आज का एक्सप्लेनर: 20 साल बाद ठाकरे भाइयों ने दिए मिलन के संकेत, क्या है दोनों की मौजूदा राजनीतिक हैसियत; क्या शिंदे-BJP के लिए खतरा

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आज का एक्सप्लेनर:  20 साल बाद ठाकरे भाइयों ने दिए मिलन के संकेत, क्या है दोनों की मौजूदा राजनीतिक हैसियत; क्या शिंदे-BJP के लिए खतरा

आज का एक्सप्लेनर: 20 साल बाद ठाकरे भाइयों ने दिए मिलन के संकेत, क्या है दोनों की मौजूदा राजनीतिक हैसियत; क्या शिंदे-BJP के लिए खतरा

2024 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी का खाता तक नहीं खुला। उद्धव ठाकरे की पार्टी भी 288 सीटों की विधानसभा में महज 20 सीट पर सिमट गई। जिस शिवसेना के लिए दोनों के रास्ते अलग हुए थे, वो भी छिन चुकी है। ऐसे में राज और उद्धव के र

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उद्धव और राज के एकसाथ आने की अटकलें क्यों लग रही हैं, क्या दोनों मिलकर महाराष्ट्र में शिंदे और बीजेपी का मुकाबला कर सकते हैं और कैसे अलग हुए थे दोनों भाइयों के रास्ते; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: राज और उद्धव ने क्या संकेत दिए, जिससे दोनों के साथ आने की अटकलें लग रही हैं?

जवाबः पिछले तीन दिनों में ऐसा बहुत कुछ हुआ, जिससे उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने की अटकलें लग रही हैं…

  • शुरुआत होती है महेश मांजरेकर के यूट्यूब चैनल पर शनिवार को प्रसारित हुए एक पॉडकास्ट से। इस पॉडकास्ट के गेस्ट महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे थे।
  • महेश मांजरेकर ने उद्धव के साथ गठबंधन पर सवाल किया था। इस पर राज ठाकरे ने कहा, ‘हमारे बीच राजनीतिक मतभेद हैं, विवाद हैं, झगड़े हैं, लेकिन यह सब महाराष्ट्र के आगे बहुत छोटी चीज हैं। महाराष्ट्र और मराठी लोगों के हित के लिए साथ आना कोई बहुत बड़ी मुश्किल नहीं है। सवाल केवल इच्छाशक्ति का है।’
  • एक और सवाल पर राज ने कहा, ‘जब मैं शिवसेना में था तो मुझे उद्धव के साथ काम करने में कोई आपत्ति नहीं थी। सवाल यह है कि क्या दूसरा व्यक्ति चाहता है कि मैं उसके साथ काम करूं? मैं कभी भी अपने अहंकार को ऐसी छोटी-छोटी बातों में नहीं लाता।’

एक्टर-डायरेक्टर महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट में राज ठाकरे। (साभार- Wacko Sanity)

  • उद्धव ठाकरे ने भी इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी, लेकिन एक शर्त के साथ। उन्होंने कहा, ‘मैं छोटे-छोटे विवादों को दरकिनार करने के लिए तैयार हूं, लेकिन जो महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करते हैं, उनके साथ कोई संबंध नहीं रखूंगा।’
  • शिवसेना (UBT) सांसद संजय राउत ने कहा कि उद्धव एक शर्त पर राज से बात को तैयार हैं, अगर राज महाराष्ट्र और शिवसेना (UBT) के दुश्मनों को अपने घर में जगह न दें।
  • शिवसेना (UBT) नेता अंबादास दानवे ने कहा कि दोनों भाई हैं, लेकिन उनकी राजनीति अलग है। अगर साथ आना है तो आमने-सामने बात होनी चाहिए, टीवी पर नहीं।
  • महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि अगर दोनों साथ आते हैं तो हमें खुशी होगी। मतभेद मिटाना अच्छी बात है। हालांकि उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

सवाल-2: राज ठाकरे और उद्धव के बीच झगड़ा क्या था, क्यों अलग हुए थे रास्ते?

जवाबः राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ ही में बड़े हुए। दोनों एक साथ दादर के बाल मोहन विद्या मंदिर स्कूल में पढ़ते थे। उद्धव जहां शर्मीले स्वभाव के थे, वहीं राज 3 साल की उम्र से ही अपने चाचा बालासाहेब के तौर तरीके सीखने लगे थे।

बालासाहेब के नक्शे कदम पर चलते-चलते राज शिवसेना के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे। वे हूबहू बालासाहेब की तरह दिखते, चलते और बोलते थे। इसी वजह से लोग समझने लगे थे कि बालासाहेब के बाद शिवसेना की कमान राज ठाकरे को सौंप दी जाएगी। साल 2000 आते-आते शिवसेना में बालासाहेब ठाकरे के बाद उनके भतीजे राज ठाकरे दूसरे नंबर के नेता हो गए थे।

