एन. रघुरामन का कॉलम: अगली पीढ़ी पर बीमारी का कर्ज न चढ़ने दें

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एन. रघुरामन का कॉलम:  अगली पीढ़ी पर बीमारी का कर्ज न चढ़ने दें

एन. रघुरामन का कॉलम: अगली पीढ़ी पर बीमारी का कर्ज न चढ़ने दें

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39 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

पिछले शुक्रवार की शाम, हम कुछ लोग मंच पर उपस्थित थे। तभी कुछ लड़कियों ने “ॐ नमामि धन्वन्तरिमादिदेवं, सुरासुरैर्वन्दित पाद पद्यम्…” का पाठ शुरू कर दिया। मैंने संस्कृत के उच्चारणों को समझने के लिए ध्यान लगाया ही था कि दर्शकों के बीच बैठी लगभग 50 स्कूली छात्राओं ने एक साथ “…लोके जरारूक् भय मृत्यु नाशनं, दातारमीशं विविधौषधिनाम्॥” का उच्चारण शुरू कर दिया।

इससे मेरे मन में उन छात्राओं के प्रति जिज्ञासा जागी। तब मेरे बगल में बैठे, कार्यक्रम के आयोजक और देश के 92 जिलों में मौजूद, ‘आरोग्य भारती’ संगठन के राष्ट्रीय संगठन सचिव, डॉ. अशोक कुमार वार्ष्णेय ने बताया कि ये मप्र के सरकारी स्कूलों की छात्राएं हैं, जो छात्रावास में रहती हैं। इस छात्रावास में छठवीं से बारहवीं तक की 280 छात्राएं निवास करती हैं।

आरोग्य भारती ने इस छात्रावास को गोद लिया है, जिसका उद्देश्य सभी को स्वस्थ रखना है। संगठन के मासिक प्रबोधन का नाम “स्वास्थ्य प्रबंधन से जीवन प्रबंधन” था।छात्रावास में छात्राएं सूर्योदय से पहले उठती हैं। वे संस्कृत श्लोकों का पाठ करती हैं और योग तथा अन्य व्यायाम करती हैं। उन्हें स्वच्छता और पर्यावरण की रक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है। “कबाड़ से जुगाड़” नाम की खास कक्षा भी होती है जहां कचरे से शानदार चीजें बनाना सिखाते हैं।

प्रशिक्षण का सबसे अहम हिस्सा है औषधीय बगीचा तैयार करना और उसकी देखभाल करना, जो वर्षों तक बीमारियों के इलाज में काम आ सकता है।तब मुझे यह अहसास हुआ कि मैं ऐसी संस्कृति का हिस्सा हूं, जिसमें कभी शरीर का महत्व नहीं समझाया जाता।

जी हां, ज्यादातर भारतीय परिवार और कम से कम मध्यम और निम्न आयवर्ग के परिवारों में, स्वस्थ रहना कम ही सिखाते हैं। वे हमें आज्ञाकारी बनना सिखाते हैं, नौकरी के लिए योग्य बनाते हैं, लेकिन कभी मजबूत, महत्वाकांक्षी या सचेतन नहीं बनाते।जब मैं दीप प्रज्ज्वलन के लिए कुर्सी से उठा, तो मेरे घुटनों में हल्का दर्द हुआ। इससे मेरा यह विचार और मजबूत हो गया कि हमारे परिवार पैसा बचाना सिखाते हैं, घुटने नहीं। परिवार की सुरक्षा के लिए नैतिक पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन पॉश्चर की रक्षा करना नहीं बताते।

याद कीजिए, कैसे हमारे शिक्षक सार्वजनिक व्यवहार और सरकारी नौकरी के लिए अच्छे अंकों का महत्व बताते थे। लेकिन क्या किसी ने बताया कि परीक्षा हॉल में घबराहट हो तो गहरी सांस लेना चाहिए? क्लास में सोने पर सजा मिलती थी, लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि अच्छी नींद कैसी होती है क्योंकि समाज में यही कहा जाता है कि आराम आलस की निशानी है। स्वास्थ्य ही धन है, यह सिर्फ एक कहावत बनकर रह गया है। हमारे समाज में मानसिक रोग को आज भी शर्म का विषय माना जाता है।

अब बच्चों को यह बताने का समय आ गया है कि स्वास्थ्य पर खर्च करना निवेश है, खर्च नहीं। उन्हें पता होना चाहिए कि शक्कर एक ड्रग की तरह है, सूर्यास्त से पहले डिनर स्वास्थ्यवर्धक है और बाजुओं की मसल बनाने से ज्यादा जरूरी है पेट की सेहत। यहां तक कि आज भी कई घरों में बीमारियों की रोकथाम के तरीके नहीं पता, लेकिन रोग का डर बना हुआ है। इसलिए बच्चों को बताएं कि अपने शरीर का ख्याल रखना, स्वार्थ नहीं है। आरोग्य भारती का कार्यक्रम खत्म होने के बाद, सभी बच्चों को एक प्रदर्शनी दिखाई गई, जहां ज्यादातर बीमारियों की रोकथाम और इलाज के प्राकृतिक तरीके बताए गए।

फंडा यह है कि चारों तरफ प्रदूषण और बढ़ती नई बीमारियों के बीच, हमें अपनी अगली पीढ़ी को पहला पाठ यह पढ़ाना चाहिए कि वे बीमारी के कर्ज से मुक्त रहें। ऐसा न करने पर सारी बचत खुद के और परिवार के इलाज में जाएगी क्योंकि यह दिन-ब-दिन महंगा हो रहा है।

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