UP News: यूपी का राजकीय पक्षी है Sarus, योगी सरकार चाहकर भी किसी के सुपुर्द नहीं कर सकती h3>
अजीम मिर्जा, बहराइच: इन दिनों सोशल मीडिया पर सारस (Sarus Crane) पक्षी और आरिफ (Arif Sarus) को लेकर काफी वीडियो वायरल हो रहे हैं। कभी सारस को वन विभाग का ले जाना, कभी आरिफ का पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav Sarus) के साथ प्रेस कांफ्रेंस में बैठना और कभी कानपुर चिड़िया घर मे आरिफ और सारस की मुलाकात। आरिफ समर्थकों ने तो #return_saras_to_arif की मुहिम चला रखी है। बीजेपी नेता और पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी ने भी मांग कर डाली कि सारस को आरिफ को सौंप दिया जाए। लेकिन इन सभी को शायद यह नहीं पता कि किसी को भी सारस पालने के लिए नहीं सौंपा जा सकता है।
दरअसल, सारस वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट के तहत प्रोटेक्टेड या संरक्षित पक्षी है और IUCN की रेड लिस्ट में यह एन्डेंजर्ड या संकटापन्न के रूप में सूचीबद्ध है। वैसे तो भारत में 15 से 20 हज़ार तक सारस पाए जाते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में 2017 की गणना के अनुसार इनकी संख्या 16730 है। इस हिसाब से देखा जाए तो सारस उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक पाए जाते है। इनकी आंशिक आबादी बिहार, राजिस्थान, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्यप्रदेश और असम में भी यदा कदा देखने को मिल जाती है।
अखिलेश, आरिफ और सारस
सारस के बारे में कहा जाता है कि यह जीवन भर एक ही साथी के साथ रहता है। अगर किसी एक साथी की मौत हो जाए तो यह दूसरा जोड़ा नहीं बनाता। लेकिन पक्षी विशेषज्ञ फजलुर्रहमान का कहना है कि फिलहाल किसी भी रिसर्च पेपर में यह नहीं लिखा है लेकिन जनमानस में सारस की यही छवि है। इसीलिए सारस को सारस को ‘पेयर ऑफ लाइफ’ या ‘जिंदगी भर का जोड़ा’ कहा जाता है।
सारस को कई समुदाय में काफी शुभ माना जाता है। गोंड जनजाति सारस को बहुत पवित्र मानती है। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, उत्तराखंड और असम जैसे कुछ राज्यों में पाई जाने वाली गोंड जनजाति के लोग सारस को पवित्र मानते हुए ‘पांच देवताओं के उपासक’ के रूप में पूजते हैं।
वन्यजीवन की दृष्टि से अगर सारस को देखा जाए तो यह पक्षी जैवविविधता के लिए काफी अहम है। जिन तालाबों के करीब ये रहते हैं उनमें उन्हें जैवविविधता की श्रेणी में बेहतर समझा जाता है। इसलिए पर्यावरणीय सन्तुलन को बनाए रखने के लिए इनका स्वछन्द घूमना बहुत आवश्यक है।
सारस को आरिफ नहीं पाल सकते, यह नियम रोकता है
जो नियम सारस को पालने से रोकता है वह है भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम। इसे भारत सरकार ने साल 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद जंगली जीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। साल 2003 में इस कानून में संशोधन करके नाम दिया गया भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002, इसमें दंड और जुर्माने को और सख्त कर दिया गया।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 16 (सी) के अनुसार किसी भी जंगली पक्षी या सरीसृप को नुकसान पहुंचाने या उनके घोंसलों को नष्ट करने पर दोषी को 3 से 7 साल की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News
दरअसल, सारस वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट के तहत प्रोटेक्टेड या संरक्षित पक्षी है और IUCN की रेड लिस्ट में यह एन्डेंजर्ड या संकटापन्न के रूप में सूचीबद्ध है। वैसे तो भारत में 15 से 20 हज़ार तक सारस पाए जाते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में 2017 की गणना के अनुसार इनकी संख्या 16730 है। इस हिसाब से देखा जाए तो सारस उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक पाए जाते है। इनकी आंशिक आबादी बिहार, राजिस्थान, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्यप्रदेश और असम में भी यदा कदा देखने को मिल जाती है।
अखिलेश, आरिफ और सारस
सारस के बारे में कहा जाता है कि यह जीवन भर एक ही साथी के साथ रहता है। अगर किसी एक साथी की मौत हो जाए तो यह दूसरा जोड़ा नहीं बनाता। लेकिन पक्षी विशेषज्ञ फजलुर्रहमान का कहना है कि फिलहाल किसी भी रिसर्च पेपर में यह नहीं लिखा है लेकिन जनमानस में सारस की यही छवि है। इसीलिए सारस को सारस को ‘पेयर ऑफ लाइफ’ या ‘जिंदगी भर का जोड़ा’ कहा जाता है।
सारस को कई समुदाय में काफी शुभ माना जाता है। गोंड जनजाति सारस को बहुत पवित्र मानती है। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, उत्तराखंड और असम जैसे कुछ राज्यों में पाई जाने वाली गोंड जनजाति के लोग सारस को पवित्र मानते हुए ‘पांच देवताओं के उपासक’ के रूप में पूजते हैं।
वन्यजीवन की दृष्टि से अगर सारस को देखा जाए तो यह पक्षी जैवविविधता के लिए काफी अहम है। जिन तालाबों के करीब ये रहते हैं उनमें उन्हें जैवविविधता की श्रेणी में बेहतर समझा जाता है। इसलिए पर्यावरणीय सन्तुलन को बनाए रखने के लिए इनका स्वछन्द घूमना बहुत आवश्यक है।
सारस को आरिफ नहीं पाल सकते, यह नियम रोकता है
जो नियम सारस को पालने से रोकता है वह है भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम। इसे भारत सरकार ने साल 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद जंगली जीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। साल 2003 में इस कानून में संशोधन करके नाम दिया गया भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002, इसमें दंड और जुर्माने को और सख्त कर दिया गया।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 16 (सी) के अनुसार किसी भी जंगली पक्षी या सरीसृप को नुकसान पहुंचाने या उनके घोंसलों को नष्ट करने पर दोषी को 3 से 7 साल की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
News