बच्चों में गर्भ में होने वाली बीमारियों के लक्षण और बचाव क्या हैं ?

241
बच्चों में गर्भ में होने वाली बीमारियों के लक्षण और बचाव क्या हैं ?
बच्चों में गर्भ में होने वाली बीमारियों के लक्षण और बचाव क्या हैं ?

बच्चों में गर्भ में होने वाली बीमारियों के लक्षण और बचाव क्या हैं ? ( What are the symptoms and prevention of diseases in the womb in children? )

वर्तमान समय में हमें कई तरह की स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है. किसी भी बीमारी के बाद लोग आमतौर पर बोल देते हैं कि तुम्हारी इस गलती की वजह से ऐसी बीमारी हो गई है. इसके अलावा काफी बार लोग खुद के स्वास्थ्य का तो पूरा ध्यान रखते हैं. लेकिन उनकी थोड़ी सी लापरवाही की वजह से उनके आने वाले बच्चे के कई तरह की स्वास्थ्य संबंधित समस्याओँ का सामना करना पड़ सकता है. इसी कारण इन बातों से जागरूक लोगों के मन में अपने बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कई तरह के सवाल होते हैं. इसी तरह का एक सवाल जो आमतौर पर पूछा जाता है कि बच्चों में गर्भ में होने वाली बीमारियों के लक्षण और बचाव क्या हैं ? अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है , तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते हैं.

बच्चे की देखभाल

वर्तमान समय में बहुत बड़ी संख्या में जब नवजात बच्चे जन्म लेते हैं, तो जन्म के साथ ही उनमें कुछ बीमारियां पाई जाती है. इन्हीं बीमारियों में दिल से संबंधित बीमारिया भी पाई जाती हैं. जब बच्चों को गर्भ से ही दिल से जुड़ी परेशानियां होने लगती हैं. ऐसे में बच्चे को कॉन्‍जेनिटल हार्ट डिसीज (CHD) बीमारी से पीड़ित माना जाता है. किसी भी बीमारी के पीछे कुछ ना कुछ कारण जरूर होते हैं. अगर इसके होने के कारणों की बात करें, तो डायबिटीज, प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले संक्रमण, एक्सरे रेडिएशन और प्रेग्नेंसी के वक्त गलत दवाओं के इस्तमाल से बच्चों में इस तरह की समस्या देखने को मिल सकती है. इसके अलावा यह बीमारी आनुवांशिक भी हो सकती है या फिर अगर गर्भवती महिला शराब या धुम्रपान करती है उसके कारण भी ऐसा देखने को मिल सकता है.

गर्भ में बच्चे की देखभाल

कॉन्‍जेनिटल हार्ट डिसीज (CHD) के लक्षण –

किसी भी बीमारी को पहचानने में उसके लक्षणों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. अगर इसके लक्षणों की बात करें, तो इसकी वजह से बच्चा ठीक से माँ का दूध नहीं पीता है, बार बार छाती में इन्फेक्शन हो जाता है, जल्दी जल्दी सांस लेता है, त्वचा का रंग पीला या नीला होने लगता है, दिल की धडकन अनियमित हो जाना, वजन नहीं बढ़ता है तथा काफी बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि बच्चे पेट , पैरों या आँखों के पास सूजन भी देखने को मिलता है. इस बीमारी की वजह से बच्चे के दिल में खून के थक्के जमने का खतरा भी रहता है. इसी कारण अगर ये लक्षण दिखाई दे, तो डॅाक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिएं.

यह भी पढ़ें: क्या गैस के कारण पीठ में दर्द हो सकता है और इसका घरेलू उपाय ?

किसी भी बीमारी के होने के बाद उसके इलाज से बेहतर होता है कि उस बीमारी के होने से पहले ही, उसके बचाव के लिए उपाय किए जाएं. कॉन्‍जेनिटल हार्ट डिसीज (CHD) से बचाव के उपाय की बात करें, तो इसके लिए प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले जरूरी है कि रूबेला की वैक्सीन जरूर लगवाएं. धुम्रपान या शराब से बचें. इसके अलावा कोशिश करें कि रेडिएशन की चपेट में ना आएं. प्रेग्नेंसी प्लान करने के 2-3 महीने पहले से फोलिक एसिड युक्त मल्टीविटामिन का सेवन करना शुरू कर दें। इससे बच्चे को न्यूट्रिएंट्स की कमी नहीं होगी. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान कोई भी दवा लेने से पहले डॅाक्टर से सलाह मशवरा जरूर कर लें.

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. News4social इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

Today latest news in hindi के लिए लिए हमे फेसबुक , ट्विटर और इंस्टाग्राम में फॉलो करे | Get all Breaking News in Hindi related to live update of politics News in hindi , sports hindi news , Bollywood Hindi News , technology and education etc.