ओपिनियन: टोक्यो से नई दिल्ली तक ट्रम्प की जोखिम भरी ट्रेड डिप्लोमेसी ने नए ग्लोबल ऑर्डर की नींव रखी h3>
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नई दिल्ली24 मिनट पहले
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 13 फरवरी को टैरिफ लगाने से जुड़े एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर दस्तखत किए थे।
इस हफ्ते राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जापान के इकोनॉमिक रिवाइटलाइजेशन मिनिस्टर रयोसेई अकाजावा से मुलाकात की और रेसिप्रोकल यानी जवाबी टैरिफ पर बातचीत शुरू की। इस मुद्दे पर यह उनकी पहली आमने-सामने की मीटिंग थी।
बातचीत अगले हफ्ते भी जारी रहेगी। इसका नतीजा सिर्फ जापान के लिए नहीं, बल्कि हर उस शख्स के लिए अहम होगा, जो ये समझना चाहता है कि नया ग्लोबल ऑर्डर कैसा होगा।
ट्रम्प और जापानी टीम के बीच जो होगा, उससे तय होगा कि आगे क्या होने वाला है। ट्रम्प जानते हैं कि दोनों देशों को थोड़ी-बहुत तकलीफ झेलनी होगी, क्योंकि बदलाव आसान नहीं होते। वे चाहेंगे कि सभी देश अपनी करेंसी (मुद्रा) की वैल्यू बढ़ाएं ताकि डॉलर के मुकाबले उसका रेट ठीक हो सके। जापानी येन पहले ही 159 से 143 प्रति डॉलर तक मजबूत हो चुका है। क्या इसमें और सुधार की जरूरत है? शायद 10% और?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 16 अप्रैल को जापान के इकोनॉमिक रिवाइटलाइजेशन मिनिस्टर रयोसेई अकाजावा (बाएं) से व्हाइट हाउस में मुलाकात की थी।
ट्रम्प यह भी चाहेंगे कि जापान जैसे देश अमेरिका में कुछ खास इंडस्ट्रीज में निवेश करें। जापान के मामले में वे चाहेंगे कि टोयोटा जैसी कंपनियां अमेरिका में अपनी फैक्ट्री और सप्लायर नेटवर्क बढ़ाएं। अन्य कंपनियों और उत्पादों को भी अलग से चिह्नित किया जाएगा।
उनके समझौते का फोकस यह होगा कि अमेरिका और जापान मिलकर सस्ती और अच्छी क्वालिटी की चीजें बना सकें, खासतौर से चीन के मुकाबले में। चीन को देखें, तो वह बड़े पैमाने पर बेहद कम दाम में चीजें बनाता है। इसमें सब्सिडी और सस्ता एक्सचेंज रेट बड़ी वजह है। दोनों देश मिलकर चीन को पीछे छोड़ सकते हैं। हालांकि, ये आसान नहीं होगा।
चीन की सब्सिडी और सस्ते एक्सचेंज रेट की वजह से वह ज्यादा सस्ती चीजें बनाता है। इसलिए ट्रंप का इरादा है कि जापान और अमेरिका साथ मिलकर चीन से मुकाबला करें। मकसद चीन को ग्लोबल ट्रेड में पीछे छोड़ना है।
ट्रम्प की नई पॉलिसी के मुताबिक हर देश पर एक ही तरह का टैक्स नहीं लगेगा। यह प्रोडक्ट के हिसाब से तय होगा। ट्रम्प का मंत्र है: “पारस्परिकता, पारस्परिकता!” यानी जैसा व्यवहार आप करेंगे, वैसा ही जवाब मिलेगा। इसका मतलब है कि हर देश के साथ इस पैटर्न में थोड़ा फर्क हो सकता है।
अगर ट्रेड बैलेंस हो और दोनों देश एक-दूसरे से बराबरी का व्यवहार करें, तो दोनों को फायदा होगा और उनका बाजार हिस्सेदारी भी बढ़ेगा। आपसी समझौतों के माध्यम से संतुलित व्यापार, साझा विकास की दौड़ के लिए रास्ता खोलता है। इससे इन दोनों देशों को चीन के साथ ट्रेड वॉर में अपना बाजार हिस्सा बढ़ाने में मदद मिल सकती है। यह एक नए तरह के ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत है।
ट्रम्प का मंत्र है- जैसा व्यवहार आप करेंगे, वैसा ही जवाब मिलेगा। इसका मतलब है कि हर देश के साथ इस पैटर्न में थोड़ा फर्क हो सकता है।
जापान और अमेरिका को राजनीतिक और सैन्य सहयोगियों के रूप में एक-दूसरे की जरूरत है। वहीं, चीन का खतरा साफ दिखाई दे रहा है। चीन ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस को घेरने की कोशिश कर रहा है, और ताइवान को लगभग घेर चुका है। लिहाजा, जापान के लिए कुछ गोपनीय समझौते भी हो सकते हैं।