1990 के दशक में बालासाहेब ठाकरे के साथ बेटे उद्धव और भतीजे राज ठाकरे।

इसी दौरान पिता के कहने पर उद्धव ठाकरे भी राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल होने लगे। 2002 में बालासाहेब ने बेटे उद्धव को मुंबई महानगर पालिका (BMC) के चुनाव की जिम्मेदारी दी। उद्धव पिता के इशारे को समझ चुके थे। उन्होंने इस चुनाव में राज ठाकरे के करीबी नेताओं के टिकट काट दिए। नाराज राज ने एक इंटरव्यू में कहा- ‘हां! मैं इससे दुखी हूं।’

2002 की इस चुनावी जीत से पार्टी पर उद्धव की पकड़ मजबूत हो गई। अब तक शिवसैनिकों को भी यह बात समझ में आने लगी थी कि आने वाले समय में उद्धव ठाकरे ही शिवेसना के प्रमुख बनेंगे।

वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र दीक्षित बताते हैं कि इस जीत के अगले साल ही 30 जनवरी 2003 को महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में शिवसेना का अधिवेशन रखा गया। इसमें उद्धव ठाकरे को अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव पेश हुआ। सबको हैरानी उस वक्त हुई जब राज ठाकरे से ही ये प्रस्ताव पेश कराया गया। उद्धव के कार्यकारी अध्यक्ष बनते ही राज ठाकरे की अपने चाचा से नाराजगी बढ़ने लगी।

2005 में तब हंगामा मच गया जब राज ठाकरे ने पत्र लिखकर बालासाहेब ठाकरे से कहा कि चापलूसों की चौकड़ी आपको गुमराह कर रही है। राज के बागी अंदाज को बालासाहेब ​​​​​​भांप गए थे।

राज ने दिसंबर 2005 में शिवसेना छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा, ‘मेरा झगड़ा मेरे विट्ठल के साथ नहीं है, बल्कि उसके आसपास के पुजारियों के साथ है। कुछ लोग हैं, जो राजनीति की ABC को नहीं समझते हैं। इसलिए मैं शिवसेना के नेता पद से इस्तीफा दे रहा हूं। बालासाहेब ठाकरे मेरे भगवान थे, हैं और रहेंगे।

9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की शुरुआत की और दोनों के रास्ते अलग हो गए। 17 नवंबर 2012 को बालासाहेब ठाकरे का देहांत हो गया और राज-उद्धव को एक साथ जोड़ने वाली कड़ी भी टूट गई।

17 नवंबर 2012 को बालासाहेब के अंतिम संस्कार के दौरान राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे।

सवाल-3: महाराष्ट्र में फिलहाल उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की मौजूदा राजनीतिक हैसियत क्या है?

जवाबः 2009 के विधानसभा चुनावों में मनसे ने 13 सीटें जीती थीं। यह उसकी अब तक की सबसे बेहतर परफॉर्मेंस थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में मनसे 10 सीटों पर लड़ी, लेकिन एक भी सीट जीत नहीं पाई।

2019 के विधानसभा चुनावों में मनसे कुल 218 सीटों पर लड़ी, लेकिन सिर्फ 1 सीट कल्याण ग्रामीण ही जीत सकी। 2024 विधानसभा चुनाव में तो मनसे का खाता भी नहीं खुला। राज ठाकरे के बेटे अमित अपना पहला चुनाव ही हार गए।

2009, 2014 और 2019 विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। उसे क्रमशः 44, 63 और 56 सीटें मिलीं। 2019 चुनाव के बाद शिवसेना ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा और महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाई। उद्धव मुख्यमंत्री बने।

जून 2022 में शिंदे ने शिवसेना से बगावत कर दी और बाद में शिवसेना ही हड़प ली। उद्धव ठाकरे गुट का नाम पड़ा- शिवसेना (यूबीटी)। 2024 विधानसभा चुनाव में शिवेसना (यूबीटी) की परफॉर्मेंस भी बेहद खराब रही और पार्टी महज 20 सीटों पर सिमट गई।

सवाल-3: क्या 20 साल बाद एक साथ नजर आ सकते हैं राज और उद्धव?

जवाबः मराठी अखबार लोकमत के संपादक रहे सुधीर महाजन कहते हैं,

आने वाले BMC चुनाव राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के लिए अस्तित्व की लड़ाई है। अगर उद्धव ये चुनाव नहीं जीते तो समझिए उनकी पॉलिटिक्स अब खत्म हो चुकी है। दूसरी तरफ राज ठाकरे के पास तो कैडर ही नहीं है। पैन महाराष्ट्र देखा जाए तो उनका अस्तित्व पहले ही लगभग खत्म हो चुका है।

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वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर के मुताबिक…

