EXCLUSIVE: एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड पर काम शुरू… पढ़ें इंटरनेशनल सोलर एलायंस के DG का इंटरव्यू
इंटरनेशनल सोलर एलायंस (आईएसए) के महानिदेशक डॉ. अजय माथुर के अनुसार वह समय ज्यादा दूर नहीं है जब सौर ऊर्जा भंडारण उपायों सहित सबसे सस्ती होगी और यह चौबीसों घंटे की बिजली के रूप में कार्य करेगी। इतना ही नहीं, वह कहते हैं कि वन सन, वन वर्ल्ड और वन ग्रिड पर भी काम शुरू हो चुका है। प्रस्तुत है उनसे हिन्दुस्तान के ब्यूरो चीफ मदन जैड़ा की बातचीत के प्रमुख अंश-
आईएसए में अभी 121 देश हैं लेकिन अमेरिका, चीन और पाकिस्तान क्यों शामिल नहीं हुए?
जब यह शुरू हुआ था तब इसमें कर्क रेखा के ईर्द-गिर्द के देश शामिल किए गए। लेकिन बाद में नियमों में बदलाव हुआ और संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को मौका दिया गया। तब से रोज कोई न कोई देश जुड़ रहा है। अमेरिका, चीन, पाकिस्तान समेत हम चाहते हैं कि सभी देश इसमें आए। इसके लिए प्रयास भी हो रहे हैं।
अभी सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी कितनी पहुंच पाई है?
दुनिया में अभी तक कुल बिजली में 7-8 फीसदी सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी है। भारत में यह थोड़ा कम है लेकिन हमारी स्थापित क्षमता करीब 40 हजार मेगावाट के करीब है। यह कुल बिजली क्षमता का 10-11 फीसदी के करीब है। देश हो या दुनिया, सौर ऊर्जा की क्षमता में तेजी से इजाफा पिछले तीन-चार सालों में ही हुआ है। जिस प्रकार से दुनिया इसमें दिचलस्पी ले रही है, मुझे उम्मीद है कि 2030 तक कुल बिजली में 30 फीसदी की हिस्सेदारी सौर ऊर्जा की होगी। जिन देशों ने शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, वहां 2050 तक सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 70-80 फीसदी तक पहुंच सकती है।
सौर ऊर्जा के भंडारण की चुनौतियों से कैसे निपटा जा सकता है?
यह सच है कि सौर ऊर्जा तभी तक प्राप्त होती है जब तक सूरज चमक रहा हो। इसलिए इस पर निर्भरता बढ़ाने के लिए इसका भंडारण होना चाहिए। यह संभव है। इसके दो तरीके हैं। या बैटरी से या सौर जल पंप भंडाण विधि से। दोनों में अतिरिक्त खर्च आता है। इस अतिरिक्त खर्च को जुटाने के लिए बिजली के दिन और रात के दाम अलग-अलग तय करने होंगे। तभी इसकी भरपाई हो सकती है। दूसरे, बैटरी के नए प्लांट भी लग रहे हैं तथा पहले की तुलना में दाम में कमी आई है और आगे इसमें और कमी आने की उम्मीद है।
वन सन, वन वर्ल्ड और वन ग्रिड पर क्या कार्य हो रहा है?
यह बहुत अच्छा प्रस्ताव है तथा दुनिया में इसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है। क्षेत्रीय ग्रिड के निर्माण से सौर बिजली के व्यापार को फायदा हो सकता है। जैसा कि मैंने बताया कि सौर ऊर्जा सूरज की रोशनी के समय ही मिल सकती है। इसमें क्षेत्रीय ग्रिड बनाकर दूसरे देशों को सौर ऊर्जा का आदान-प्रदान किया जा सकता है। मसलन, भारत यूएई को उस समय सौर ऊर्जा दे सकता है, जब वहां रात हो रही होगी और यूएई की सौर ऊर्जा तब भारत को मिल रही होगी जब यहां रात हो रही होगी। इस प्रकार भंडारण की समस्या भी हल हो सकती है।
लेकिन यह तकनीकी रूप से कितना संभव है?
तकनीकी रूप से पूर्णत संभव है। दो देशों के बीच सिर्फ केबल बिछाई जानी हैं जो जमीन में भी हो सकती हैं और समुद्र में भी। जैसे इंटरनेट की केबल हैं, तेल की पाइप लाइन है, वैसे ही बिजली की लाइन भी जा सकती है। देखना यह है कि यह आर्थिक रूप से कितना लाभकारी सिद्ध पाया जाता है। हमने इसके अध्ययन के लिए एक टेंडर निकाला था जो फ्रांस की एजेंसी ईडीएफ को गया है। वह जुलाई तक व्यवहार्यता रिपोर्ट देगी। इसके बाद अक्टूबर तक यह रिपोर्ट देगी कि किन-किन देशों के बीच ऐसी ग्रिड बन सकती है। आस्ट्रेलिया एवं सिंगापुर के बीच ईडीएफ ऐसे प्रोजेक्ट को कर रही है।
सौर ऊर्जा की उत्पादन लागत अभी क्या है?
