गुटनिरपेक्ष आंदोलन क्या था ?

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गुट निरपेक्ष आंदोलन
गुट निरपेक्ष आंदोलन

आजादी के बाद भारत के इतिहास में इसका बहुत ही ज्यादा महत्व है. दूसरे विश्वयुद्ध ने दुनिया में दो बड़ी शक्तियों को जन्म दिया. जिसमें एक अमेरिका तथा दूसरा सोवियत रूस था. दुनिया के देश मुख्य तौर पर दो हिस्सों में बंट गए. कुछ ने अमेरिका का साथ दिया कुछ ने सोवियत रूस का. इस काल को शीतयुद्ध के नाम से भी जाता जाता है. इसका मतलब ये था कि कोई युद्ध हथियारों से नहीं लड़ा गया, लेकिन वैचारिक तौर पर ये दोनों शक्तियां एक दूसरे की विरोधी बन गई. जिससे दुनिया 2 गुटों में बंट गई.

गुटनिरपेक्ष आंदोलन

ऐसे समय कुछ नवनिर्मित देशों ने इन दोनों गुटों से दूरी बनाने का निर्णय लिया. उनका मानना था कि वो नवनिर्मित देश हैं. उनकी प्राथमिकता विकास करना है. अपने देश के लोगों के जीवन में सुधार पर ध्यान देना जरूरी है. इस नई विचारधारा के देशों को गुटनिरपेक्ष देशों के तौर पर जाना जाता है. जिन्होंने दोनों शक्तियों में से किसी का भी साथ नहीं देने का निर्णय लिया.

गुटनिरपेक्ष आंदोलन

भारत के लिए यह एक बड़े गर्व की बात थी कि भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में ना सिर्फ बढ़-चढ कर भाग लिया. बल्कि इसके संस्थापक देशों में भारत का सबसे ज्यादा योगदान रहा. भारत इस आंदोलन के शुरू से लेकर वर्तमान तक इसके सिद्धांतों का पालन करता रहा है.

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गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन वर्ष 1961 में बेलग्रेड में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति सुकर्णो, मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर, घाना के राष्ट्रपति क्वामे एन्क्रूमा जैसे नेताओं ने भाग लिया. वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आंदोलन संयुक्त राष्ट्र के बाद विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक समन्वय और परामर्श का मंच है. इस समूह में 120 विकासशील देश शामिल हैं. इसके अतिरिक्त इस समूह में 17 देशों और 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है.