बाहुबली कौन था उसका इतिहास क्या है ?

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बाहुबली
बाहुबली

बाहुबली के उपर बनी फिल्म आपने जरूर देखी होगी. जिसमें एक सवाल सबसे चर्चा में रहा था कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा था ? लेकिन यदि आप सोचते हैं कि बाहुबली सिर्फ एक फिल्मी पात्र था, तो आपको बता दे कि इतिहास में बाहुबली को जैन धर्म के तीर्थक का पुत्र माना जाता है.

बाहुबली

जैन धर्म के प्रथम तीर्थक ऋषभदेव थे. जिनके पुत्र गोम्मेतेश्वर के नाम से जाने जाते थे. गोम्मेतेश्वर का दूसरा नाम बाहुबली था. बाहुबली की एक 17.5 मीटर या 57 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई गई है. यह प्रतिमा श्रवणबेलगोल ( हासन, जिला कर्नाटका ) में हैं. ऐसा माना जाता है कि स्वतंत्र रूप से खड़ी एक चट्टान की बनी विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा है. यह प्रतिमा ग्रेनाइट के विशाल अखण्ड शिला पर बनी है. इस प्रतिमा का निर्माण गंग वंशी शासक राजमल के मंत्री टामुण्डराय ने करवाया था. इसका निर्माण उसने 983 ईं. में कराया गया.     

बाहुबली

ऋषभदेव को आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है.  जैन पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव हुये. जिनके पुत्र को बाहुबली के नाम से भी जाना जाता था.  ऐसे माना जाता है कि अपने बडे भाई भरत चक्रवर्ती से बाहुबली का युद्ध हुआ था. जिसके बाद वह मुनि बन गए थे. बाहुबली ने कठोर तपस्या की जिसके बाद उनको कैवल ज्ञान की प्राप्ति हुई.

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प्रत्येक 12 वर्षों में बाहुबली की इस प्रतिमा पर दूध , पुष्प व रत्नों द्वारा महामस्तकाभिषेक किया जाता है. यह बहुत बड़े पर्व के तौर पर मानाया जाता है. इसको जैन धर्म का महाकुंभ कहा जाता है. जैन धर्म में बाहुबली का बहुत महत्व है. जैन धर्म में भगवान बाहुबली को पहला मोक्षगामी  माना जाता है. फरवरी, 2018 में इस प्रतिमा का 86 वां महामस्तक अभिषेक किया गया है. इस प्रतिमा की रोचक बात यह है कि इसको 10 किलोमीटर दूर से देखा जा सकता है, लेकिन जिस पहाड़ी के नीचे यह है, वहां से यह दिखाई नही देता.