आज का एक्सप्लेनर: संविधान में कौन सर्वोच्च, क्या राष्ट्रपति को अदालतें आदेश दे सकती हैं; आर्टिकल-142 और उप-राष्ट्रपति के बयान पर बवाल, जानें पूरी कहानी

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आज का एक्सप्लेनर:  संविधान में कौन सर्वोच्च, क्या राष्ट्रपति को अदालतें आदेश दे सकती हैं; आर्टिकल-142 और उप-राष्ट्रपति के बयान पर बवाल, जानें पूरी कहानी

आज का एक्सप्लेनर: संविधान में कौन सर्वोच्च, क्या राष्ट्रपति को अदालतें आदेश दे सकती हैं; आर्टिकल-142 और उप-राष्ट्रपति के बयान पर बवाल, जानें पूरी कहानी

उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा है कि संविधान का आर्टिकल 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ परमाणु मिसाइल बन गया है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने भी कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करते ह

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करके तमिलनाडु के राज्यपाल को विधेयक रोकने पर फटकार लगाई थी और राष्ट्रपति को भी निर्देश दिए थे।

क्या राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकतीं अदालतें, उप-राष्ट्रपति ने आर्टिकल 142 को क्यों कहा परमाणु मिसाइल और भारत में सबसे ऊपर कौन है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया है? जवाबः तमिलनाडु विधानसभा में 2020 से 2023 के बीच 12 विधेयक पारित किए गए। इन्हें मंजूरी के लिए राज्यपाल आरएन रवि के पास भेजा गया। उन्होंने विधेयकों पर कोई कार्रवाई नहीं की, दबाकर रख लिया।

अक्टूबर 2023 में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। इसके बाद राज्यपाल ने 10 विधेयक बिना साइन किए लौटा दिए और 2 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दिया। सरकार ने 10 विधेयक दोबारा पारित कर राज्यपाल के पास भेजे। राज्यपाल ने इस बार इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को एक अहम फैसले में राज्यपाल के इस तरह विधेयक अटकाने को अवैध बता दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने राज्यपाल से कहा- आप संविधान से चलें, पार्टियों की मर्जी से नहीं।

राज्यपाल ने ‘ईमानदारी’ से काम नहीं किया। इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया कि इन 10 विधेयकों को पारित माना जाए। यह पहली बार था जब राज्यपाल की मंजूरी के बिना विधेयक पारित हो गए।

तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि (बाएं), सीएम स्टालिन (दाएं) के साथ।

दरअसल, संविधान में यह निर्धारित नहीं किया गया है कि विधानसभा से पारित विधेयक को राज्यपाल या राष्ट्रपति को कितने दिनों के भीतर मंजूरी या नामंजूरी देनी होगी। संविधान में सिर्फ इतना लिखा है कि उन्हें ‘जितनी जल्दी हो सके’ फैसला लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस ‘जितनी जल्दी हो सके’ को डिफाइन कर दिया है…

  • अगर राज्य सरकार कोई विधेयक मंजूरी के लिए भेजती है तो राज्यपाल को एक महीने के भीतर कार्रवाई करनी होगी।
  • अगर राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति के पास भी इस पर फैसला लेने के लिए 3 महीने का ही समय होगा। इससे ज्यादा दिन होने पर उन्हें उचित कारण बताना होगा।
  • अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति समय सीमा के भीतर कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो राज्य सरकार अदालत जा सकती है।

सवाल-2: उप-राष्ट्रपति धनखड़ ने आर्टिकल 142 और अदालतों पर क्या कहा, जिस पर बहस छिड़ गई? जवाबः 17 अप्रैल को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज ‘सुपर पार्लियामेंट’ की तरह काम कर रहे हैं।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, ‘जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।’

धनखड़ के बयान पर डीएमके राज्यसभा सांसद तिरुचि शिवा ने कहा,

संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के पास अलग-अलग शक्तियां हैं। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि संविधान सर्वोच्च है। जगदीप धनखड़ की टिप्पणियां अनैतिक हैं।

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राज्यसभा सांसद और जाने-माने वकील कपिल सिब्बल ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘आज की तारीख में पूरे देश में अगर किसी एक संस्थान पर भरोसा है तो वो है न्यायपालिका। क्या उन्हें (धनखड़) पता है कि संविधान के अनुच्छेद 142 ने सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय का अधिकार दिया है। राष्ट्रपति सिर्फ प्रतीकात्मक प्रमुख होते हैं। वो कैबिनेट के अधिकार और सलाह पर काम करते हैं। राष्ट्रपति के पास अपना कोई निजी अधिकार नहीं होता।’

सवाल-3: आखिर आर्टिकल 142 क्या है, जिसकी इतनी चर्चा हो रही? जवाबः भारत के संविधान निर्माताओं ने वो सभी बातें संविधान में शामिल कर लीं, जितनी उस वक्त तक सोची जा सकती थीं। इसके साथ ही आर्टिकल 142 के जरिए सुप्रीम कोर्ट को ‘पूर्ण न्याय’ करने की विशेष शक्ति दे दी। ताकि जब कानून के मौजूदा प्रावधान पर्याप्त न हों या अस्पष्ट हों, तब भी न्याय सुनिश्चित किया जा सके। इसका मसौदा आर्टिकल 18 की तरह संविधान सभा में बिना बहस और विरोध के अपनाया गया था।

डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने संविधान सभा में इस अनुच्छेद का समर्थन करते हुए कहा था,

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There may be many matters where the ordinary law may not be able to give a remedy. Article 142 is a safety valve.

