UP Chunav Result: और कोई दिख रहा है क्या?… बोलने वालीं प्रियंका, पर इस्तीफा अजय कुमार लल्लू का, ऐसा क्यों? h3>
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के दौरान कांग्रेस पार्टी जब अपना घोषणा पत्र (Congress Manifesto) जारी कर रही थी, तब कांग्रेस महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) का एक बयान काफी चर्चा में रहा था। दरअसल प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पत्रकारों ने प्रियंका गांधी से पूछा था कि उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस पार्टी का चेहरा कौन है? इसका जवाब प्रियंका गांधी ने सवालिया लहजे में ही दिया था, उन्होंने कहा, “और कोई दिख रहा है क्या?” प्रियंका के इस बयान से साफ जाहिर था कि यूपी में कांग्रेस के चुनाव अभियान की सर्वेसर्वा वही है, वही पूरी पार्टी को लीड कर रही हैं। यहां ये बयान याद करने का विशेष कारण है। कारण ये है कि कांग्रेस यूपी चुनावों में एक बार फिर बुरी तरह हार गई है, इस बार की हार पार्टी के यूपी में अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर रही है। अब यूपी में कांग्रेस के इस खराब प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू (Ajay Kumar Lallu) ने अपना इस्तीफा सौंप दिया है। लेकिन सभी की नजरें प्रियंका गांधी पर हैं, सवाल चर्चा में हैं कि प्रियंका अब क्या करेंगीं?
हालांकि विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने भाषण में कहा था कि यदि पार्टी को लगता है तो हम तीनों (सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा) इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। लेकिन सीडब्ल्यूसी ने सर्वसम्मति से इसे खारिज कर दिया है। अब यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर के प्रदेश अध्यक्षों के इस्तीफे आने लग गए हैं। इनमें पंजाब से नवजोत सिंह सिद्धू, यूपी से अजय कुमार लल्लू, उत्तराखंड से गणेश गोदियाल, गोवा के गिरीश चोडनकर और मणिपुर से नमेईरकपैम लोकेन सिंह का नाम शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दिया है। उन्होंने कहा कि मेरे जैसे सामान्य कार्यकर्ता पर भरोसा जताने के लिए शीर्ष नेतृत्व का आभार। कार्यकर्ता के तौर पर आम आदमी के अधिकारों की लड़ाई लड़ता रहूंगा। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के समस्त पदाधिकारियों ने इस चुनाव में पूरी मेहनत और लगन से पार्टी के लिए काम किया और साथ ही संगठन को ग्राम स्तर तक पहुंचाया। समय-समय पर सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ हमने संघर्ष किया, लेकिन इस चुनाव में हमें अप्रत्याशित रूप से हार का सामना करना पड़ा, इस हार की मैं नैतिक रूप से जिम्मेदारी लेते हुए अपने अध्यक्ष पद के दायित्व से इस्तीफा दे रहा हूं।
बता दें यूपी चुनाव में कांग्रेस पार्टी सिर्फ दो सीटें जीत सकी। अजय कुमार लल्लू खुद कुशीनगर की तमकुहीराज की अपनी सीट हार गए। यहां वह दो चुनावों से जीत रहे थे। इस बार तीसरे नंबर पर रहे। वहीं पार्टी की तरफ से सिर्फ आराधना मिश्रा मोना प्रतापगढ़ की रामपुर खास सीट से और वीरेंद्र चौधरी महराजगंज की फरेंदा सीट से विजयी रहे।
‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ कैंपेन पूरी तरह फ्लॉप
वैसे प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में काफी समय से मेहनत कर रही हैं। लखनऊ में उन्होंने अपना स्थायी ठिकाना भी बना लिया है। चुनाव से पहले ही प्रियंका सोनभद्र का उम्भा कांड से लेकर हाथरस कांड, लखीमपुर हिंसा तक योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा लेती नजर आईं। वह लगातार खबरों में सुर्खियां बनती रहीं। इसके बाद चुनावी रणनीति की बात करें तो प्रियंका गांधी ही यहां सर्वेसर्वा नजर आईं। कांग्रेस का ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ कैंपेन हो या 40 फीसदी महिला प्रत्याशियों को टिकट या फिर कांग्रेस का आधी आबादी पर केंद्रित चुनावी घोषणापत्र सभी में प्रियंका गांधी की ही ‘छाप’ बताई गई। लेकिन नतीजों ने साफ कर दिया कि इनमें से कोई आइडिया नहीं चल सका। पार्टी की दो सीटों में से एक महिला अराधना मिश्रा मोना को जीत जरूर मिली लेकिन अराधना मिश्रा पहले से ही स्थापित नेता हैं और रामपुर खास सीट उनकी परंपरागत मानी जाती है।
पार्टी के लिए कड़वा सच ये है कि उसे पूरे उत्तर प्रदेश से सिर्फ 2.33 फीसदी ही वोट मिले। उसने कुल 399 सीट पर प्रत्याशी उतारे और इनमें से करीब 387 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। ऐसा तब हुआ, जब चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने अकेले कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत के लिए 209 रैलियां और रोड शो किए। ये संख्या बीजेपी के योगी आदित्यनाथ (203) और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव (131) के दौरों से आगे निकल गई। लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
यूपी में कांग्रेस जीतती जो श्रेय किसे दिया जाता?
