़ा खतरा इंफ्लेशन (Inflation) बढ़ना ही है। जिम्बाब्वे और वेनेजुएला जैसे देशों में सरकार ने राहत देने के लिए नोट छापे तो वहां महंगाई (Inflation) चरम पर पहुंच गई। दोनों देशों में अर्थव्यवस्था को खराब हालत से उबारने के लिए सरकारों ने नोट छपवाए। इकनॉमी में पैसा बढ़ा तो चीजों की मांग भी बढ़ी। जिम्बाब्वे में साल 2008 में महंगाई (Inflation) की वृद्धि दर करोड़ों में पहुंच गई थी। छोटी सी चीज़ खरीदने के लिए भी बोरा भरकर पैसे ले जाना पड़ता था। जिम्बाब्वे में 1 अंडे की कीमत 30 अरब से ज़्यादा हो गई थी। वेनेजुएला में भी कुछ ऐसा ही देखा गया था।
महंगाई बढ़ने का असर
इस तरह महंगाई (Inflation) बढ़ने को अर्थशास्त्र में हाइपरइंफ्लेशन कहा जाता है। किसी देश की अर्थव्यवस्था अगर एक बार हाइपरइंफ्लेशन मोड में पहुंच जाए तो वहां से निकलना मुश्किल साबित होता है। देश की मुद्रा नीति (Monetary Policy) का देश के सभी नागरिकों पर समान प्रभाव पड़ता है। महंगाई (Inflation) बढ़ने के बाद देश के सभी लोगों की परचेसिंग पावर कम हो जाती है। इस हिसाब से उन्हें इनडायरेक्ट रूप से अधिक टैक्स देना पड़ता है। यदि आपको पहले ₹100 में 5 किलो गेहूं मिलता था और अब महंगाई (Inflation) बढ़ने की वजह से इसकी जगह 4 किलो गेहूं मिलता है, तो यह समझ लीजिए कि 1 किलो गेहूं आपने टैक्स के रूप में चुका दिया है।
नकदी का चलन बढ़ा
आरबीआई के आंकड़े के अनुसार, मार्च, 2021 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी का चलन (Money Circulation) बढ़कर 28.6 खबर रुपये पहुंच गया। यह पिछले साल के मुकाबले 16.8 फीसदी अधिक है। मार्च 2019 तक नकदी का चलन (Money Circulation) 21 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। साल 2016-17 में भारत की अर्थव्यवस्था में करेंसी का सर्कुलेशन (Money Circulation) घटकर 13 लाख करोड़ पर पहुंच गया था। महज कुछ वर्षों में ही 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की नकदी छाप ली गई है।
RBI के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने क्या कहा?
RBI के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने कहा कि मॉनेटरी एक्सपेंशन (Monetary Expension) एक तरह से अप्रत्यक्ष तरीके से पहले से हो रहा है। आरबीआई भी विभिन्न परिचालनों के जरिए बड़े पैमाने पर लिक्विडिटी सिस्टम में मुहैया करा रहा है। केन्द्रीय बैंक की मदद से उधारी के जरिए खर्च को सहयोग मिल रहा है। रंगराजन के मुताबिक, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए सरकार का खर्च बढ़ाए जाने की जरूरत है। वैक्सिनेशन के लिए भी रकम का आवंटन दोगुना करने की जरूरत है।
डी सुब्बाराव की क्या है राय?
RBI के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव का कहना है कि मौजूदा हालात में आरबीआई को घाटे का प्रत्यक्ष तौर पर मॉनेटाइजेशन (Direct Monetisation) करने की जरूरत नहीं है। अगर ऐसा किया गया तो फायदे से कहीं ज्यादा लागत होगी। बैंकिंग सिस्टम में पहले ही भारी मात्रा में लिक्विडिटी (Liquidity) है। बैंक फंड से भरे पड़े हैं और उन्हें सरकार को फाइनेंस मुहैया कराने में खुशी होगी। उन्होंने कहा कि डायरेक्ट मॉनेटाइजेशन (Direct Monetisation) किसी भी देश के लिए आखिरी उपाय होना चाहिए, विशेषकर भारत जैसे उभरते देश के लिए। डायरेक्ट मॉनेटाइजेशन (Direct Monetisation) हमारी पॉलिसी क्रेडिबिलिटी को नुकसान पहुंचाएगा, जो लॉन्ग टर्म में महंगा साबित होगा।
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