मैं गलत हो सकता हूं, लेकिन मैंने ट्रम्प को लंबे समय तक देखा है। मेरा मानना है कि ट्रम्प एक निर्माता हैं। वे एक नए ग्लोबल सिस्टम का निर्माण करेंगे, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से मुकाबला करेगा। उनका काम दिखाई देने लगा है।
भारत की स्थिति अभी बहुत अच्छी है। मुझे लगता है कि ट्रम्प भारत के साथ भी इसी तरह की डील करेंगे, लेकिन एक फर्क रहेगा। वे चाहेंगे कि भारत चीन के व्यापार खतरे के खिलाफ ASEAN देशों में ज्यादा सहयोग करे, और अगर इस क्षेत्र में कोई सैन्य संघर्ष हो, तो उसमें भी साथ दे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल फरवरी में अमेरिकी दौरे पर गए थे। तस्वीर उसी वक्त की है।
इंडस्ट्री में मेरे जानने वाले लोग बताते हैं कि मोदी सरकार दिन-रात तैयारी कर रही है कि ट्रेड की बातचीत प्रोडक्ट-दर-प्रोडक्ट और इंडस्ट्री-दर-इंडस्ट्री हो। मंत्रालय स्थानीय कंपनियों से जानकारी मांग रहे हैं। भारत की कई इंडस्ट्रीज के लिए यह बड़ा मौका है, खासकर टेक्सटाइल और फार्मा जैसी इंडस्ट्रीज के लिए।
हम ये अंदाजा लगा सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है। एक परिदृश्य साफ है। भविष्य में भारत की करेंसी की वैल्यू भी बढ़ सकती है। साथ ही, चीन से मुकाबले के लिए भारतीय कंपनियों को अपनी लागत कम करनी होगी और क्वालिटी बढ़ानी होगी।
इसलिए, अमेरिका-भारत व्यापार वार्ताओं से अलग सभी कंपनियों को अपनी लागत और खर्च का स्तर फिर से व्यवस्थित करना शुरू कर देना चाहिए। कॉम्पटीशन में बने रहने के लिए अब डिजिटल तकनीक या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करना बेहद जरूरी हो गया है ताकि लागत को कम किया जा सके।
इस बीच भारत को ठोस रणनीतियां तलाशनी चाहिए ताकि वह ट्रम्प के कहे मुताबिक हर साल ₹41.75 लाख करोड़ (500 अरब डॉलर) का निर्यात अमेरिका को कर सके। इसी में भारत की आर्थिक वृद्धि और तकनीकी प्रगति का अवसर छिपा है।
भारत का भविष्य उज्ज्वल है- अब हमें सिर्फ शुरुआत करनी है।
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इस हफ्ते राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जापान के इकोनॉमिक रिवाइटलाइजेशन मिनिस्टर रयोसेई अकाजावा से मुलाकात की और रेसिप्रोकल यानी जवाबी टैरिफ पर बातचीत शुरू की। इस मुद्दे पर यह उनकी पहली आमने-सामने की मीटिंग थी।
बातचीत अगले हफ्ते भी जारी रहेगी। इसका नतीजा सिर्फ जापान के लिए नहीं, बल्कि हर उस शख्स के लिए अहम होगा, जो ये समझना चाहता है कि नया ग्लोबल ऑर्डर कैसा होगा।
ट्रम्प और जापानी टीम के बीच जो होगा, उससे तय होगा कि आगे क्या होने वाला है। ट्रम्प जानते हैं कि दोनों देशों को थोड़ी-बहुत तकलीफ झेलनी होगी, क्योंकि बदलाव आसान नहीं होते। वे चाहेंगे कि सभी देश अपनी करेंसी (मुद्रा) की वैल्यू बढ़ाएं ताकि डॉलर के मुकाबले उसका रेट ठीक हो सके। जापानी येन पहले ही 159 से 143 प्रति डॉलर तक मजबूत हो चुका है। क्या इसमें और सुधार की जरूरत है? शायद 10% और?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 16 अप्रैल को जापान के इकोनॉमिक रिवाइटलाइजेशन मिनिस्टर रयोसेई अकाजावा (बाएं) से व्हाइट हाउस में मुलाकात की थी।
ट्रम्प यह भी चाहेंगे कि जापान जैसे देश अमेरिका में कुछ खास इंडस्ट्रीज में निवेश करें। जापान के मामले में वे चाहेंगे कि टोयोटा जैसी कंपनियां अमेरिका में अपनी फैक्ट्री और सप्लायर नेटवर्क बढ़ाएं। अन्य कंपनियों और उत्पादों को भी अलग से चिह्नित किया जाएगा।
उनके समझौते का फोकस यह होगा कि अमेरिका और जापान मिलकर सस्ती और अच्छी क्वालिटी की चीजें बना सकें, खासतौर से चीन के मुकाबले में। चीन को देखें, तो वह बड़े पैमाने पर बेहद कम दाम में चीजें बनाता है। इसमें सब्सिडी और सस्ता एक्सचेंज रेट बड़ी वजह है। दोनों देश मिलकर चीन को पीछे छोड़ सकते हैं। हालांकि, ये आसान नहीं होगा।
