सिक्किम के भारत में विलय का चीन ने खूब विरोध किया था। तब से ही दोनों देशों के बीच इस पूर्वोत्तर राज्य को लेकर विवाद जारी है। सिक्किम का भारत में विलय काफी संघर्षों के बाद 26 अप्रैल 1975 को हो पाया था। सिक्किम 1642 में तब अस्तित्व में आया, जब फुन्त्सोंग नामग्याल को सिक्किम का पहला चोग्याल (King) घोषित किया गया. नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षुओं ने राजा घोषित किया था. यहां से सिक्किम में राजशाही की शुरुआत हुई. इसके बाद नामग्याल राजवंश ने 333 साल तक सिक्किम पर राज किया।
आजादी के बाद भारत की तमाम रियासतों का देश में विलय कराया गया। हालांकि, सिक्किम को भारत में विलय कराने में 28 साल लग गए. दरअसल, चोग्याल भारत में विलय करने को तैयार नहीं थे. वह सिक्किम के लिए भूटान (Bhutan) के बराबर आजादी और स्वायत्तता चाहते थे. वह कहते थे कि हमने इसके लिए भारत के साथ संधि की हुई है। वह कहते थे कि मैं सिक्किम का आजाद देश का दर्जा बनाए रखने की कोशिश करता रहूंगा.
चोग्याल की ऐसी कोशिशों के बीच 6 अप्रैल, 1975 की सुबह सिक्किम के चोग्याल को अपने राजमहल के बाहर भारतीय सैनिकों के ट्रकों की आवाज सुनाई दी. उनके राजमहल को चारों तरफ से 5,000 भारतीय सैनिकों ने घेर रखा था। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने ताबड़मोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. राजमहल के गेट पर तैनात बसंत कुमार छेत्री को गोली लगी और वहीं ढेर हो गए।
भारतीय सैनिकों को राजमहल में तैनात 243 गार्डों को काबू में करने में बमुश्किल 30 मिनट लगे. दोपहर 12.45 बजे तक सिक्किम का आजाद देश का दर्जा खत्म हो चुका था. चोग्याल को महल में ही नजरबंद कर दिया गया. उसी दिन दिल्ली के तत्कालीन नगरपालिका आयुक्त बीएस दास के पास विदेश सचिव केवल सिंह का फोन आया कि वह तुरंत आकर मिलें।
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इसके बाद सिक्किम में कराए गए जनमत संग्रह में 97.5 फीसदी लोगों ने भारत के साथ जाने की वकालत की। इसके बाद 23 अप्रैल, 1975 को सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया. उसी दिन इसे 299-11 के मत से पास कर दिया गया. राज्यसभा में यह बिल 26 अप्रैल को पास हुआ. इसके बाद 15 मई, 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने बिल पर हस्ताक्षर कर दिए. इसी के साथ सिक्किम पर नामग्याल राजवंश का शासन समाप्त हो गया।
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