ऐतिहासिक विरासतों का नहीं हो रहा रखरखाव, खो रहीं पहचान | Virasat in Jabalpur | Patrika News

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ऐतिहासिक विरासतों का नहीं हो रहा रखरखाव, खो रहीं पहचान | Virasat in Jabalpur | Patrika News

ऐतिहासिक विरासतों का नहीं हो रहा रखरखाव, खो रहीं पहचान | Virasat in Jabalpur | Patrika News

अनदेखी: संरक्षण की दरकार, प्रशासन व पुरातत्व विभाग उदासीन

जबलपुर। मदनमहल, बैलेंङ्क्षसग रॉक, देवताल के ऐतिहासिक मन्दिर और बावडिय़ां हमेशा से शहर की पहचान रहे हैं। इन सबको को सहेज कर और खूबसूरत व लोकलुभावन बनाया जा सकता था,लेकिन संरक्षण की बजाय इन स्थलों की उपेक्षा हो रही है। नतीजा यह है कि शहर की ये ऐतिहासिक विरासत बदहाली का शिकार है। इनके लगातार रखरखाव और बादशाह हलवाई मन्दिर की तर्ज पर संरक्षण की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जा रही है। लेकिन प्रशासन और पुरातत्व विभाग के अधिकारी इस दिशा में उदासीन नजर आ रहे हैं।
मदनमहल किला- रानी दुर्गावती का किला मदनमहल एक ही ग्रेनाइट पत्थर की चट्टान पर बना है, जो उसी नाम की पहाड़ी पर करीब 515 मीटर की ऊंचाई पर है। मदन महल का किला 11 वीं शताब्दी में 37 वें गोंड शासक मदन ङ्क्षसह के शासनकाल में बनाया था। मदनमहल किला मूल रूप से यह एक सैन्य पोस्ट था, जिसे वॉच टॉवर और सैन्य बैरक के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इसकी प्रसिद्ध विश्वव्यापी है और बड़ी संख्या में पर्यटक इसे देखने आते हैं। लेकिन रखरखाव के अभाव में किले में जगह-जगह दरारें पड़ गई हैं। किला अपनी मूल पहचान खोता जा रहा है। किले के परिसर में बना पुरातन अस्तबल, युद्ध कक्ष, प्राचीन लिपियों, गुप्त मार्ग, गलियारा जर्जर होता जा रहा है।
बैलेंस रॉक- जबलपुर शहर ग्रेनाइट चट्टानों के लिए काफी फेमस है। इन्हीं चट्टानों के बीच में स्थित मदन महल की पहाडिय़ों पर रानी दुर्गावती का किला है। रानी दुर्गावती के किले के पास ही बैलेंस रॉक स्थित है। यहां पर एक बड़ी सी चट्टान के ऊपर एक दूसरी चट्टान रखी हुई है। इसे देखने से ऐसा लगता है जैसे ये किसी भी वक्त गिरने वाली है। मगर यह कई सालों से इस स्थिति में रखी हुई है। यहां तक कि 1997 में आए भूकम्प का भी इस पर कोई असर नहीं हुआ। इस बैलेंस रॉक को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। लेकिन इसके संरक्षण की दिशा में कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। हालात यह हैं कि बैलेंङ्क्षसग रॉक के आसपास लगाई गई फेंङ्क्षसग भी जगह जगह से उखड़ गई है।
बावडिय़ां- इतिहासकार बताते हैं कि शहर के हर इलाके में गोंड़वानकाल में 31 बनवाई गईं थीं, जो जल संरक्षण का बड़ा जरिया थीं। इनमे से लगभग एक दर्जन ही अब ठीकठाक स्थिति में हैं। लेकिन इनके संरक्षण की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। इस वजह से इनके हालात खराब होते जा रहे है।
ये बावडिय़ां हों संरक्षित- महाराजपुर, घोड़ा नक्कास हनुमानताल, रानीताल, गढ़ा बवाड़ी, शाहनाला नर्मदा रोड, लाल कुआं, शारदा मंदिर मदनमहल, बदनपुर, शास्त्री नगर, दुर्गा मंदिर घमापुर, तेवर गांव और कुक्को बावड़ी बड़ी खेरमाई बावडिय़ां।
कूड़ाघर बन गई अच्छी खासी बावड़ी- गढ़ा बाजार के समीप राधाकृष्ण मंदिर के पीछे एक ऐतिहासिक बावड़ी है। जो देखरेख के अभाव में कूड़ाघर में तब्दील हो गई है। नक्कासीदार बावड़ी में उतरने के लिए बकायदा सीढिय़ां भी बनी है। बावड़ी के बीचों बीच एक पुराना कुंआ भी जिसकी थाह नहीं है। जो सदा भरा रहता है। लेकिन आस-पास के रहवासियों की ओर से फेंके गए कचरे से कुंआ लुप्त हो चुका है।
गढ़ा स्थित देवताल लघुकाशी बना तत्वों का अड्डा
मदन महल की पहाडिय़ों के करीब स्थित देवताल का गोंड शासकों ने निर्माण करवाया था। इसे विष्णुताल भी कहा जाता है। मंदिर और प्रतिमा यहा विराजी हुई है। देवताल को लघुकाशी भी कहा जाता है और श्रद्धालु बेहद पवित्र मानते हैं। इस तालाब की विशेषता यह है कि इसके चारों ओर सात मन्दिर हैं। लेकिन उपेक्षा की वजह से ये ऐतिहासिक विरासत लावारिस की तरह बनी हुई है। इन मंदिरों में से अधिकतर खंडहर हो रहे हैं और वर्षो से इनकी कोई सुध नहीं ली गई। हालात यह हैं कि शाम ढले यह क्षेत्र अंधकार में डूब जाता है और यहां आपराधिक प्रवृत्ति के असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगता है।



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