एन. रघुरामन का कॉलम: प्रार्थनाएं हमेशा हमारे कल को आज से बेहतर बनाने के लिए होनी चाहिए h3>
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
“यह देवताओं से आशीर्वाद मांगने; पूर्वजों, माता-पिता और भिक्षुओं को आदरांजलि देने और उनका आशीर्वाद लेने के साथ ही प्रकृति का सम्मान करने का समय है। यह आत्मचिंतन, नवीनीकरण और जीवन को पिछले वर्ष से बेहतर बनाने के लिए नए विचारों के साथ शुरुआत करने का समय है।’
एक बार जब उन्होंने मेरी भूगोल की किताब उठाई तो उसमें विश्व मानचित्र खोला और मेरी नजरों को महाराष्ट्र से बाईं ओर केरल, फिर धीरे-धीरे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, फिर उसके दाईं ओर बर्मा, फिर इंडोनेशिया, थाईलैंड, बैंकॉक और अंत में कंबोडिया में ले गईं, जहां दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर स्थित है और कहा, ‘यह पूरा क्षेत्र फसलों के मौसम के बाद मार्च के अंत से अप्रैल के मध्य तक अपना नया साल मनाता है।’
आज जब विभिन्न समुदाय गुड़ी पड़वा, उगादि, चेटी चंड मनाने के लिए तैयार हैं, सिंधी परिवार झूलेलाल का आशीर्वाद लेने जा रहे हैं और यह दिन हमेशा जीवंत परंपराओं से चिह्नित होता है, तब मुझे नववर्ष का उत्सव मनाने के लिए अपनी मां की वह व्याख्या याद आ गई।
हालांकि हर समुदाय के अपने रीति-रिवाज हैं, लेकिन उत्सव का मूल भाव एक ही है- खुशी और कुछ आश्चर्यों (कुछ दु:ख भी) के मिश्रण के साथ नई शुरुआत करना। घरों के बाहर गर्व से झूलती गुड़ियों से लेकर उगादि पचड़ी के तीखे-मीठे स्वाद तक, यह लगभग सभी समुदायों में आम है।
तमिल में हमारी पचड़ी कच्चे आम और ताजे नीम के फूलों से बनाई जाती है, जो तीखा-मीठा-कड़वा स्वाद देती है। वर्ष के अन्य समय में, यह पचड़ी नीम के फूलों के बिना बनाई जाती है। जब मैंने पूछा कि नीम के फूल को क्यों पचड़ी में मिलाते हैं तो मां ने कहा था, ‘पचड़ी के स्वास्थ्य लाभ तो हैं ही, और यह कठोर गर्मियों (नागपुर- जहां मैंने अपना बचपन बिताया- में हमेशा भीषण गर्मी पड़ती थी) का सामना करने के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी मदद करती है। लेकिन साथ ही इसमें जीवन के लिए एक रोचक और गहरा संदेश भी है- यह दर्शाता है कि जीवन भी मीठे (गुड़), खट्टे (कच्चे आम) और कड़वे (नीम के फूल) अनुभवों का मिश्रण है। और यही जीवन को सुखद बनाता है।’
आज जब मैं इन विचारों पर सोचता हूं तो मुझे उचित ही यह खयाल आता है कि मां ने मुझसे कभी क्यों नहीं पूछा कि तुम जीवन में क्या बनना चाहते हो? ऐसे उत्सव के दिनों में वे हमेशा मुझसे ईश्वर से ऊंचे स्वरों में यह प्रार्थना करने के लिए कहती थीं कि ‘मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं अपने पैरों पर खड़ा हो सकूं और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकूं।’
मैं हमेशा सोचता था कि चूंकि वे 8वीं के बाद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाईं, क्योंकि उनके गांव के स्कूल में इसके आगे की सुविधा नहीं थी, इसलिए उन्होंने कभी अपने लिए कोई सपना नहीं देखा और वे उस रास्ते पर चलती रहीं, जहां जीवन उन्हें ले गया- जल्दी शादी और दो बच्चों के साथ एक बड़े परिवार की ओर। लेकिन मैं गलत था।
जीवन ने उन्हें जो दिया, उसे उन्होंने स्वीकार किया, लेकिन यह सुनिश्चित भी किया कि उनके परिवार का जीवन बीते कल से बेहतर हो। वे पशु चिकित्सक बनना चाहती थीं, लेकिन गांव में शिक्षा की कमी ने उन्हें एक अलग रास्ता अपनाने पर मजबूर कर दिया।
हमारी शाम की बातचीत में वे अकसर अपनी पसंदीदा पुस्तक थिरुक्कुरल की बात करती थीं। 1330 तमिल दोहों वाली यह छोटी-सी पुस्तिका आज भी मेरे पास है। तिरुवल्लुवर द्वारा रचित दोहों में से एक का उल्लेख करते हुए, वे उसमें अपनी खुद की व्याख्या जोड़ते हुए कहती थीं- ‘कोई पेड़- जो अपनी जड़ें अलग-अलग दिशाओं में फैलाता है- की तरह प्रकृति भी जीवन को कम से कम दो अलग-अलग जड़ें लेने की अनुमति देती है।
एक जड़ धन और सफलता से चमकती है, जिसे आम लोग देख पाते हैं और दूसरी जड़ ज्ञान और बुद्धि वाले लोगों द्वारा संचालित होती है, जिसे बहुत कम लोग देख पाते हैं। और दोनों के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। और यही कारण है कि उन्होंने मुझसे कभी नहीं पूछा कि मैं अपने भविष्य के बारे में क्या सपने देखता हूं।
