आपकी बात : ‘क्या एक नेता के दो जगह से चुनाव लडऩे पर रोक लगनी चाहिए?’ | Your point: ‘Should a leader be banned from contesting from two places | Patrika News h3>
अर्जुनसिंह राव, भीनमाल
—————————- स्थानीय उम्मीदवारों को मिले मौका चुनावों को पारदर्शी बनाने के लिए एक नेता के दो जगहों से चुनाव लडऩे पर पूर्णत: रोक लगाना चाहिए। एक नेता अगर दो जगहों से चुनाव लड़ता है तो इससे दूसरे कार्यकर्ताओं को मौका नहीं मिल पाता। चुनावों में पार्टियों की ओर स्थानीय प्रत्याशी को मौका दिया जाना चाहिए। ऐसे प्रावधान करना चाहिए और जो इस प्रावधान का उल्लंघन करे उसकी मान्यता रद्द कर दी जाए।
आलोक वालिम्बे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ ———————— चुनावों का अनावश्यक बोझ एक नेता का दो जगह से चुनाव लडऩे का मतलब एक विद्यार्थी को दो कक्षाओं के लिए परीक्षा देने जैसा है। कहीं से भी पास हो जाओ। नेता भी यही करते हैं। दो जगह से चुनाव लड़ते हैं और वे दोनों ही जगहों से जब जीत जाते हैं, तब उन्हें एक सीट को छोडऩी पड़ती है। उस खाली सीट के लिए फिर से चुनाव कराना होता है। दो सीटों से चुनाव लडऩे का मतलब है, हरेक का बाद में एक-एक सीट को त्यागना और फिर से चुनाव और जनता के पैसों की बर्बादी। अत: दो जगहों से चुनाव लडऩे पर रोक लगाकर एक सीट पर ही चुनाव लडऩा अनिवार्य कर देना ही देश के लिए हितकारी होगा।
विभा गुप्ता, बेंगलूरु
————————- अनावश्यक बोझ है जनता पर किसी भी लोकतांत्रिक देश को मजबूती प्रदान करना स्वस्थ चुनाव प्रणाली की निशानी है। विगत कई वर्षों से चुनाव के दौरान नेता या उम्मीदवार दो जगहों से चुनाव लड़ रहे है! नि:संदेह इस पर रोक लगनी चाहिए। क्योंकि दो अलग-अलग जगहों से चुनाव लडऩे पर संसाधनों की बर्बादी होती है। सरकार पर अनावश्यक खर्च का बोझ बढ़ता है तथा जनमानस को भी काफी परेशानी होती हैं।
मनीष कुमार सिन्हा, रायपुर, छत्तीसगढ़ ——————————– उपचुनाव संसाधनों का दुरुपयोग एक नेता को एक ही जगह से चुनाव लडऩा चाहिए। दो जगह से चुनाव लड़ कर जीतने पर वह एक सीट खाली करेगा, जो कि वहां की जनता के साथ अन्याय है। फिर सीट खाली होने पर उपचुनाव कराने पर संसाधनों का अपव्यय होता है।
श्यामलाल मीणा, साठपुर
————————– लोकतंत्र में ऐसा उचित नहीं दो जगह से किसी नेता के चुनाव लडऩे पर छोड़ी गयी एक सीट पर निर्वाचन आयोग को पुन: पूरी चुनावी प्रक्रिया करानी होती है, जो सरकार पर व्यर्थ का बोझ होती है। पैसों की बर्बादी और प्रशासन पर काम के बोझ के साथ, अनेक तरह की असुविधाएं भी बढ़ती हैं। बार-बार होते चुनाव से, आम जनता को अनेक प्रकार की परेशानियों को झेलना पड़ता है।
नरेश कानूनगो, देवास, मध्यप्रदेश —————————–
अर्जुनसिंह राव, भीनमाल
—————————- स्थानीय उम्मीदवारों को मिले मौका चुनावों को पारदर्शी बनाने के लिए एक नेता के दो जगहों से चुनाव लडऩे पर पूर्णत: रोक लगाना चाहिए। एक नेता अगर दो जगहों से चुनाव लड़ता है तो इससे दूसरे कार्यकर्ताओं को मौका नहीं मिल पाता। चुनावों में पार्टियों की ओर स्थानीय प्रत्याशी को मौका दिया जाना चाहिए। ऐसे प्रावधान करना चाहिए और जो इस प्रावधान का उल्लंघन करे उसकी मान्यता रद्द कर दी जाए।
आलोक वालिम्बे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ ———————— चुनावों का अनावश्यक बोझ एक नेता का दो जगह से चुनाव लडऩे का मतलब एक विद्यार्थी को दो कक्षाओं के लिए परीक्षा देने जैसा है। कहीं से भी पास हो जाओ। नेता भी यही करते हैं। दो जगह से चुनाव लड़ते हैं और वे दोनों ही जगहों से जब जीत जाते हैं, तब उन्हें एक सीट को छोडऩी पड़ती है। उस खाली सीट के लिए फिर से चुनाव कराना होता है। दो सीटों से चुनाव लडऩे का मतलब है, हरेक का बाद में एक-एक सीट को त्यागना और फिर से चुनाव और जनता के पैसों की बर्बादी। अत: दो जगहों से चुनाव लडऩे पर रोक लगाकर एक सीट पर ही चुनाव लडऩा अनिवार्य कर देना ही देश के लिए हितकारी होगा।
विभा गुप्ता, बेंगलूरु
————————- अनावश्यक बोझ है जनता पर किसी भी लोकतांत्रिक देश को मजबूती प्रदान करना स्वस्थ चुनाव प्रणाली की निशानी है। विगत कई वर्षों से चुनाव के दौरान नेता या उम्मीदवार दो जगहों से चुनाव लड़ रहे है! नि:संदेह इस पर रोक लगनी चाहिए। क्योंकि दो अलग-अलग जगहों से चुनाव लडऩे पर संसाधनों की बर्बादी होती है। सरकार पर अनावश्यक खर्च का बोझ बढ़ता है तथा जनमानस को भी काफी परेशानी होती हैं।
मनीष कुमार सिन्हा, रायपुर, छत्तीसगढ़ ——————————– उपचुनाव संसाधनों का दुरुपयोग एक नेता को एक ही जगह से चुनाव लडऩा चाहिए। दो जगह से चुनाव लड़ कर जीतने पर वह एक सीट खाली करेगा, जो कि वहां की जनता के साथ अन्याय है। फिर सीट खाली होने पर उपचुनाव कराने पर संसाधनों का अपव्यय होता है।
श्यामलाल मीणा, साठपुर
————————– लोकतंत्र में ऐसा उचित नहीं दो जगह से किसी नेता के चुनाव लडऩे पर छोड़ी गयी एक सीट पर निर्वाचन आयोग को पुन: पूरी चुनावी प्रक्रिया करानी होती है, जो सरकार पर व्यर्थ का बोझ होती है। पैसों की बर्बादी और प्रशासन पर काम के बोझ के साथ, अनेक तरह की असुविधाएं भी बढ़ती हैं। बार-बार होते चुनाव से, आम जनता को अनेक प्रकार की परेशानियों को झेलना पड़ता है।
नरेश कानूनगो, देवास, मध्यप्रदेश —————————–