विधानसभा सदस्य या विधान परिषद सदस्य में कौन ज्यादा powerful है ? ( Who is more powerful in the assembly member or legislative council member )
जिस तरह से भारत में व्यवस्था को अच्छे से चलाने के लिए लोकसभा और राज्यसभा होती है. ठीक उसी तरह या कहें कि उनका छोटा रूप कुछ राज्यों में विधानसभा और विधान परिषद होती है. जिस तरह लोकसभा होती है वैसे राज्य में विधानसभा होती है तथा जिस तरह राज्यसभा होती है राज्यों में विधान परिषद होती है. हालांकि विधान परिषद सभी राज्यों में नहीं हैं. राज्य में राज्यपाल, विधानसभा और विधानपरिषद मिलकर विधानमंडल बनता है. ठीक वैसे ही जैसे केंद्र में राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा को मिलकर संसद का बनता है. विधानसभा सदस्य या विधान परिषद सदस्य में कौन ज्यादा powerful है इस सवाल का जवाब जानने से पहले हमें विधानसभा और विधान परिषद को अच्छे से समझना होगा.
विधानसभा सदस्य-
लोकतंत्र की विशेषता है कि नेता का चुनाव आम लोगों द्वारा किया जाता है. विधानसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर जनता द्वारा किया जाता है. इनका अपना एक चुनाव क्षेत्र होता है. इनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है. विधानसभा का सदस्या बनने के लिए कम से कम 25 वर्ष की आयु होना जरूरी होता है.
विधान परिषद सदस्य –
विधान परिषद की बात करें, तो इनके सदस्यों का अपना कोई भी चुनाव क्षेत्र नहीं होता है. इनका चुनाव सीधा जनता द्वारा वोट डालकर नहीं किया जाता है. इसका कार्यकाल 6 वर्ष के लिए होता है. यह स्थाई सदन होता है, जो कभी भंग नहीं होता है. प्रत्येक 2 वर्ष के बाद 1/3 सदस्य रिटार्य़ड हो जाते हैं तथा उनकी जगह नए सदस्यों का फिर से चुनाव होता है.
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कौन ज्यादा powerful है ?
शक्तियों की बात करें, तो विधान सभा के सामने विधान परिषद की शक्तियां नामात्र की होती हैं. विधानपरिषद का आधार ही एक तरह से विधानसभा होती हैं, क्योंकि इनके एक तिहाई सदस्यों का चुनाव विधान सभा के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है. मत्रिपरिषद भी विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है ना ही विधानपरिषद के प्रति. विधान सभा धन विधेयक को ना तो अस्वीकार कर सकती है तथा ना ही उसमें कोई संसोधन कर सकती है. विधानपरिषद में पारित विधेयक विधानसभा में पास ना होने पर खुद ही खत्म हो जाता है. विधान सभा द्वारा पारित विधेयक को विधान परिषद रोक नहीं सकती है वह केवल उस पर सुझाव दे सकती है. तीन महिने तक अगर बिल को रोके ऱखती है, तो वह खुद ही पास हुआ माना जाता है. इस आधार पर हम कह सकते हैं कि विधान परिषद की तुलना में विधासभा के सदस्यों के पास बहुत ज्यादा शक्तियां होती हैं.
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