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यानी, अगर कोई मामला इतना असाधारण हो कि मौजूदा कानून के जरिए न्याय न किया जा सके, तो ये अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट के लिए एक ‘सेफ्टी वॉल्व’ है।

यह आर्टिकल सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ संविधान की व्याख्या करने के साथ अंतिम न्याय देने वाली संस्था बनाता है।

सवाल-4: भारत में सबसे ऊपर कौन है, क्या अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं? जवाबः ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, वहां की अदालतें संसद द्वारा बनाए कानून से बंधी होती हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान के जानकार विराग गुप्ता कहते हैं…

  • भारत में सुप्रीमेसी ऑफ कॉन्स्टिट्यूशन है, न कि सुप्रीमेसी ऑफ पार्लियामेंट। यानी देश में संविधान सबसे ऊपर है। इसके तहत सभी के बीच शक्तियों का विभाजन है। इसलिए राष्ट्रपति का पद भी संविधान से ऊपर नहीं हो सकता और न ही संविधान के दायरे से बाहर जा सकता है।
  • सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को भी आदेश दे सकती है। उसे आर्टिकल 142 के तहत अधिकार है कि वह पूर्ण न्याय के लिए संविधान सम्मत फैसला ले सकती है, जिसमें जरूरत पड़ने पर राष्ट्रपति यानी केंद्र सरकार को आदेश देना भी शामिल है।
  • हालांकि राष्ट्रपति की तरह काम करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं है। मान लीजिए सुप्रीम कोर्ट के जज की नियुक्ति करनी है और कॉलेजियम में कोई सिफारिश पेंडिंग है, तो सुप्रीम कोर्ट यह नहीं कह सकती कि इतने दिनों से सिफारिश पेंडिंग है, तो हम राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना नियुक्ति कर देते हैं।

सवाल-5: क्या आर्टिकल 142 के इस्तेमाल से किए गए फैसलों को पलटा जा सकता है? जवाबः सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले को पलटने के 3 तरीके हैं-

1. पुनर्विचार याचिका: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका यानी रिव्यू पिटीशन दायर की जाए। इसमें कहा जाए कि कोर्ट के फैसले में बड़ी संवैधानिक त्रुटि थी, जिस वजह से फैसले में पुनर्विचार जरूरी है।

2. बड़ी बेंच का गठन: दो अलग-अलग कॉन्फ्लिक्टिंग जजमेंट हों, जिस पर बड़ी बेंच का गठन किया जाए। यानी किसी केस पर दो ऐसे फैसले आए हों, जो एक-दूसरे से अलग हों। तो फिर तीन जजों की बड़ी बेंच का गठन किया जाए।

3. संविधान पीठ: सुप्रीम कोर्ट की नई और पांच या ज्यादा जजों की बेंच केस पर सुनवाई करे और नए तरीके से फैसला दे।

विराग गुप्ता कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला आर्टिकल 142 के तहत लिए फैसले से अलग नहीं होता। जब एक बार फैसला ले लिया जाता है, तो उसमें कोई फर्क नहीं होता। सामान्य तौर पर लिए फैसले और आर्टिकल 142 से लिए फैसले बराबर हो जाते हैं।’

सुप्रीम कोर्ट के आर्टिकल 142 के तहत लिए फैसले और सामान्य तौर पर लिए फैसले अलग नहीं हैं।

सवाल-6: क्या सरकार चाहे तो संविधान के आर्टिकल 142 को खत्म कर सकती है? जवाबः भारत सरकार संविधान में संशोधन करके आर्टिकल 142 को हटा नहीं सकती है, क्योंकि यह संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का हिस्सा है। अगर सरकार ने इसे अनुच्छेद 368 के इस्तेमाल से हटाने की कोशिश की, तो सुप्रीम कोर्ट से इसे चुनौती मिलेगी और फैसला रद्द हो सकता है।

विराग गुप्ता के मुताबिक,

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केंद्र सरकार सेपरेशन ऑफ पावर के तहत आर्टिकल 142 में बदलाव के प्रावधान कर सकती है। इससे आर्टिकल 142 में स्पष्टता आ जाए कि इसके तहत क्या फैसले लिए जा सकते हैं और क्या नहीं। सरकार इसमें सीमाएं बना सकती है, जिससे भविष्य में अनुच्छेद 142 की आड़ में न्यायपालिका की संवैधानिक सीमा के अतिक्रमण पर रोक लग सके।

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