चीन की सब्सिडी और सस्ते एक्सचेंज रेट की वजह से वह ज्यादा सस्ती चीजें बनाता है। इसलिए ट्रंप का इरादा है कि जापान और अमेरिका साथ मिलकर चीन से मुकाबला करें। मकसद चीन को ग्लोबल ट्रेड में पीछे छोड़ना है।
ट्रम्प की नई पॉलिसी के मुताबिक हर देश पर एक ही तरह का टैक्स नहीं लगेगा। यह प्रोडक्ट के हिसाब से तय होगा। ट्रम्प का मंत्र है: “पारस्परिकता, पारस्परिकता!” यानी जैसा व्यवहार आप करेंगे, वैसा ही जवाब मिलेगा। इसका मतलब है कि हर देश के साथ इस पैटर्न में थोड़ा फर्क हो सकता है।
अगर ट्रेड बैलेंस हो और दोनों देश एक-दूसरे से बराबरी का व्यवहार करें, तो दोनों को फायदा होगा और उनका बाजार हिस्सेदारी भी बढ़ेगा। आपसी समझौतों के माध्यम से संतुलित व्यापार, साझा विकास की दौड़ के लिए रास्ता खोलता है। इससे इन दोनों देशों को चीन के साथ ट्रेड वॉर में अपना बाजार हिस्सा बढ़ाने में मदद मिल सकती है। यह एक नए तरह के ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत है।
ट्रम्प का मंत्र है- जैसा व्यवहार आप करेंगे, वैसा ही जवाब मिलेगा। इसका मतलब है कि हर देश के साथ इस पैटर्न में थोड़ा फर्क हो सकता है।
जापान और अमेरिका को राजनीतिक और सैन्य सहयोगियों के रूप में एक-दूसरे की जरूरत है। वहीं, चीन का खतरा साफ दिखाई दे रहा है। चीन ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस को घेरने की कोशिश कर रहा है, और ताइवान को लगभग घेर चुका है। लिहाजा, जापान के लिए कुछ गोपनीय समझौते भी हो सकते हैं।
मैं गलत हो सकता हूं, लेकिन मैंने ट्रम्प को लंबे समय तक देखा है। मेरा मानना है कि ट्रम्प एक निर्माता हैं। वे एक नए ग्लोबल सिस्टम का निर्माण करेंगे, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से मुकाबला करेगा। उनका काम दिखाई देने लगा है।
भारत की स्थिति अभी बहुत अच्छी है। मुझे लगता है कि ट्रम्प भारत के साथ भी इसी तरह की डील करेंगे, लेकिन एक फर्क रहेगा। वे चाहेंगे कि भारत चीन के व्यापार खतरे के खिलाफ ASEAN देशों में ज्यादा सहयोग करे, और अगर इस क्षेत्र में कोई सैन्य संघर्ष हो, तो उसमें भी साथ दे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल फरवरी में अमेरिकी दौरे पर गए थे। तस्वीर उसी वक्त की है।
इंडस्ट्री में मेरे जानने वाले लोग बताते हैं कि मोदी सरकार दिन-रात तैयारी कर रही है कि ट्रेड की बातचीत प्रोडक्ट-दर-प्रोडक्ट और इंडस्ट्री-दर-इंडस्ट्री हो। मंत्रालय स्थानीय कंपनियों से जानकारी मांग रहे हैं। भारत की कई इंडस्ट्रीज के लिए यह बड़ा मौका है, खासकर टेक्सटाइल और फार्मा जैसी इंडस्ट्रीज के लिए।
हम ये अंदाजा लगा सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है। एक परिदृश्य साफ है। भविष्य में भारत की करेंसी की वैल्यू भी बढ़ सकती है। साथ ही, चीन से मुकाबले के लिए भारतीय कंपनियों को अपनी लागत कम करनी होगी और क्वालिटी बढ़ानी होगी।
इसलिए, अमेरिका-भारत व्यापार वार्ताओं से अलग सभी कंपनियों को अपनी लागत और खर्च का स्तर फिर से व्यवस्थित करना शुरू कर देना चाहिए। कॉम्पटीशन में बने रहने के लिए अब डिजिटल तकनीक या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करना बेहद जरूरी हो गया है ताकि लागत को कम किया जा सके।
इस बीच भारत को ठोस रणनीतियां तलाशनी चाहिए ताकि वह ट्रम्प के कहे मुताबिक हर साल ₹41.75 लाख करोड़ (500 अरब डॉलर) का निर्यात अमेरिका को कर सके। इसी में भारत की आर्थिक वृद्धि और तकनीकी प्रगति का अवसर छिपा है।
भारत का भविष्य उज्ज्वल है- अब हमें सिर्फ शुरुआत करनी है।
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