कुंडली में मंगल की शांति के लिए क्या उपाय करना चाहिए?

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मंगल एक पापी एवं क्रूर ग्रह है। इसमें मंगल की दो रूप में व्याख्या की गई है – नेक और बद अर्थात शुभ और अशुभ। शुभ मंगल का देवता साक्षात श्रीराम भक्त हनुमानजी को माना गया है जिसका हर ज्योतिष शास्त्र में उल्लेख है। मंगल अशुभ (बद) के देवता भूत-प्रेत माने गए हैं। किंतु लाल किताब में कार्तिकेय को इस ग्रह का स्वामी माना गया है जो महादेव के पुत्र एवं भगवान श्री गणेश के सहोदर के रूप मे जाने जाते हैं।

नव ग्रहों में मंगल को सेनापति की संज्ञा दी गयी है। शारीरिक तौर पर मंगल से प्रभावित जातक स्वस्थ, और मध्य लंबे कद के होते हैं। कमर पतली छाती चैड़ी, बाल घुंघराले, आंखे लाल होती हैं। उनके चेहरे पर तेज होता है। मंगल मेष एवं वृश्चिक राशि का स्वामी है। मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्रों का स्वामित्व भी मंगल को ही प्राप्त है। मंगल तृतीय एवं षष्ठ भाव का कारक है। मिथुन लग्न और कन्या लग्न की कुंडली में यह विशेष अकारक ग्रह बन जाता है। मंगल मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीच का होता है। लग्न कुंडली में मंगल जिस भाव में स्थिति होता है उस भाव से संबंधित कार्यों को अपनी प्रकृति के अनुसार सुदृढ़ करता है।

शुभ मंगल मंगलकारी और अशुभ मंगल अमंगलकारी कार्य करता है। मंगल शक्ति, साहस, सेनाध्यक्ष, युद्ध, दुर्घटना, क्रोध, षड्यंत्र, बीमारियों, शत्रु, विपक्ष, विवाद, संपŸिा, छोटे भाई नेता, पुलिस, डाक्टर, वैज्ञानिक, मेकैनिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्राॅनिक कार्यों का कारक ग्रह है। मंगल तांबे, खनिज पदार्थों, कच्ची धातु, सोने, मूंगे, हथियार, भूमि आदि का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल शिराओं, धमनियों टूट-फूट, अस्थि-मज्जा के रोग, रक्त स्राव, गर्भपात, मासिक धर्म मंे अनियमितता, सूजाक, गठिया, और जलना आदि रोगों का प्रतीक है। अशुभ मंगल अमंगलकारी हो जाता है जिसके प्रभाव से प्रभावित जातक क्रोधी, आतंकवादी, दुराचारी, षड्यंत्रकारी और विद्रोही होता है। मंगल की क्रूरता के कारण ही वर-वधू की कुंडली में मंगली मिलान आवश्यक होता है। दाम्पत्य जीवन सुखमय हो इसके लिए वर-वधू दोनों की कंुडली में मंगल की स्थिति को देख कर मिलान किया जाता है।

लाल किताब में अशुभ अर्थात बद मंगल को वीरभद्र की संज्ञा दी गई है और माना गया है कि मंगल जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा और वह स्वभाव से जिद्दी एवं उग्र हो सकता है। चतुर्थ भाव से सुख, संपत्ति, भूमि, भवन, वाहन एवं उपभोग में आने वाली भौतिक सामग्री का आकलन किया जाता है। चतुर्थ भाव में मंगल हो अथवा उस पर उसकी दृष्टि पड़े, तो इन फलों में कमी आएगी। सप्तम भाव से जीवनसाथी और रतिसुख की विवेचना की जाती है

यदि मंगल सप्तम में हो या उस पर क्रूर दृष्टि डाल रहा हो, तो पारिवारिक व वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहेगा, विधुर-विधवा योग भी घटित हो सकते हैं।
अष्टम भाव से आयु तथा जीवन में आने वाली बाधाओं का विचार किया जाता है। इस भाव से मंगल दोष बने अथवा इस पर मंगल की दृष्टि पड़े, तो अनेकानेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है और अनिष्ट की संभावनाएं तथा जीवन साथी की मृत्यु की भी आशंकाएं रहती हैं।

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