UP Vidhansabha: जब जेल की सजा पर वेल में लेट गए थे केशव सिंह, टांगकर ले गए मार्शल, 49 साल पहले का वो किस्सा
केशव सिंह ने कांग्रेस के विधायक नरसिंह पांडेय के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के पोस्टर विधानभवन के गलियारों में लगा दिए। केशव को विशेषाधिकार समिति ने तलब किया तो उन्होंने आने से इनकार कर दिया। सदन ने उन्हें अवमानना का दोषी माना और 14 मार्च, 1964 को सदन में पेश होने को कहा। केशव को मार्शल जब गोरखपुर से लेकर आए तो लखनऊ में वह स्टेशन पर ही लेट गए। उन्हें वहां से टांग कर लाना पड़ा। सदन के भीतर भी उन्हें मार्शल उठाकर ही लाए। जब स्पीकर मदन मोहन वर्मा ने केशव से उनका नाम और आरोप पूछा तो उन्होंने एक लफ्ज नहीं बोला। केशव का 11 मार्च 1964 का लिखा पत्र पढ़ा गया, जिसमें उन्होंने सदन पर कई आरोप लगाए थे। केशव ने यह माना चिट्ठी उनकी है। इसके बाद केशव को 7 दिन के कारावास के लिए जिला जेल भेजने के आदेश दिए। मार्शल ने चलने को कहा तो केशव वेल में लेट गए। उन्हें उठाकर ले जाना पड़ा।
हाई कोर्ट के जज कर लिए गए तलब
केशव छह दिन की सजा काट चुके थे कि 19 मार्च को उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका दायर हुई व हाई कोर्ट ने जमानत दे दी। इसे नाराज स्पीकर ने फैसला देने वाले हाई कोर्ट के दोनों जज नसीरुल्ला बेग और जीडी सहगल को गिरफ्तार कर सदन में पेश करने के लिए वॉरंट जारी कर दिया। गिरफ्तारी पर रोक के लिए जजों को खुद हाई कोर्ट जाना पड़ा। 28 जजों की बेंच बैठी और गिरफ्तारी का आदेश रद कर दिया। हंगामा मचने पर विधानसभा ने भी गिरफ्तारी का वारंट वापस ले लिया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया जहां हाईकोर्ट के जजों का सम्मान सुरक्षित रहा और विधानसभा का भी। सुप्रीम कोर्ट ने केशव सिंह की जमानत रद की और 7 दिन की सजा बरकरार रखी।
जब माफी पर पिघल गई विधायिका
– सितंबर, 1951 में ‘ब्लिट्ज’ अखबार में तत्कालीन स्पीकर नफीस उल हसन के खिलाफ एक लेख छपा, जिसमें उन पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी। 7 मार्च, 1952 को विधानसभा ने संपादक होमी दिनशा मिस्त्री को सदन के सामने पेश होने को कहा। संपादक को मुंबई से गिरफ्तार कर लखनऊ लाया गया, लेकिन 24 घंटे के अंदर उन्हें सदन के सामने पेश नहीं किया गया। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिल गई। मिस्त्री ने अपनी गिरफ्तारी व हर्जाने की मांग को लेकर बांबे हाई कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने याचिका खारिज की तो वे अपील में चले गए। करीब 6 साल चले मुकदमे के बाद 3 अप्रैल 1958 को कोर्ट ने मिस्त्री का दावा खारिज करते हुए उन्हें माफीनामा छापने को कहा। 12 अप्रैल 1958 को उन्होंने माफीनामा छापा। इसके आधार पर सदन ने भी उन्हें अवमानना की कार्रवाई से मुक्त कर दिया।
-14 मार्च 1964 को केशव सिंह को जेल की सजा सुनाने के बाद भी स्पीकर ने कहा था कि वह हाथ जोड़कर माफी मांग लें तो उनकी सजा माफ कर दी जाएगी, लेकिन केशव सिंह अड़े रहे।
-2 मार्च 1989 को विधायक हरदेव से अभद्र व्यवहार करने के लिए तराई विकास जनजाति निगम के अधिकारी शंकर दत्त ओझा को सदन में कठघरे में खड़ा होना पड़ा था। ओझा ने सदन से कहा मैं परम श्रद्धेय विधायकों का हृदय से सम्मान करता हूं। मुझको क्षमा किया जाए। मैं आपकी कृपा पर हूं। सदन ने माफी स्वीकार करते हुए बिना सजा के छोड़ दिया।
सदन कोर्ट में कैसे बदल जाता है?
- संविधान का आर्टिकल 105 और 194 सांसदों-विधायकों को अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए कुछ विशेषाधिकार देता है। जब कोई उसमें कोई बाधा डालता है तो सदस्य विशेषाधिकार के हनन का प्रश्न खड़ा करते हैं। अगर उस कृत्य से सदन की कार्यवाही या गरिमा पर प्रभाव पड़ता है तो उसे सदन के अवमान के तौर पर देखा जाता है।
- -विधायक के विशेषाधिकार के सवाल के परीक्षण व उस पर आगे संस्तुति के लिए विधानसभा अध्यक्ष उसे सदन की विशेषाधिकार समिति को भेजता है। आम तौर पर इसके भी अध्यक्ष स्पीकर ही होते हैं।
- -आर्टिकल 194(3) सदन को यह अधिकार देता है कि वह विशेषाधिकार या अवमानना के मामलों में फैसला ले सके। इसके लिए जांच करने, आरोपित को बुलाने व पेश करने का आदेश देने का अधिकार है।
- -सदन की विशेषाधिकार समिति के नियमावली के अनुसार सदन निंदा, चेतावनी, निलंबन, जुर्माना, बर्खास्तगी या कारावास का दंड दे सकता है।
- -सदन कारावास के दंड के साथ ही उस सजा को भोगने की जगह भी तय कर सकता है। मसलन उसे सरकारी जेल भी भेज सकता है या सदन के अपनी किस सेल में निरुद्ध कर सकता है। हालांकि, जेल की अवधि सत्र खत्म होने या सदन के विघटन से अधिक नहीं हो सकती है।
- -सदन को किसी को सीधे सेवा से बर्खास्त करने का भी अधिकार है, हालांकि, लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले आर्टिकल 311 के तहत उन्हें सुनवाई का भी मौका देना होता है।