एन. रघुरामन का कॉलम: लास्ट बेंचर हमेशा ही लूजर नहीं होते! h3>
2 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मंगलवार रात को खेले गए मैच में उस एक खिलाड़ी ने गेम लगभग छीन ही लिया था। क्योंकि आईपीएल के उस मैच में उस एक खिलाड़ी ने इस टीम के सबसे अच्छे गेंदबाज पर प्रहार करते हुए एक ओवर में 16 रन जड़ दिए थे और युजवेंद्र चहल का व्यक्तिगत स्कोर 3 ओवर में 12 रन, 4 विकेट से 4 ओवर में 28 रन और 4 विकेट पर पहुंच गया था।
और अब जीत के लिए 30 गेंदों पर 16 रन बनाना आंद्रे रसेल के लिए बहुत आसान काम था, जो कि इससे पहले भी कई बार अपनी टीम केकेआर को कई जीत दिलाने में अहम भूमिका निभा चुके थे। लेकिन 16वें ओवर में रसेल स्ट्राइक पर आए। वह पंजाब किंग्स के मार्को यान्सन की गेंद खेलने को तैयार थे, यान्सन ने गेंद डाली, रसेल उसे पुल करना चाहते थे, लेकिन तभी बल्ले का निचला किनारा लगा और अचानक उनकी गिल्लियां बिखर गईं।
इस विकेट के साथ ही स्टेडियम में मौजूद दर्शक, पंजाब किंग्स की टीम और उनकी मालिक प्रीति जिंटा खुशी से झूम उठे। टीम ने असंभव से संभव कर दिखाया था। हो भी क्यों ना, जब केकेआर की टीम 2 विकेट खोने के बाद 62 रन पर थी और लक्ष्य 111 रन था, और पंजाब की जीत की उम्मीद सिर्फ 2% थी। लेकिन अंत में पंजाब किंग्स ने केकेआर को 95 रन पर समेट कर 16 रन से मैच जीत लिया।
इससे पहले भी पंजाब किंग्स ने तीन न्यूनतम स्कोर को डिफेंड किया है, 119 (2009), 125 (2021) और 126 (2020)। लेकिन इन सभी मैचों में पूरे 20 ओवर खेले गए थे। पर मंगलवार के मैच में पंजाब ने केकेआर को 15.1 ओवर में ही 95 रन पर रोक दिया, जबकि उन्होंने खुद 15.3 ओवर में 110 रन बनाए थे। 36 गेंदों में 23 रन देकर 7 विकेट लेना, वो भी एक डिफेंडिंग चैंपियन टीम के खिलाफ, आसान नहीं था। लेकिन पंजाब की टीम स्पिरिट देखने लायक थी।
इतने कम स्कोर को डिफेंड करने में अगर कोई और टीम पंजाब के आसपास है, तो वो है सनराइजर्स हैदराबाद, जिन्होंने भी तीन बार कम स्कोर का बचाव किया है, हालांकि इनमें भी पूरे 20 ओवर गेंदबाजी हुई।यह वही टीम है जिसने पिछले मैच में 245 रन बनाए थे और फिर भी सनराइजर्स से हार गई थी। मंगलवार की रात उन्हें 111 रन डिफेंड करने थे।
टी20 क्रिकेट फॉर्मेट सभी खिलाड़ियों के लिए मुश्किल है, लेकिन गेंदबाजों के लिए यह और भी कठिन है। उन पर बहुत दबाव होता है। इस फॉर्मेट में हर ओवर में कुछ बाउंड्री सामान्य मानी जाती हैं, लेकिन कम स्कोर वाले मैच में एक छक्का और कुछ बाउंड्री न केवल स्कोरबोर्ड पर बल्कि जीत की मानसिकता पर भी असर डाल सकती हैं।
इससे मुझे बिल गेट्स की याद आ गई, जिन्होंने एक बार कहा था, ‘अगर आप परीक्षा में पास होना चाहते हैं, तो पहले बेंच में सामने बैठने वाले छात्रों से पूछें। अगर आप जीवन में सफलता चाहते हैं, तो लास्ट बेंच पर बैठने वाले छात्रों से पूछें।’ पर क्या लास्ट बेंच के छात्र हमेशा सफल होते हैं? जरूरी नहीं।
उनका कहना है कि आखिरी बेंच के छात्रों का तनाव, मानसिक, खुशी, पागलपन जैसी स्थितियों का उनका अनुभव है और कुछेक स्थितियों में प्रिंसिपल के सामने खड़ा होना या दुर्व्यवहार के लिए पिटाई खाना, उन्हें अनिश्चितताओं के लिए तैयार करता है। और यह अनुभव उन्हें कठिन परिस्थितियों में वापसी करने का साहस देता है।
स्कूल के बैक-बेंचर्स कई लोगों को अधिक सफल लगते हैं क्योंकि वे असफलता को पचा सकते हैं और अस्वीकृति को स्वीकार कर सकते हैं। स्कूल में कभी असफल न होना या तो बच्चे को खुद पर बहुत आत्मविश्वास दे सकता है, या उसे हमेशा सर्वश्रेष्ठ होने के दबाव में डाल सकता है। और ये दोनों ही लंबे समय में विनाशकारी साबित हो सकते हैं।
फंडा यह है कि जब सबके लिए जीवन एक रोलर कोस्टर की सवारी है, कभी ऊपर तो कभी नीचे। अचानक झटके देना इसकी प्रकृति है। यही वह समय है जब खुद को याद दिलाना चाहिए कि लास्ट बेंचर हमेशा हारने वाला नहीं होता। सही मानसिकता ही फाइनल बैलेंस शीट (यह पैसा, स्कोर आदि हो सकता है) को उज्ज्वल बना सकती है।
खबरें और भी हैं…
राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News
2 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मंगलवार रात को खेले गए मैच में उस एक खिलाड़ी ने गेम लगभग छीन ही लिया था। क्योंकि आईपीएल के उस मैच में उस एक खिलाड़ी ने इस टीम के सबसे अच्छे गेंदबाज पर प्रहार करते हुए एक ओवर में 16 रन जड़ दिए थे और युजवेंद्र चहल का व्यक्तिगत स्कोर 3 ओवर में 12 रन, 4 विकेट से 4 ओवर में 28 रन और 4 विकेट पर पहुंच गया था।
और अब जीत के लिए 30 गेंदों पर 16 रन बनाना आंद्रे रसेल के लिए बहुत आसान काम था, जो कि इससे पहले भी कई बार अपनी टीम केकेआर को कई जीत दिलाने में अहम भूमिका निभा चुके थे। लेकिन 16वें ओवर में रसेल स्ट्राइक पर आए। वह पंजाब किंग्स के मार्को यान्सन की गेंद खेलने को तैयार थे, यान्सन ने गेंद डाली, रसेल उसे पुल करना चाहते थे, लेकिन तभी बल्ले का निचला किनारा लगा और अचानक उनकी गिल्लियां बिखर गईं।
इस विकेट के साथ ही स्टेडियम में मौजूद दर्शक, पंजाब किंग्स की टीम और उनकी मालिक प्रीति जिंटा खुशी से झूम उठे। टीम ने असंभव से संभव कर दिखाया था। हो भी क्यों ना, जब केकेआर की टीम 2 विकेट खोने के बाद 62 रन पर थी और लक्ष्य 111 रन था, और पंजाब की जीत की उम्मीद सिर्फ 2% थी। लेकिन अंत में पंजाब किंग्स ने केकेआर को 95 रन पर समेट कर 16 रन से मैच जीत लिया।
इससे पहले भी पंजाब किंग्स ने तीन न्यूनतम स्कोर को डिफेंड किया है, 119 (2009), 125 (2021) और 126 (2020)। लेकिन इन सभी मैचों में पूरे 20 ओवर खेले गए थे। पर मंगलवार के मैच में पंजाब ने केकेआर को 15.1 ओवर में ही 95 रन पर रोक दिया, जबकि उन्होंने खुद 15.3 ओवर में 110 रन बनाए थे। 36 गेंदों में 23 रन देकर 7 विकेट लेना, वो भी एक डिफेंडिंग चैंपियन टीम के खिलाफ, आसान नहीं था। लेकिन पंजाब की टीम स्पिरिट देखने लायक थी।
इतने कम स्कोर को डिफेंड करने में अगर कोई और टीम पंजाब के आसपास है, तो वो है सनराइजर्स हैदराबाद, जिन्होंने भी तीन बार कम स्कोर का बचाव किया है, हालांकि इनमें भी पूरे 20 ओवर गेंदबाजी हुई।यह वही टीम है जिसने पिछले मैच में 245 रन बनाए थे और फिर भी सनराइजर्स से हार गई थी। मंगलवार की रात उन्हें 111 रन डिफेंड करने थे।
टी20 क्रिकेट फॉर्मेट सभी खिलाड़ियों के लिए मुश्किल है, लेकिन गेंदबाजों के लिए यह और भी कठिन है। उन पर बहुत दबाव होता है। इस फॉर्मेट में हर ओवर में कुछ बाउंड्री सामान्य मानी जाती हैं, लेकिन कम स्कोर वाले मैच में एक छक्का और कुछ बाउंड्री न केवल स्कोरबोर्ड पर बल्कि जीत की मानसिकता पर भी असर डाल सकती हैं।
इससे मुझे बिल गेट्स की याद आ गई, जिन्होंने एक बार कहा था, ‘अगर आप परीक्षा में पास होना चाहते हैं, तो पहले बेंच में सामने बैठने वाले छात्रों से पूछें। अगर आप जीवन में सफलता चाहते हैं, तो लास्ट बेंच पर बैठने वाले छात्रों से पूछें।’ पर क्या लास्ट बेंच के छात्र हमेशा सफल होते हैं? जरूरी नहीं।
उनका कहना है कि आखिरी बेंच के छात्रों का तनाव, मानसिक, खुशी, पागलपन जैसी स्थितियों का उनका अनुभव है और कुछेक स्थितियों में प्रिंसिपल के सामने खड़ा होना या दुर्व्यवहार के लिए पिटाई खाना, उन्हें अनिश्चितताओं के लिए तैयार करता है। और यह अनुभव उन्हें कठिन परिस्थितियों में वापसी करने का साहस देता है।
स्कूल के बैक-बेंचर्स कई लोगों को अधिक सफल लगते हैं क्योंकि वे असफलता को पचा सकते हैं और अस्वीकृति को स्वीकार कर सकते हैं। स्कूल में कभी असफल न होना या तो बच्चे को खुद पर बहुत आत्मविश्वास दे सकता है, या उसे हमेशा सर्वश्रेष्ठ होने के दबाव में डाल सकता है। और ये दोनों ही लंबे समय में विनाशकारी साबित हो सकते हैं।
फंडा यह है कि जब सबके लिए जीवन एक रोलर कोस्टर की सवारी है, कभी ऊपर तो कभी नीचे। अचानक झटके देना इसकी प्रकृति है। यही वह समय है जब खुद को याद दिलाना चाहिए कि लास्ट बेंचर हमेशा हारने वाला नहीं होता। सही मानसिकता ही फाइनल बैलेंस शीट (यह पैसा, स्कोर आदि हो सकता है) को उज्ज्वल बना सकती है।
News