हिन्दू धर्म में मुर्दो को जलाया जाता है, फिर बच्चे व नवजात आदि को दफनाया क्यों जाता है?

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हिन्दू धर्म में मुर्दो को जलाया जाता है, फिर बच्चे व नवजात आदि को दफनाया क्यों जाता है?

हर धर्म की अपनी- अपनी परम्पराएं और रीती रिवाज होते है. इन्हीं में से एक रिवाज होता है किसी भी व्यक्ति की मौत हो जाने पर उसके मृत शरीर को नष्ट करने का और यह प्रकिया हर धर्म में अलग-अलग होती है. हिन्दु धर्म में शव को जलाने का रिवाज होता है लेकिन हिन्दु धर्म में कुछ ऐसा भी होता है जहां पर मुर्दों को जलाया जाता है लेकिन नवजात बच्चों को केवल दफनाया जाता है.

आईए जानते है कि क्यों होता है ऐसा क्यों हिन्दु धर्म में बच्चों व नवजातों को दफनाया जाता है और बाकी लोगों को जलाया जाता है. हिंदुओं में आमतौर पर दफनाया नहीं जाता हैं. हिंदू धर्म में आग आध्यात्मिक दुनिया के लिए एक पवित्र प्रवेश द्वार मानी जाती है. शरीर का दाह संस्कार व्यक्ति की मृत्यु के छह घंटे के भीतर होता हैं.

हिन्दू धर्मं में ऐसा भी कहा जाता है कि अंतिम संस्कार क्रिया शरीर से अलगाव का एक रूप कहा गया है. जब शरीर को जला दिया जाता है तो आत्मा के पास कोई लगाव नहीं रहता और इसलिए इसे अग्नि द्वारा मुक्त किया जा सकता है. लेकिन, बच्चों के लिए, जिन्होंने ज्यादा जीवन नहीं जिया है उनकी आत्मा को, अपने शरीर से कोई लगाव नहीं होता है.

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हिंदुओं में आम तौर पर मृत शव का दाह संस्कार करते है, लेकिन संतों, पवित्र पुरुषों और बच्चों के शवों को दफन भी करते हैं. ये क्रिया हिंदू धर्म से संबंधित दो मौलिक सिद्धांतों पर आधारित होती है आत्मा की स्थानांतरगमन और पुनर्जन्म में विश्वास.

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हिंदुओं में ऐसा भी कहा जाता है कि शरीर जलने के बाद नष्ट हो जाता है तो इससे दिवंगत आत्मा पर किसी भी अवशिष्ट शरीर से लगाव मिट जाता है. बच्चे, की आत्मा उनके शरीर से लंबे समय के लिए कोई लगाव विकसित नहीं होता इसलिए उन्हें दफ़न किया जाता है.