फंडा यह है कि आपके जीवन में जो भी सपना हो, लेकिन हमेशा आज से बेहतर कल के लिए आशीर्वाद जरूर मांगें- खासकर गुड़ी पड़वा जैसे त्योहारों के दिन।
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एक बार जब उन्होंने मेरी भूगोल की किताब उठाई तो उसमें विश्व मानचित्र खोला और मेरी नजरों को महाराष्ट्र से बाईं ओर केरल, फिर धीरे-धीरे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, फिर उसके दाईं ओर बर्मा, फिर इंडोनेशिया, थाईलैंड, बैंकॉक और अंत में कंबोडिया में ले गईं, जहां दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर स्थित है और कहा, ‘यह पूरा क्षेत्र फसलों के मौसम के बाद मार्च के अंत से अप्रैल के मध्य तक अपना नया साल मनाता है।’
आज जब विभिन्न समुदाय गुड़ी पड़वा, उगादि, चेटी चंड मनाने के लिए तैयार हैं, सिंधी परिवार झूलेलाल का आशीर्वाद लेने जा रहे हैं और यह दिन हमेशा जीवंत परंपराओं से चिह्नित होता है, तब मुझे नववर्ष का उत्सव मनाने के लिए अपनी मां की वह व्याख्या याद आ गई।
हालांकि हर समुदाय के अपने रीति-रिवाज हैं, लेकिन उत्सव का मूल भाव एक ही है- खुशी और कुछ आश्चर्यों (कुछ दु:ख भी) के मिश्रण के साथ नई शुरुआत करना। घरों के बाहर गर्व से झूलती गुड़ियों से लेकर उगादि पचड़ी के तीखे-मीठे स्वाद तक, यह लगभग सभी समुदायों में आम है।
तमिल में हमारी पचड़ी कच्चे आम और ताजे नीम के फूलों से बनाई जाती है, जो तीखा-मीठा-कड़वा स्वाद देती है। वर्ष के अन्य समय में, यह पचड़ी नीम के फूलों के बिना बनाई जाती है। जब मैंने पूछा कि नीम के फूल को क्यों पचड़ी में मिलाते हैं तो मां ने कहा था, ‘पचड़ी के स्वास्थ्य लाभ तो हैं ही, और यह कठोर गर्मियों (नागपुर- जहां मैंने अपना बचपन बिताया- में हमेशा भीषण गर्मी पड़ती थी) का सामना करने के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी मदद करती है। लेकिन साथ ही इसमें जीवन के लिए एक रोचक और गहरा संदेश भी है- यह दर्शाता है कि जीवन भी मीठे (गुड़), खट्टे (कच्चे आम) और कड़वे (नीम के फूल) अनुभवों का मिश्रण है। और यही जीवन को सुखद बनाता है।’
आज जब मैं इन विचारों पर सोचता हूं तो मुझे उचित ही यह खयाल आता है कि मां ने मुझसे कभी क्यों नहीं पूछा कि तुम जीवन में क्या बनना चाहते हो? ऐसे उत्सव के दिनों में वे हमेशा मुझसे ईश्वर से ऊंचे स्वरों में यह प्रार्थना करने के लिए कहती थीं कि ‘मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं अपने पैरों पर खड़ा हो सकूं और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकूं।’
मैं हमेशा सोचता था कि चूंकि वे 8वीं के बाद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाईं, क्योंकि उनके गांव के स्कूल में इसके आगे की सुविधा नहीं थी, इसलिए उन्होंने कभी अपने लिए कोई सपना नहीं देखा और वे उस रास्ते पर चलती रहीं, जहां जीवन उन्हें ले गया- जल्दी शादी और दो बच्चों के साथ एक बड़े परिवार की ओर। लेकिन मैं गलत था।
जीवन ने उन्हें जो दिया, उसे उन्होंने स्वीकार किया, लेकिन यह सुनिश्चित भी किया कि उनके परिवार का जीवन बीते कल से बेहतर हो। वे पशु चिकित्सक बनना चाहती थीं, लेकिन गांव में शिक्षा की कमी ने उन्हें एक अलग रास्ता अपनाने पर मजबूर कर दिया।
हमारी शाम की बातचीत में वे अकसर अपनी पसंदीदा पुस्तक थिरुक्कुरल की बात करती थीं। 1330 तमिल दोहों वाली यह छोटी-सी पुस्तिका आज भी मेरे पास है। तिरुवल्लुवर द्वारा रचित दोहों में से एक का उल्लेख करते हुए, वे उसमें अपनी खुद की व्याख्या जोड़ते हुए कहती थीं- ‘कोई पेड़- जो अपनी जड़ें अलग-अलग दिशाओं में फैलाता है- की तरह प्रकृति भी जीवन को कम से कम दो अलग-अलग जड़ें लेने की अनुमति देती है।
एक जड़ धन और सफलता से चमकती है, जिसे आम लोग देख पाते हैं और दूसरी जड़ ज्ञान और बुद्धि वाले लोगों द्वारा संचालित होती है, जिसे बहुत कम लोग देख पाते हैं। और दोनों के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। और यही कारण है कि उन्होंने मुझसे कभी नहीं पूछा कि मैं अपने भविष्य के बारे में क्या सपने देखता हूं।
फंडा यह है कि आपके जीवन में जो भी सपना हो, लेकिन हमेशा आज से बेहतर कल के लिए आशीर्वाद जरूर मांगें- खासकर गुड़ी पड़वा जैसे त्योहारों के दिन।
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