कांग्रेस के लिए ‘बूस्टर डोज’ की तरह है ‘भारत जोड़ो यात्रा’, MP-राजस्थान जैसे चुनावी राज्यों में दिखेगा असर?
इन राज्यों में हैं इस साल चुनाव
इस साल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने के आसार हैं। इनमें से चार राज्यों-कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना से होकर भारत जोड़ो यात्रा गुजरी है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 4,000 किलोमीटर की यात्रा ने निश्चित रूप से इन राज्यों के पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा है। हालांकि, क्या यह इन संबंधित राज्यों के विधानसभा चुनाव में रंग दिखा पाएगी? यह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या संबंधित प्रदेश इकाइयां इस गति को बनाए रख सकती हैं और आगे क्या, के सवाल का जवाब देना जारी रख सकती हैं। साथ ही, संगठन के स्तर पर एकता भी एक महत्वपूर्ण चुनौती-विशेषकर राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में है। जहां पारंपरिक रूप से पार्टी गुटबाजी से प्रभावित रही है।
राजस्थान में पायलट-गहलोत खेमा आमने-सामने
कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस को इस यात्रा से कुछ फायदा हासिल होता दिख रहा है। हालांकि, राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके कट्टर विरोधी सचिन पायलट खेमे के बीच गुटबाजी जारी है। यही नहीं राहुल गांधी का पैदल मार्च इसे सुलझाने में नाकाफी रहा है। कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का राजस्थान फेज जैसे ही 21 दिसंबर को आखिरी दौर में पहुंचा तो कांग्रेस ने राहत की सांस ली। ऐसा इसलिए क्योंकि यात्रा के दौरान सड़कों पर नारेबाजी के बावजूद राज्य में गहलोत और पायलट समर्थकों के बीच बिना किसी टकराव के आगे बढ़ी।
राजस्थान में क्या होगी कांग्रेस की फिर सत्ता में वापसी
हालांकि, इसके तुरंत बाद सचिन पायलट ने राज्य में कई जनसभाओं की घोषणा की। जिसमें लोगों ने उनकी ताकत देखी और यह आलाकमान के लिए एक संदेश की तरह था कि उनकी चिंताओं का अब तक समाधान नहीं हुआ है। रैलियों में अपने संबोधन के दौरान पायलट ने गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को बार-बार पेपर लीक की घटनाओं, पार्टी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर रिटायर्ड नौकरशाहों की राजनीतिक नियुक्ति जैसे मुद्दों पर घेरा। वहीं, पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की उनके खेमे की मांग ने फिर से जोर पकड़ लिया और उनके विश्वस्त नेता खुलेआम राज्य में उन्हें मुख्यमंत्री पद दिए जाने की वकालत कर रहे हैं।
क्या कहते हैं सियासी एक्सपर्ट
राजस्थान में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहा कि अगर कांग्रेस राज्य में सत्ता में आती है तो गहलोत-पायलट सवाल को सुलझाने की जरूरत है, नहीं तो यात्रा से मिले फायदे का कोई लाभ नहीं होगा। पार्टी के एक कार्यकर्ता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘यात्रा से पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा मिला है लेकिन कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं के बीच अब भी मुद्दे अनसुलझे हैं जो निश्चित रूप से अगले चुनावों में पार्टी की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे।’ अन्य पार्टी कार्यकर्ता ने कहा कि यह पार्टी के सभी नेताओं के लिए जरूरी है कि वे एकजुट रहें और गहलोत-पायलट की लड़ाई पार्टी को कमजोर कर सकती है।
मध्य प्रदेश-कर्नाटक में भी कांग्रेस कर रही वापसी का कवायद
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे अन्य चुनावी राज्यों में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भी यही भावना है। ऐसा इसलिए क्योंकि नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाना नेतृत्व के लिए बड़ा सवाल बना हुआ है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने हाल में कहा था कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और निजी लक्ष्य कांग्रेस के लिए अभिशाप रहे हैं। कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के दावेदार सिद्धरमैया और डी के शिवकुमार के बीच बढ़ते तनाव की छाया के बावजूद यात्रा के बीतने के बाद कांग्रेस सही दिशा में दिख रही है। पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष शिवकुमार और विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धरमैया के नेतृत्व में पार्टी ने ‘प्रजा ध्वनि यात्रा’ नाम से एक राज्यव्यापी बस यात्रा शुरू की है।
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पार्टी कार्यकर्ताओं के जोश से ही दिखेगा रिजल्ट पर असर
विश्लेषकों का कहना है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 2023 चुनाव के लिए यात्रा से फायदा हासिल करने की खातिर राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित करके इस गति को बनाए रखना होगा। मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एससी त्रिपाठी ने कहा, ‘भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को 2023 के चुनावों में लाभ प्राप्त करने के लिए आगे की कार्रवाई करनी होगी। पार्टी को इसके लिए योजना बनानी चाहिए।’ वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई ने कहा कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यात्रा ने मध्य प्रदेश में पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया है और उनमें नई ऊर्जा भरी है, लेकिन मतदाताओं के बीच इसका असर चुनाव के समय ही दिखाई देगा।