एन. रघुरामन का कॉलम: जी फॉर जेंटलमैन! ऐसा हमेशा जरूरी नहीं है

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एन. रघुरामन का कॉलम:  जी फॉर जेंटलमैन! ऐसा हमेशा जरूरी नहीं है

एन. रघुरामन का कॉलम: जी फॉर जेंटलमैन! ऐसा हमेशा जरूरी नहीं है

6 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

प्राइमरी क्लास की वो किताबें आपको याद हैं, जहां अंग्रेजी वर्णमाला के सभी 26 अल्फाबेट के सामने एक तस्वीर होती थी? जब ‘G’ अल्फाबेट की बारी आती थी, तो अधिकतर किताबों में ‘जेंटलमैन’ लिखा होता था। उसके साथ एक तस्वीर होती थी, जिसमें सूट-बूट, कोट, टाई और हाथ में ब्रीफकेस लिए एक व्यक्ति दिखाया जाता था।

बच्चे उस तस्वीर को देखकर उसके सरीखे बड़े होने का सपना देखते थे। उस अच्छे कपड़े पहने व्यक्ति की तस्वीर ने बच्चों के मन में यह धारणा बना दी कि यदि कोई व्यक्ति उस तस्वीर की तरह दिखता है, तो वह अवश्य जेंटलमैन होगा। यही हमारी शिक्षा प्रणाली की विडंबना है। यह विश्वास इतना गहरा हो गया है कि कई दशकों बाद भी, जब कोई अच्छे कपड़े पहने सहयात्री हमारे पास बैठता है, तो हम तुरंत मान लेते हैं कि वह जेंटलमैन होगा।

और अहमदाबाद-वडोदरा-सूरत के बीच यात्रा करने वाले कई यात्रियों ने यही एक गलती कर दी और इस गलतफहमी की भारी कीमत चुकाई। उन्हें अपने-अपने स्कूलों के प्राइमरी टीचर्स को इस बात के लिए दोषी ठहराना चाहिए कि बचपन में उन्हें जेंटलमैन शब्द का सही मतलब कभी नहीं सिखाया गया!

उन्हें कभी नहीं बताया गया कि जेंटलमैन बनने के लिए महंगे कपड़े जरूरी नहीं हैं, बल्कि जेंटलमैन का मतलब समाज में आपके व्यवहार और आचरण से होता है, जो कि रोजमर्रा की जिंदगी में आप दिखाते हैं। यहां इसका उदाहरण है।

26 वर्षीय विकास नामदेव उन लोगों का सहयात्री था, जिसे असली चीजों पर विश्वास था, चाहे वह पहनने के लिए कपड़े हों या खाने के लिए रसगुल्ले। वो गुजरात या दिल्ली की किसी स्थानीय मिठाई की दुकान से संतुष्ट नहीं होता था। वो कोलकाता की फ्लाइट बुक करता, रसगुल्ले का आनंद लेता और उसी रात लौट आता।

उसका दावा था कि वो एक “टेक्सटाइल बिजनेसमैन” है। यहां तक कि एक गिलास स्कॉच के लिए भी वो गोवा जाता, मस्ती करता और उसी रात काम पर लौट आता, क्योंकि उसका काम देर रात या अलसुबह के शुरुआती घंटों में शुरू होता था। लेकिन, नामदेव वास्तव में एक धनी व्यवसायी नहीं था।

जाहिर तौर पर उसके चमचमाते लुक और ब्रांडेड कपड़ों को देखकर किसी के भी मन में उसके प्रति शंका नहीं हुई। महंगे कपड़े पहनकर वह अहमदाबाद और वडोदरा के बीच चलने वाली ट्रेनों में थर्ड एसी या सेकंड एसी टिकट बुक करता था।

सुबह 3 से 4 बजे के बीच ट्रेन में चढ़ता, पूरे कोच का चक्कर लगाता और गहने पहने हुए सो रही महिलाओं को निशाना बनाता। गहने चुराने के बाद वडोदरा या सूरत में उतर जाता। उसने खासतौर पर अहमदाबाद-वडोदरा-सूरत रूट को चुना, क्योंकि शादी के सीजन में यात्री महंगे गहने लेकर सफर करते हैं। पकड़े जाने से बचने के लिए वह वडोदरा और अहमदाबाद में होटल रूम बुक करता था। ट्रेन टिकट और होटल बुकिंग के लिए वह चोरी के आधार कार्ड का इस्तेमाल करता था।

मध्य प्रदेश के निवासी नामदेव ने 12वीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ दी थी और अपनी आलीशान जीवनशैली की जरूरतें पूरी करने के लिए शातिराना ढंग से ट्रेन में चोरी करता था। शुरुआत में उसने मध्य प्रदेश में वाहनों की चोरी की, लेकिन बाद में ट्रेन चोरी पर ध्यान केंद्रित किया।

पिता की मृत्यु के बाद उसने घर छोड़ दिया था और परिवार में उसकी मां, भाई और बहन को पता था कि महंगे कपड़े और तोहफों से वह अपना असली चरित्र नहीं छिपा सकता, क्योंकि वह अंदर से जेंटलमैन नहीं था।

इसलिए परिवार ने उससे सारे संबंध तोड़ लिए। इस बुधवार को वडोदरा क्राइम ब्रांच ने उसे रेलवे स्टेशन पर संदिग्ध रूप से घूमते हुए पकड़ा। उसके बैग की तलाशी में 34 लाख रुपए के सोने के आभूषण मिले। और इस तरह उस जेंटलमैन का असली चेहरा सामने आ गया!

फंडा यह है कि दिखावे धोखा दे सकते हैं। इसलिए अपने आसपास के लोगों को जज करते समय हमेशा सतर्क रहें। लोगों को उनके बाहरी रूप से नहीं, बल्कि अपनी चौकन्नी आंखों से उनके इरादों को परखें। ध्यान रखिए उनके चेहरे उनके इरादों को कभी नहीं छिपा सकते।

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