इस चुनाव ने कहीं न कहीं साफ कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी को यूपी की जनता भुला चुकी है। उसके लिए आगे का रास्ता बेहद दुष्कर हो गया है। बदलाव सिर्फ संगठन में ही नहीं पार्टी को अपनी सोच में भी लाना होगा। उसे ये साेचना होगा कि तमाम लोक लुभावन घाेषणाओं, स्कूटी बांटने जैसे ऑफर के बावजूद उसकी ये हालत क्यों हो गई? सबसे बड़ा सवाल ये क्या सिर्फ अजय कुमार लल्लू की ही इस हार को लेकर नैतिक जिम्मेदारी बनती है। और अगर ऐसा ही है तो क्या अगर चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में होते, वह यूपी में सत्ता तक पहुंच जाती या उसके 100 विधायक भी जीत जाते तो इसका श्रेय किसे दिया जाता? अजय कुमार लल्लू को?
जीत आपकी तो हार किसकी?
याद कीजिए 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को यूपी में बड़ी सफलता मिली थी और उसे 21 सीटें यहां से मिली थीं। उस पूरी जीत का श्रेय राहुल गांधी को ही दिया गया था। लेकिन 21 सांसदों वाली पार्टी जब 2012 के चुनाव मैदान में उतरी तो महज 28 विधानसभा सीटें ही जीत सकी। यही नहीं 2017 में राहुल गांधी ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर यूपी के लड़कों की जोड़ी बनाई और पार्टी 7 सीटों पर आ गिरी। लेकिन क्या राहुल गांधी का नाम कहीं आया?
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हालांकि विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने भाषण में कहा था कि यदि पार्टी को लगता है तो हम तीनों (सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा) इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। लेकिन सीडब्ल्यूसी ने सर्वसम्मति से इसे खारिज कर दिया है। अब यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर के प्रदेश अध्यक्षों के इस्तीफे आने लग गए हैं। इनमें पंजाब से नवजोत सिंह सिद्धू, यूपी से अजय कुमार लल्लू, उत्तराखंड से गणेश गोदियाल, गोवा के गिरीश चोडनकर और मणिपुर से नमेईरकपैम लोकेन सिंह का नाम शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दिया है। उन्होंने कहा कि मेरे जैसे सामान्य कार्यकर्ता पर भरोसा जताने के लिए शीर्ष नेतृत्व का आभार। कार्यकर्ता के तौर पर आम आदमी के अधिकारों की लड़ाई लड़ता रहूंगा। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के समस्त पदाधिकारियों ने इस चुनाव में पूरी मेहनत और लगन से पार्टी के लिए काम किया और साथ ही संगठन को ग्राम स्तर तक पहुंचाया। समय-समय पर सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ हमने संघर्ष किया, लेकिन इस चुनाव में हमें अप्रत्याशित रूप से हार का सामना करना पड़ा, इस हार की मैं नैतिक रूप से जिम्मेदारी लेते हुए अपने अध्यक्ष पद के दायित्व से इस्तीफा दे रहा हूं।
बता दें यूपी चुनाव में कांग्रेस पार्टी सिर्फ दो सीटें जीत सकी। अजय कुमार लल्लू खुद कुशीनगर की तमकुहीराज की अपनी सीट हार गए। यहां वह दो चुनावों से जीत रहे थे। इस बार तीसरे नंबर पर रहे। वहीं पार्टी की तरफ से सिर्फ आराधना मिश्रा मोना प्रतापगढ़ की रामपुर खास सीट से और वीरेंद्र चौधरी महराजगंज की फरेंदा सीट से विजयी रहे।
‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ कैंपेन पूरी तरह फ्लॉप
वैसे प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में काफी समय से मेहनत कर रही हैं। लखनऊ में उन्होंने अपना स्थायी ठिकाना भी बना लिया है। चुनाव से पहले ही प्रियंका सोनभद्र का उम्भा कांड से लेकर हाथरस कांड, लखीमपुर हिंसा तक योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा लेती नजर आईं। वह लगातार खबरों में सुर्खियां बनती रहीं। इसके बाद चुनावी रणनीति की बात करें तो प्रियंका गांधी ही यहां सर्वेसर्वा नजर आईं। कांग्रेस का ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ कैंपेन हो या 40 फीसदी महिला प्रत्याशियों को टिकट या फिर कांग्रेस का आधी आबादी पर केंद्रित चुनावी घोषणापत्र सभी में प्रियंका गांधी की ही ‘छाप’ बताई गई। लेकिन नतीजों ने साफ कर दिया कि इनमें से कोई आइडिया नहीं चल सका। पार्टी की दो सीटों में से एक महिला अराधना मिश्रा मोना को जीत जरूर मिली लेकिन अराधना मिश्रा पहले से ही स्थापित नेता हैं और रामपुर खास सीट उनकी परंपरागत मानी जाती है।
पार्टी के लिए कड़वा सच ये है कि उसे पूरे उत्तर प्रदेश से सिर्फ 2.33 फीसदी ही वोट मिले। उसने कुल 399 सीट पर प्रत्याशी उतारे और इनमें से करीब 387 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। ऐसा तब हुआ, जब चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने अकेले कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत के लिए 209 रैलियां और रोड शो किए। ये संख्या बीजेपी के योगी आदित्यनाथ (203) और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव (131) के दौरों से आगे निकल गई। लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
यूपी में कांग्रेस जीतती जो श्रेय किसे दिया जाता?
इस चुनाव ने कहीं न कहीं साफ कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी को यूपी की जनता भुला चुकी है। उसके लिए आगे का रास्ता बेहद दुष्कर हो गया है। बदलाव सिर्फ संगठन में ही नहीं पार्टी को अपनी सोच में भी लाना होगा। उसे ये साेचना होगा कि तमाम लोक लुभावन घाेषणाओं, स्कूटी बांटने जैसे ऑफर के बावजूद उसकी ये हालत क्यों हो गई? सबसे बड़ा सवाल ये क्या सिर्फ अजय कुमार लल्लू की ही इस हार को लेकर नैतिक जिम्मेदारी बनती है। और अगर ऐसा ही है तो क्या अगर चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में होते, वह यूपी में सत्ता तक पहुंच जाती या उसके 100 विधायक भी जीत जाते तो इसका श्रेय किसे दिया जाता? अजय कुमार लल्लू को?
जीत आपकी तो हार किसकी?
याद कीजिए 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को यूपी में बड़ी सफलता मिली थी और उसे 21 सीटें यहां से मिली थीं। उस पूरी जीत का श्रेय राहुल गांधी को ही दिया गया था। लेकिन 21 सांसदों वाली पार्टी जब 2012 के चुनाव मैदान में उतरी तो महज 28 विधानसभा सीटें ही जीत सकी। यही नहीं 2017 में राहुल गांधी ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर यूपी के लड़कों की जोड़ी बनाई और पार्टी 7 सीटों पर आ गिरी। लेकिन क्या राहुल गांधी का नाम कहीं आया?
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