भारत की पंचायती राज प्रणाली में गाँव या छोटे कस्बे के स्तर पर ग्राम पंचायत या ग्राम सभा होती है जो भारत के स्थानीय स्वशासन का प्रमुख भाग है. सरपंच, ग्राम सभा का चुना हुआ सर्वोच्च प्रतिनिधि होता है. क्षेत्र के पंचायत चुनाव लड़ने के लिए प्रतिनिधि की न्युनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए. इसके साथ ही मतदान के लिए मतदाता की आयु न्यूनतम 18 वर्ष होनी चाहिए. 21 वर्ष से कम उम्र का उम्मीदवार पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकता है. पंचायत चुनाव 5 वर्ष के बाद होते हैं. चुने हुए प्रतिनिधियों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है.
शक्ति के विकेंद्रिकरण को ध्यान में रखकर ग्राम पंचायत की अवधारणा का विकास हुआ. हर गाँव की एक पंचायत होती है. उस गाँव के लोग अपने में से ही पंच और सरपंच का चुनाव करते हैं. जिनका काम गाँव स्तर पर प्रशासन को देखना होता है. गाँव को कई वार्डो में विभाजित किया जाता है. जिसमें से एक-एक पंच का चुनाव होता है. गाँव में ग्राम पंचायत एक कार्यपालन और निर्वाचित संस्था है.
1947 ई. तक ग्रामों में सही पंचायत व्यवस्था का अभाव ही रहा. देश के आजाद होने के बाद पंचायत व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के सक्रिय प्रयास शुरू हुए. उत्तर प्रदेश में सन् 1947 में पंचायत राज अधिनियम बनाया गया.
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भारतीय संविधान के अंतर्गत “राजनीति के निदेशक तत्वों” में राज्य का यह प्रमुख कर्तव्य बतलाया गया कि “वह ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए अग्रसर हो” तथा “उनको ऐसी शक्तियाँ और अधिकार प्रदान करे जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों”. इस निर्देश के अनुसार प्रत्येक राज्य में पंचायत व्यवस्था लागू करने की दिशा में कदम उठाए गए और प्रत्येक ग्राम अथवा ग्रामसमूह में पंचायत की स्थापना की गई.