UP Chunav 2022 : पिछड़ा वर्ग के विधायक तो निकल रहे, पर वोटर ना खिसकें… इस प्लान से डैमेज कंट्रोल कर पाएगी बीजेपी?

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UP Chunav 2022 : पिछड़ा वर्ग के विधायक तो निकल रहे, पर वोटर ना खिसकें… इस प्लान से डैमेज कंट्रोल कर पाएगी बीजेपी?


UP Chunav 2022 : पिछड़ा वर्ग के विधायक तो निकल रहे, पर वोटर ना खिसकें… इस प्लान से डैमेज कंट्रोल कर पाएगी बीजेपी?

हाइलाइट्स

  • स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद कई विधायक छोड़ रहे बीजेपी
  • सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिल रहे कई नेता, सियासी हलचल बढ़ी
  • बीजेपी को टेंशन, जाने वाले नेता कह रहे पिछड़ों और दलितों की उपेक्षा की बात

लखनऊ/नई दिल्ली
चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में बीजेपी को झटके लग रहे हैं। एक के बाद एक मंत्रियों के इस्तीफे हुए हैं। बीजेपी नेता भी मान रहे हैं कि यह पार्टी के व्यापक सामाजिक गठजोड़ को नुकसान पहुंचाने की कोशिश है। पहले श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और दूसरे दिन पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चौहान ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे की वजह जो बताई जा रही है, उससे बीजेपी को नुकसान की गंभीरता का अंदाजा हो रहा है। यही वजह है कि लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बीजेपी के दिग्गज ऐक्टिव हो गए हैं और बैठकों का दौर शुरू हो गया है जिससे नुकसान को न्यूनतम किया जा सके और जो जा रहे हैं या जाने वाले हैं उन्हें रोका जा सके।

भाजपा में पिछड़े और दलितों की उपेक्षा?
दरअसल, दोनों ही मंत्रियों ने आरोप लगाए हैं कि बीजेपी में पिछड़े और दलितों को नजरअंदाज किया जा रहा है। फिलहाल बीजेपी नेतृत्व किसी पैनिक में नहीं है। संभावना जताई जा रही है कि एक और मंत्री धरम सिंह सैनी और कम से कम 5-6 विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं और सबके आरोप वही हैं कि भाजपा में पिछड़ों, दलितों की घोर उपेक्षा की जा रही है। स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह बसपा से आए थे और 2017 का चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे।

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शाह का वो प्लान कामयाब रहा लेकिन…
बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि इस्तीफों में ओबीसी/एमबीसी की उपेक्षा करने के एक जैसे आरोप लगाए गए हैं। यह एक गंभीर प्रयास है जिससे बीजेपी के एमबीसी (Most Backward Class), गैर-यादव ओबीसी, गैर-जाटव दलित और अपर कास्ट के ‘विशाल सामाजिक गठजोड़’ को तोड़ा जा सके, जिसे तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने एक साथ लाकर शानदार जीत दिलाई थी।

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अखिलेश की तरफ से चुनौती बढ़ेगी!
गैर-यादव ओबीसी और एमबीसी के महत्वपूर्ण वर्ग का जाना स्पष्ट रूप से सपा नेता और पूर्व सीएम अखिलेश यादव की चुनौती को मजबूत करेगा। साफतौर पर सपा UP चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने वाली प्रमुख पार्टी के रूप में उभरी है, उसने यादव-मुस्लिम समीकरण वाले परसेप्शन से खुद को बाहर निकालकर खड़ा करने की कोशिश की है। योगी सरकार में पिछड़ों की कथित उपेक्षा के आरोपों के जरिए हिंदुत्व सेंटिमेंट को काउंटर करने की कोशिश समझी जा रही है, जिससे ‘फॉरवर्ड और बैकवर्ड’ को बांटकर फिर से जाति पर फोकस किया जा सके।

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बीजेपी सूत्रों का कहना है कि ये इस्तीफे ऐसे समय हुए हैं जब पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति सीटें तय करने में जुटी हुई है। इसके बाद पार्टी नेतृत्व ने रणनीतियों में बदलाव भी किए हैं।

