सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की व्याख्या करते हुए कहा है कि बेटी को पैतृक संपत्ति पर बराबरी के हक से वंचित नहीं किया जा सकता। बेटी चाहे हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 में हुए संशोधन से पहले पैदा हुई हो या बाद में, उसे बेटे के समान ही बराबरी का हक है। यह संशोधन 2005 में हुआ था। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कानून में संशोधन के समय पिता जीवित थे या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के ही दो फैसलों प्रकाश बनाम फूलमती (2016) और दनाम्मा उर्फ सुमन सरपुर बनाम अमन (2018) में विरोधाभास के बाद कानूनी व्यवस्था तय करने के लिए मामला तीन न्यायाधीशों को भेजा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि कानून लागू होने की तारीख नौ सितंबर, 2005 से पहले पैदा हुई बेटी भी संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकती है।
एक ही शर्त होगी कि वह संपत्ति 20 दिसंबर, 2004 से पहले किसी कानूनी बंधपत्र के द्वारा बिक्री, वसीयत या अन्य किसी तरह से समाप्त न कर दी गई हो। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, एस अब्दुल नजीर और एमआर शाह की पीठ ने फैसले में कहा, चूंकि बेटी को जन्म से संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होता है। इसलिए संशोधित कानून लागू होने की तिथि को पिता का जीवित होना जरूरी नहीं है।
फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया है कि संपत्ति के मौखिक बंटवारे की कोरी दलीलें स्वीकार नहीं की जा सकतीं। कानून की धारा 6 (5) के मुताबिक संपत्ति का बंटवारा रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड डीड से होना चाहिए या फिर कोर्ट की डिक्री से। अपवाद के मामले में संपत्ति बंटवारे की दलीलें अन्य सहयोगी दस्तावेजी सुबूतों के आधार पर स्वीकार की जा सकती हैं।
बेटियों को पैतृक संपत्ति पर हक देने के हिंदूउत्तराधिकार संशोधन कानून की व्याख्या करते हुए पूर्व में सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने प्रकाश बनाम फूलमती केस में कहा था कि संशोधित कानून की धारा 6 पूर्व से लागू नहीं होगी। कोर्ट ने कहा था कि यह धारा तभी लागू होगी जबकि कानून संशोधन की तारीख को पिता और बेटी दोनों जीवित हो।
मंगलवार को तीन न्यायाधीशों की पीठ ने विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा के फैसले में प्रकाश बनाम फूलमती के फैसले में दी गई इस व्यवस्था से असहमति जताते हुए कहा कि कानून संशोधन की तारीख पर पिता के जीवित होने की बात से वह सहमत नहीं है। कानून की धारा 6 (1)(ए) में बेटी को संपत्ति पर जन्म से अधिकार दिया गया है। पूर्व के धानम्मा के फैसले में सुप्रीम कोट की दो जजों की पीठ ने कहा था कि कानून में बेटियों को अन्य सहभागियों की तरह ही संपत्ति पर पूर्ण अधिकार दिया गया है। बेटी भी अन्य सहभागियों की तरह संपत्ति का बंटवारा मांग सकती है।