चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल में भारत एकता के सूत्र में बंधा. चंद्रगुप्त मौर्य को भारत का पहला सम्राट भी कहा जाता है. जिसने बहुत बड़े क्षेत्र पर राज किया. इतने बड़े क्षेत्र पर शासन चलाने के लिए प्रशासन व्यवस्था का होना बहुत जरूरी होता है. चंद्रगुप्त मौर्य के काल में प्रशासन व्यवस्था पर बहुत ध्यान दिया गया. नगर में अनुशासन बनाये रखने के लिए तथा अपराधों पर नियन्त्रण रखने हेतु पुलिस व्यवस्था थी , जिसे चंद्रगुप्त मौर्य के काल में रक्षित कहा जाता था. यूनानी स्रोतों से ज्ञात होता है कि नगर प्रशासन में तीन प्रकार के अधिकारी होते थे- एग्रोनोयोई (जिलाधिकारी), एण्टीनोमोई (नगर आयुक्त), सैन्य अधिकार.
चन्द्रगुप्त मौर्य ने शासन संचालन को सुचारु रूप से चलाने के लिए चार प्रान्तों में विभाजित कर दिया था. जिन्हें चक्र कहा जाता था. इन प्रान्तों का शासन सम्राट के प्रतिनिधि द्वारा संचालित होता था. सम्राट अशोक के काल में प्रान्तों की संख्या पाँच हो गई थी.
सैन्य व्यवस्था छः समितियों में विभक्त थी, जो सैन्य विभाग द्वारा निर्दिष्ट थी. प्रत्येक समिति में पाँच सैन्य विशेषज्ञ होते थे. पैदल सेना, अश्व सेना, गज सेना, रथ सेना तथा नौ सेना की व्यवस्था थी. सैनिक प्रबन्ध का सर्वोच्च अधिकारी अन्तपाल कहलाता था. यह सीमान्त क्षेत्रों की भी व्यवस्था देखता था.मेगस्थनीज के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना छः लाख पैदल, पचास हजार अश्वारोही, नौ हजार हाथी तथा आठ सौ रथों से सुसज्जित अजेय सैनिक थे.
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बताया जाता है कि नंद वंश का शासक बहुत ही विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करता था. धनानंद जनता पर बहुत अत्याचार करता था. चंद्रगुप्त ने धनानंद को पराजित करते हुए मगध के राज्य पर अधिकार कर लिया और मौर्य वंश की स्थापना की. इसके साथ ही नंद वंश का भी अंत हो जाता है. अपने कौशल और चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त मौर्य़ ने भारत के पहले सम्राट होने का गौरव हासिल किया.