यह देश में 1.99 रुपये प्रति यूनिट आ चुकी है। उत्पादक इस कीमत पर इसे ग्रिड का बेच रहे हैं। लेकिन यदि इसमें भंडारण की कीमत भी जोड़ दी जाए तो वह सात रुपये यूनिट से अधिक है। इस बीच दो ऐसे सौर संयंत्रों को मंजूरी दी गई है जिन्हें 24 घंटे बिजली आपूर्ति की शर्त है। ये 900 और 300 मेगावाट के संयंत्र हैं। इन्होंने सरकार को चार रुपये यूनिट के दाम दिए हैं। जिस रफ्तार से इस दिशा में काम हो रहा है 2023-2026 के बीच सौर ऊर्जा की भंडरण सहित कीमत सबसे कम होगी।
सौर पैनल का आकार अभी भी बड़ा है, इसे छोटा करने के लिए क्या शोध हो रहे हैं ?
बहुत शोध हो रहे हैं। कोशिश यह है कि कैसे पैनल से ज्यादा से ज्यादा बिजली खींचें और जमीन कम से कम घिरे। हाल में एक ऐसा पैनल आया है जो दोनों तरफ से सूरज की रोशनी खींचता है। दूसरे, इससे सूरज के घूमने पर भी सौर ऊर्जा पैदा होती रहती है। ऐसा पैनल बनाने की भी कोशिश हो रही है जो दिन में बादल लगने पर सूरज की रोशनी कम होने पर भी काम कर सकें।
नेट जीरो में सौर ऊर्जा की क्या भूमिका देखते हैं ?
बिना सौर ऊर्जा या नवीन ऊर्जा के हम नेट जीरो का लक्ष्य नहीं पा सकते हैं। सौर ऊर्जा से जहां बिजली प्राप्त होगी वहीं सौर ऊर्जा से हाइड्रोजन भी तैयार हो रही है तो वाहनों के ईधन का विकल्प साबित होगा। इसलिए सौर ऊर्जा नेट जीरो का मुख्य स्तंभ है।
सौर ऊर्जा देश में कब तक कोयले की जगह ले पाएगी ?
एक दिन सौर ऊर्जा कोयले की जगह जरुर लेगी। लेकिन कितना समय लगेगा यह कहना मुश्किल है। मेरा अनुमान है कि 2025-26 में कोयले और सौर ऊर्जा के बैटरी समेत दाम बराबर हो जाएंगे। 2030 के बाद कोयला बिजली उत्पादन स्थिर हो जाएगा और 2035 के बाद इसमें कमी की उम्मीद है। मुझे उम्मीद है कि 2060-65 तक सौर ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा ही बिजली की समस्त जरूरत पूरी करेगी।
क्या हम कोयले के नए सयंत्र नहीं लगाने की स्थिति में आ चुके है?
ऐसा ही लगता है क्योंकि जो संयंत्र अभी हैं, उनकी उत्पादन क्षमता काफी ज्यादा है। नए लगाने की बजाय उनकी मौजूदा क्षमता का उपयोग करना ही काफी होगा।
इस साल के आखिर में ग्लास्गो में होने वाली जलवायु वार्ता में सभी देशों पर उत्सर्जन के लक्ष्यों में बढ़ोत्तरी का दबाव है ? ऐसे में भारत का क्या रुख होगा?
इस पर सरकार की तरफ से भी बार-बार कहा गया है कि जी-20 देशों में सिर्फ भारत ही एक ऐसा देश है जो पेरिस समझौते के अनुरूप 2 डिग्री की राह पर है। इसलिए लक्ष्यों को बढ़ाने की जरूरत पहले दूसरे देशों को है। मेरा विचार है कि पहले हमें 2030 के अपने लक्ष्य पूरे करने चाहिए तथा उसके बाद आगे की रणनीति निर्धारित करनी चाहिए। हां, मैं इतना जरूर कहूंगा कि सभी देशों को अपने दीर्घावधि लक्ष्यों को नए सिरे से निर्धारित करना चाहिए।
कोरोना महामारी का सौर ऊर्जा क्षेत्र कैसे प्रभावित हुआ है?
सौर ऊर्जा में संचालनात्मक व्यय पहले से कम है तथा इसमें और कमी की जा रही है। इससे इस क्षेत्र में जोखिम कम हो गया है। जिसका असर यह है कि इसमें अब निवेश बढ़ रहा है।
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