एमपी से चीन तक होती है वन्यजीवों की तस्करी, शिकारी कमाते हैं लाखों-करोड़ों | Pangoling is hunted and sent to China, wild life hunting news | Patrika News h3>
महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से लगे सीमावर्ती जिलों में वन्य प्राणियों के शिकार की घटनाएं ज्यादा होती हैं। प्रदेश के जंगलों में शिकार कर शिकारी सीमावर्ती राज्यों का फायदा उठाते हैं। प्रदेश में 2019 से 2020 तक करीब 2100 से अधिक वन्य प्राणियों के शिकार के मामले दर्ज हुए हैं। शिकार के मामले में शहडोल, जबलपुर, रीवा वनवृत्त सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। यहां तीन साल में 700 से अधिक शिकार हुए हैं।
सबसे ज्यादा नीलगाय, चीतल, सांभर और काले हिरण के शिकार हुए हैं। इन शिकारों में सबसे ज्यादा स्थानीय लोगों की भूमिका सामने आई है। कोरोना व लॉकडाउन में जहां लोगों को घरों से निकलने की इजाजत नहीं थी, वहीं शिकारी पुलिस और प्रशासन से नजरें बचाकर शिकार कर रहे थे। इन दो वर्षों में 1400 से अधिक शिकार की घटनाएं हुईं। इसके बाद 2021 में शिकार की घटनाओं में 200 तक की कमी आई है।
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एमपी में शिकार की घटनाएं
2019 : 722
2020: 217
2021: 559
2022 अप्रेल तक: 147
देश में 2008 से 2018 के बीच 10 वर्षों में शिकारियों द्वारा 139 काले हिरण मारे गए हैं, जिनमें से अधिकतम 31 मामले मध्य प्रदेश में हैं। साथ ही 2008 और 2018 के बीच देश भर में 108 शिकारियों को काले हिरणों को मारने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया है।
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वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन सोसाइटी की रिपोर्ट “वन्यजीव शिकार और भारत में अवैध व्यापार: 2020′ के अनुसार भारत से 2020 में वन्यजीवों के अवैध शिकार और तस्करी की 522 मामले सामने आए, जिसमें बड़ी बिल्लियां, पैंगोलिन, कछुए, हाथी और काले हिरण का शिकार सबसे अधिक हुआ।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक वन्य जीवों की अवैध तस्करी में अकेले 20 फीसद पैंगोलिन का ही हिस्सा है। इसकी वजह चीन है, जहां इसकी खाल और मांस से पारंपरिक दवाएं बनाए जा रही हैं। काफी विरोध के बाद चीन ने आधिकारिक रूप से पैंगोलिन को अपनी पारंपरिक दवाओं की सामग्री की लिस्ट से हटाया हैं। इससे जुड़े एक बहुस्तरीय अवैध शिकार नेटवर्क का मध्य प्रदेश वन विभाग की एक विशेष टीम ने फरवरी 2017 में भंडाफोड़ किया था। जिसमें मध्य भारत से चीन तक पैंगोलिन की तस्करी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रमुख मार्ग उत्तर प्रदेश-नेपाल-तिब्बत और कोलकाता-मणिपुर-मिजोरम-म्यांमार -लाओस पाए गए थे।
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सबसे ज्यादा नीलगाय, चीतल, सांभर और काले हिरण के शिकार हुए हैं। इन शिकारों में सबसे ज्यादा स्थानीय लोगों की भूमिका सामने आई है। कोरोना व लॉकडाउन में जहां लोगों को घरों से निकलने की इजाजत नहीं थी, वहीं शिकारी पुलिस और प्रशासन से नजरें बचाकर शिकार कर रहे थे। इन दो वर्षों में 1400 से अधिक शिकार की घटनाएं हुईं। इसके बाद 2021 में शिकार की घटनाओं में 200 तक की कमी आई है।
एमपी में शिकार की घटनाएं
2019 : 722
2020: 217
2021: 559
2022 अप्रेल तक: 147
देश में 2008 से 2018 के बीच 10 वर्षों में शिकारियों द्वारा 139 काले हिरण मारे गए हैं, जिनमें से अधिकतम 31 मामले मध्य प्रदेश में हैं। साथ ही 2008 और 2018 के बीच देश भर में 108 शिकारियों को काले हिरणों को मारने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया है।
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इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक वन्य जीवों की अवैध तस्करी में अकेले 20 फीसद पैंगोलिन का ही हिस्सा है। इसकी वजह चीन है, जहां इसकी खाल और मांस से पारंपरिक दवाएं बनाए जा रही हैं। काफी विरोध के बाद चीन ने आधिकारिक रूप से पैंगोलिन को अपनी पारंपरिक दवाओं की सामग्री की लिस्ट से हटाया हैं। इससे जुड़े एक बहुस्तरीय अवैध शिकार नेटवर्क का मध्य प्रदेश वन विभाग की एक विशेष टीम ने फरवरी 2017 में भंडाफोड़ किया था। जिसमें मध्य भारत से चीन तक पैंगोलिन की तस्करी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रमुख मार्ग उत्तर प्रदेश-नेपाल-तिब्बत और कोलकाता-मणिपुर-मिजोरम-म्यांमार -लाओस पाए गए थे।
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