एक सूत्र ने कहा, ‘वे सभी निजी कारणों से पार्टी छोड़ रहे हैं। 300 से ज्यादा सीटें हैं… ऐसे में एसपी की तुलना में ज्यादा लोग छोड़ सकते हैं क्योंकि कुछ को डर होगा कि उन्हें टिकट नहीं मिलेगा। लेकिन इस्तीफों के जोखिम को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समुदाय की सामूहिक नाराजगी के तौर पर देखा जा रहा है।’

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बीजेपी का प्लान
सूत्रों ने इस बात पर खेद जताया कि पार्टी ने सपा को मौका दिया जबकि कुछ लोगों के छोड़ने की संभावना पहले से थी और ऐसे में पहले ही कदम उठाए जा सकते थे। हालांकि वे इस पैंतरेबाजी को फेल करने को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं। पार्टी पहले ही ऐसे कदम उठाने पर काम कर रही है जिसमें गैर यादव ओबीसी और एमबीसी को ज्यादा टिकट दिए जा सकते हैं। इसके अलावा इन समुदायों के बड़े नेताओं को भी शामिल कराया जा सकता है जिससे हिंदुत्व के एजेंडे को मजबूत किया जा सके। इस बीच, संकेत भी मिल रहे हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या से चुनाव लड़ सकते हैं।

मोदी की लोकप्रियता भी बड़ा फैक्टर
पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि 2014 से पहले की स्थिति अलग थी, आज बीजेपी का सभी जातियों में एक मजबूत आधार है और वे कल्याणकारी योजनाओं की सुविधाओं के कारण पार्टी से नहीं टूटेंगे। प्रदेश में कानून-व्यवस्था भी मजबूत हुई है, हिंदुत्व की अपील के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी लोकप्रियता भी काफी मायने रखती है।

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मौर्य जी और दारा सिंह का जिक्र करते हुए लखनऊ में एक सूत्र ने कहा कि यह भी याद रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री खुद ‘बैकवर्ड’ क्लास से आते हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी ने पिछले 7 वर्षों में युवा नेताओं को तैयार किया है जो अब ‘जाने वालों’ की जगह ले सकते हैं।

बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे मौर्य
एक सूत्र ने कहा, ‘मौर्य अपने बेटे के टिकट के लिए जोर डाल रहे थे, जो 2017 में चुनाव हार गए थे। पार्टी उनके खिलाफ एक युवा कुशवाहा को उतार सकती है।’ सूत्रों का कहना है कि एसपी से इतर, बीजेपी को ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की जरूरत नहीं है और इसलिए हम ज्यादा गैर-यादव ओबीसी और एमबीसी को अपनी लिस्ट में शामिल कर सकते हैं।

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टिकटों पर बीजेपी ने बदली रणनीति
इधर, यूपी चुनाव के प्रत्याशियों को लेकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का दिल्ली में तीन दिन से मंथन चल रहा है। बुधवार को देर रात 1 बजे तक बैठक चली। सूत्रों की मानें तो अब तक यूपी में होने वाले चुनावों में तीन चरणों के प्रत्याशियों की लिस्ट बीजेपी ने फाइनल कर ली है। स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद जारी सियासी उठापटक के बीच उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति बदल ली है।

सूत्रों की मानें तो अमित शाह सिटिंग विधायकों का अंधाधुंध टिकट काटने के फैसले के खिलाफ हैं। माना जा रहा है कि अब मौजूदा विधायकों के टिकट पहले की तुलना में कम कटेंगे और कुछ विधायकों की सीट बदलकर उन्हें दूसरी सीट से चुनाव लड़ाया जाएगा। बीजेपी के इस फैसले से उन विधायकों को राहत मिलेगी, जिनका पत्ता कटने वाला था। इससे पहले खबर थी कि यूपी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के करीब 100 मौजूदा विधायकों का पत्ता कट सकता है। हो सकता है कि इससे विधायकों का टूटना भी बंद हो।

bjp

फाइल फोटो



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