विश्व के पहले गुरू कौन माने जाते हैं ?

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गुरू
गुरू

इंसान की सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ गुरू का बताया गया है. कहा भी जाता है कि गुरू भगवान से भी बड़ा होता है. कहा भी गया है कि गुरू और भगवान दोनों खड़े हो तो सबसे पहले गुरू के चरण स्पर्श करने चाहिए क्योंकि उनके ही मार्गदर्शन की वजह से भगवान के दर्शन करने का आपको सौभाग्य मिला है. इसलिए हर जगह गुरू की महिमा गाई जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का गुरू कौन है.

भगवान शिव

ऐसा माना जाता है कि दुनिया के पहले गुरू भगवान शिव है. देवगुरु बृहस्पति और दैत्य गुरु शुक्राचार्य दोनों के ही गुरु भगवान शिव हैं. शिव के कई स्वरूप हैं और हर स्वरूप अपने आप में पूर्ण है. शिव को प्रथम अघोर भी कहा गया है. अघोर का अर्थ है जो घोर नहीं है, यानी जो किसी में भेदभाव नहीं करता, जो कभी किसी असमान व्यवहार नहीं करता, जिसके लिए सारी समान है, जो सारे अच्छे-बुरे भावों से मुक्त है.

भगवान शिव

भगवान शिव सिखाते हैं कि संसार में इंसान को अघोर होना चाहिए अर्थात जो सारे अच्छे – बुरे भावों से मुक्त होता है. तभी मोक्ष संभव है. घोर या भेदभाव, भला-बुरा, मेरा-तेरा का भाव आते ही वो मोक्ष के मार्ग से भटक जाता है. शिव के हर स्वरूप से कुछ ना कुछ सीख कर हम अपने जीवन में उतार सकते हैं. संसार को ज्ञान की पहली किरण दिखाने वाले भगवान महाकाल ने अपने को दुनिया में रहकर दुनिया से अलग रहना सिखाया है.

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भगवान शिव की पूजा सोमवार को की जाती है. भगवान शिव की पूजा महाशिवरात्रि पर भी की जाती है. भगवान शिव बहुत ही दयालु हैं. कोई भी उनकी पूजा करता है, तो वह उनको इच्छानुसार फल देते हैं. अगर प्राचीन भारत के इतिहास की बात करें, तो हडप्पा सभ्यता से भी पशुपति की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं. जिसको भगवान शिव से जोडकर देखा जाता है.