UP Nikay Chunav: अपनों की बगावत से गाढ़ी हो रहीं राजनीतिक दलों के माथे की लकीरें, चेहरों की है खास अहमियत

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UP Nikay Chunav: अपनों की बगावत से गाढ़ी हो रहीं राजनीतिक दलों के माथे की लकीरें, चेहरों की है खास अहमियत

UP Nikay Chunav: अपनों की बगावत से गाढ़ी हो रहीं राजनीतिक दलों के माथे की लकीरें, चेहरों की है खास अहमियत

लखनऊ:राजनीतिक दलों के लिए अपनों की बगावत ही अब सबसे बड़ा सिरदर्द बन गई है। पार्टियों के परेशान होने की वजह पुराना अनुभव है। जिसमें बागी जब-जब लड़े तो उनमें से ज्यादातर जीतकर आए। अब जबकि पहले दौर का नामांकन सोमवार को खत्म हो गया है तो बागी एक बार फिर ताल ठोक चुके हैं। वहीं, राजनीतिक दल अब मनुहार की स्थिति में हैं कि बागी अपना नाम वापस ले लें।

वाराणसी नगर निगम में भाजपा ने बीते चुनाव में 9 सिटिंग पार्षदों के टिकट काटे थे। सभी बागी हो गए थे और इनमें से छह चुनाव जीतकर वापस नगर निगम सदन भी पहुंचे थे। हालांकि भाजपा ने इससे सबक नहीं लिया और इस बार 17 सिटिंग पार्षदों के टिकट काट दिए हैं। सभी चुनाव मैदान में हैं। अब देखना है कि नाम वापसी तक ये मान जाते हैं या फिर ये आखिरी तक अपनी दावेदारी दमदारी के साथ रखेंगे?

जानकारों की मानें तो शहरी निकायों के चुनाव में, खासकर पार्षद तक की सीटों पर चेहरे की अहमियत सिंबल से ज्यादा होती है। प्रत्याशियों के व्यक्तिगत संपर्क और ताल्लुकात ही उन्हें मिलने वाले वोटों की दिशा तय करते हैं। यही वजह है कि, जिस पार्षद का संपर्क ठीक रहा हो अगर उसका टिकट कट भी जाए तो उसके लिए पार्षद चुना जाना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है।

पुराने आंकड़ों को देखें तो यही वजह रही है कि निर्दलीय पार्षदों की ठीक संख्या शहरी सरकार के सदन में दिखाई देती है। साल 2017 के चुनाव में नगर निगम में 225 पार्षद निर्दल थे। यह भाजपा के बाद सबसे बड़ी संख्या थी। नगर पालिका परिषद में पार्षदों की संख्या 3,379 थी जोकि सबसे बड़ी थी और नगर पंचायतों में 3876 थी जो कि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधित्व से सबसे ज्यादा थी।

गोरखपुर नगर निगम के पिछले चुनाव मेंसमाजवादी पार्टीने चार सिटिंग पार्षदों के टिकट काट दिए थे। चारों ने बागी होकर चुनाव लड़ा था और इनमें से तीन चुनाव जीतकर आए भी थे। हालांकि बाद में सभी ने सपा जॉइन कर ली थी। वहीं, गोरखपुर में ही भाजपा से छह बागियों ने ताल ठोकी थी। बीते साल के एक बागी, जो तब चुनाव नहीं जीत पाए थे, उन्हें इस बार भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि इस बार भी भाजपा के पांच बागी चुनाव मैदान में हैं जबकि सपा के दो बागियों ने पर्चा दाखिल किया है। लखनऊ में भी टिकट मांगने वाले भाजपा के तीन बागियों ने चुनाव में नामांकन किया है।

इस बार अपनाई गई अहम रणनीति
पिछली बार लखनऊ में बगावती तेवर दिखाने वाले भाजपाई पार्षदों की संख्या काफी थी। इनमें से ज्यादातर ने निर्दलीय नामांकन किया था और चुनाव जीते थे। इस बार ऐसी स्थिति न हो इसके लिए काफी प्रयास किए गए थे। कोशिश हुई थी ज्यादातर लोगों को नाम घोषित करने से पहले ही मना लिया जाए ताकि बागियों की संख्या कम रहे।

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