  • दोनों साथ आएंगे ये कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी, लेकिन दोनों को ये समझ आ गया है कि अपना रेलिवेंस बनाए रखने के लिए साथ आना जरूरी है।
  • पिछले विधानसभा चुनाव में भी अगर मनसे के वोट शिवसेना (UBT) को मिलते तो उनकी सीटें ज्यादा होतीं।
  • राज ठाकरे का पिछले दो चुनाव से न तो कोई विधायक जीतकर आ रहा है न कॉरपोरेटर। अगर इस BMC चुनाव में राज का एक भी कैंडिडेट जीतकर नहीं आया तो उनका चुनाव चिन्ह जाएगा और रेलिवेंस पर भी सवाल उठने लगेंगे।

हालांकि महाराष्ट्र की राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले पॉलिटिकल एनालिस्ट राजू पारुलेकर कहते हैं कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक साथ नहीं आ सकते। दोनों की राजनीतिक स्टाइल और मुद्दे अलग हैं। किसी एक को दूसरे की विचारधारा से सहमत होना पड़ेगा, जो कि बहुत मुश्किल है। सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि कौन किसका नेतृत्व मानेगा।

सवाल-4: अगर राज और उद्धव साथ आते हैं, तो महाराष्ट्र की राजनीति में क्या असर पड़ेगा?

जवाबः राज और उद्धव साथ आते हैं, तो 3 इम्पैक्ट हो सकते हैं…

1. मराठी वोटबैंक का दोबारा ध्रुवीकरण: पिछले एक दशक से मराठी अस्मिता का मुद्दा कमजोर पड़ गया है, क्योंकि शिवसेना बंट चुकी है और MNS सीमित हो चुकी है। दोनों के साथ आने से ‘मराठी मानुष’ की राजनीति को एकजुट प्लेटफॉर्म मिल सकता है। इससे मुंबई, ठाणे, पुणे जैसे शहरी इलाकों में असर पड़ेगा।

2. शिंदे गुट की चिंता बढ़ेगी: 2024 चुनाव में शिंदे गुट को ‘असली शिवसेना’ का फायदा मिला है। अगर राज और उद्धव साथ आते हैं, तो लोग भावनात्मक आधार पर ‘ठाकरे’ नाम के साथ जुड़ सकते हैं।

3. BMC चुनाव में गेमचेंजर: मुंबई की सबसे बड़ी नगर पालिका पर कब्जा शिवसेना की प्रतिष्ठा का मुद्दा रहा है। 2017 में शिवसेना अकेले लड़ी और टॉप पार्टी रही, MNS कमजोर थी। अगर दोनों साथ आते हैं, तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।

हालांकि वरिष्ठ संपादक सुधीर महाजन का मानना इससे अलग है। वो कहते हैं,

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दोनों के ही पास बालासाहेब की धरोहर नाम की कोई चीज अब नहीं बची है। इनके पास जो हिंदू आइडियोलॉजी का एजेंडा था वो बीजेपी ने जुटा लिया है। शिवसेना के कद्दावर नेता शिंदे के साथ चले गए। ऐसे में इनके साथ आने का भी कोई फायदा नहीं दिखता।

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सवाल-5: राज और उद्धव के एक साथ आने में क्या चुनौतियां हैं?

जवाबः महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स को समझने वाले एक्सपर्ट्स दोनों के साथ आने में 3 बड़ी चुनौतियां देखते हैं…

1. लीडरशिप की चुनौतीः दोनों में मनमुटाव होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि शिवसेना का नेतृत्व कौन करेगा। इसी वजह से 2005 में दोनों अलग हुए थे। राज ठाकरे को उद्धव के नीचे काम करना मंजूर नहीं था।

2. महाविकास अघाड़ी में समन्वयः राज ठाकरे हिंदुत्व और क्षेत्रीयता की कट्टर राजनीति लेकर आते हैं। ऐसे में उनके साथ आने से महाविकास अघाड़ी के सहयोगी कांग्रेस और NCP का रुख क्या होगा?

3. कार्यकर्ताओं में अनबनः दोनों पार्टियों के जमीनी कार्यकर्ता सालों से एक-दूसरे के खिलाफ रहे हैं। मेल करवाना आसान नहीं।

4. अगली पीढ़ी को कमानः राज और उद्धव अब अपनी राजनीति के उस फेज में हैं, जहां अगली पीढ़ी को कमान देना चाहते हैं। ऐसे में राज-उद्धव साथ आ भी जाएं, तो आदित्य और अमित कैसे एक-दूसरे की लीडरशिप स्वीकार करेंगे।

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर कहते हैं कि दोनों के साथ आने से उद्धव के गठबंधन में ज्यादा परेशानी नहीं है। कांग्रेस और शरद पवार को अब ज्यादा तकलीफ नहीं होगी, क्योंकि उनके पास कोई ऑप्शन ही नहीं बचा। महाराष्ट्र की राजनीति की खास बात ये है कि यहां क्षेत्रीय दलों का हमेशा से दबदबा रहा है। इसलिए राष्ट्रीय पार्टियों को इनके साथ मिलकर ही चलना होगा।

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