भारत वर्तमान में चीन से आयरन और स्टील 5.82 प्रतिशत, प्लास्टिक और उससे बनी चीजें 2.74 प्रतिशत, फोटोग्राफी उपकरण 2.09 प्रतिशत, बोट्स 2.05 प्रतिशत, आयरन व स्टील से बनी चीजें 1.92 प्रतिशत और रेलवे के अलावा अन्य वाहनों के 1.81 प्रतिशत पुर्जे खरीदता है। भारत विगत वर्षों से सौन्दर्य प्रसाधन, रक्षा उपकरण के सामान से लेकर यात्रा-सुविधा के साधन जैसे रेल, मोटर-गाड़ी आदि के लगभग सभी पाट्र्स चीन से ही आयात करता है, फिर चीन की वस्तुओं के आयात पर बात करना बेकूफी भरी समझ में आती है।
देश का बुनियादी ढांचा कृषि जब अभी चीन के यंत्रों और फटिलाइजर्स से होती है, तब तक चीनी सामान का बहिष्कार किस हद तक जायज कहा जा सकता है। चीन भारत के लिए ही नहीं दुनिया के बड़े ब्रांडस का मैन्युफेक्चरिंग हब बन चुका है। नामीगिरामी कम्पनियों के ज्यादातर उपकरण चीन से ही निर्मित होते हैं। चीनी उत्पादों के दाम सस्ते होने के कारण भारत के बहुत सारे उत्पादक वर्तमान में केवल और केवल ट्रेडर्स बनकर रह गए हैं।
दरअसल दिक्कत यह है कि जितने मूल्य में भारत में उत्पाद बनता है, उससे कम दाम में वह ‘मेक इन चाइना’ के ठप्पे के साथ बाजार में आ जाता है। अगर बात की जाए तो प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था समतुल्य नहीं रहती है। अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता रहता है। अगर नजर डालें तो हमें पता चलेगा, कि 1960 और 70 के दशक में जापान विश्व बाजार पर अपना आधिपत्य स्थापित कर चुका था। इसके बाद 80 का दशक कोरिया का रहा।
उसने दिन दोगुनी, रात चोगुनी उन्नति की और विश्व के लिए बाजार बनकर सामने आया। जिस तरह का उग्र राष्ट्रवाद भारत में चीन से व्यापारिक संबंध तोड़ने की बात कर रहा है, चीन भी अपने हित के लिए कर सकता है। भारत को पहले अपनी उत्पादकता बढ़ानी होगी, जिससे चीन की बराबरी की जा सके। जब तक भारत मूलभूत और देश की व्यवस्था के लिए नितांत आवश्यक चीजों के लिए चीन पर निर्भर रहेगा।
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भारत दीपावली की झालरों, पटाखों के सामान पर प्रतिबंध लगाकर सम्पूर्ण व्यापार बंद नहीं कर सकता है। अगर चीन को पाकिस्तान प्रेम की सजा सुनाना है, वह भी व्यापार बंद करके, तो इसके लिए जरूरी बुनियादी स्तर पर उद्योग-धंधों को विकसित करना होगा। स्वदेशी पर बल देना होगा।
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