UP के निकाय चुनावों पर देश की नजरें क्यों टिकी हैं? आखिर राष्ट्रीय राजनीति के लिए क्यों हो गए हैं इतना अहम? h3>
लखनऊ:शायद ऐसा पहली बार होगा कि जब किसी राज्य के निकाय चुनावों के प्रति राष्ट्रीय राजनीति के नजरिए से उत्सुकता देखी जा रही है। राजनीतिक गलियारों में 13 मई का बेसब्री से इंतजार हो रहा है क्योंकि इस दिन यूपी के निकाय चुनाव के नतीजे आने हैं। ये नतीजे ऐसे वक्त आएंगे, जब 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा होगा।यूपी के निकाय चुनावों का दायरा बहुत बड़ा है। 17 नगर निगम, 198 नगर पालिका और 493 नगर पंचायत हैं जो राज्य के शहरी क्षेत्रों में आते हैं और करीब साढ़े चार करोड़ लोग इन चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। जिस तरह पूरी हांडी का एक चावल ही पूरी हांडी का हाल बयां करने के लिए काफी माना जाता है, उसी तरह से यूपी के निकाय चुनाव को पूरे राज्य के मूड जानने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है।
ये चुनाव भी ऐसे मौके पर हो रहे हैं, जब राज्य में रामचरित मानस से लेकर असद एनकाउंटर और बाद अतीक की हत्या का मुद्दा जेर-ए-बहस है। उधर जांच एजेंसियों को मुद्दा बनाते हुए बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की गोलबंदी शुरू हुई है और उसी दरम्यान निकाय चुनाव के जरिए यूपी का जनादेश सबके सामने होगा।
यूपी पर नजर की वजह
यूपी की राजनीतिक नब्ज की थाह लेने को अगर हर कोई बेकरार है तो उसकी वजह सिर्फ यह भर नहीं है कि यहां से लोकसभा की 80 सीट आती हैं बल्कि यह भी है कि 2014 और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने बड़ी जीत का जो रेकॉर्ड स्थापित किया, उसमें यूपी का सबसे बड़ा योगदान रहा है। 2014 के चुनाव में 80 सीटों में से बीजेपी+ के हिस्से 73 सीट गईं थीं और 2019 के चुनाव में 64 सीट जीतने में वह कामयाब रही थी। यानी बीजेपी अगर 2024 के चुनाव में रेकॉर्ड जीत की हैट्रिक बनाने को बेकरार है तो उसे यूपी में अपना पुराना प्रदर्शन बरकरार रखना होगा। क्या वह ऐसा कर पाएगी, निकाय चुनाव से इसका जवाब मिलना है।
योगी के कद पर नजर
दूसरे पिछले छह साल के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीजेपी शासित दूसरे राज्यों के लिए ‘रोल मॉडल’ बन गए हैं। ‘रोल मॉडल’ की ही बात नहीं, उनकी गिनती अब नरेंद्र मोदी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में होने लगी है। एक बड़े वर्ग में उन्हें देर सबेर केंद्र की राजनीति में नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा है। राष्ट्रीय राजनीति योगी के बढ़ते वर्चस्व के मद्देनजर भी यूपी के निकाय चुनाव के नतीजों पर सबकी टकटकी लगी हुई है। योगी के नेतृत्व में निकाय चुनाव में भी बीजेपी ने अगर धमाकेदार प्रदर्शन कर दिया तो ‘ब्रैंड योगी’ और मजबूत होगा।
निकाय चुनाव के नतीजों से इस बात का भी आंकलन होना है कि देश के सबसे बड़े राज्य में विपक्ष कितनी दमदारी के साथ बीजेपी के खिलाफ मुकाबिल है और हाल के दिनों में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने कई मुद्दों को धार दी भी है। खास तौर पर रामचरित मानस के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा वर्ग को गोलबंद करना चाहा है। वही पिछड़ा वर्ग जोकि इन दिनों पूरे देश में बीजेपी की ताकत बना हुआ है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी खुलकर यह आरोप लगा रही है कि योगी सरकार में एक जाति विशेष के लोगों को छोड़कर अन्य जाति के लोगों की उपेक्षा हो रही है।
अगर निकाय चुनाव में विपक्ष यहां पर दमदार प्रदर्शन करने में सफल रहा तो इससे विपक्ष को राष्ट्रीय राजनीति में नई ऊर्जा मिलेगी लेकिन अगर बीजेपी के मुकाबले विपक्ष का दम नहीं दिखा तो यह पूरे देश के लिए विपक्ष को एक बड़ा झटका होगा। इसी वजह से राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को गोलबंद करने वाले जो चेहरे हैं, उन्हें भी 13 मई का बेसब्री से इंतजार है ताकि वे भी यूपी के मूड से वाकिफ हो सकें।
बीजेपी के मुकाबले कौन
निकाय चुनाव के जरिए इस बात का भी फैसला हो जाएगा कि देश के सबसे बड़े राज्य की सियासत में बीजेपी के मुकाबले कौन है? राज्य में विपक्ष के नाम पर समाजवादी पार्टी गठबंधन है या बहुजन समाज पार्टी राज्य की सियासी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाए हुए है। 2012 से राज्य में बीएसपी राज्य की सियासत में लगातार हाशिए पर ही सिमटती जा रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में वह 10 लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन 2014 में जब वह अकेले चुनाव लड़ी थी तो एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।
2022 के विधानसभा चुनाव में भी उसे 403 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। अगर निकाय चुनाव में भी वह अपनी प्रासंगिकता साबित नहीं कर पाई तो राष्ट्रीय राजनीति में भी उसकी पूछ न के बराबर ही हो जाएगी और यूपी की सियासत में भी उसके लिए बहुत कुछ नहीं बचेगा। यह सब ऐसे वक्त होगा जब बीएसपी चीफ मायावती धीरे-धीरे अपने भतीजे आकाश को आगे बढ़ाना शुरू कर चुकी हैं।
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ये चुनाव भी ऐसे मौके पर हो रहे हैं, जब राज्य में रामचरित मानस से लेकर असद एनकाउंटर और बाद अतीक की हत्या का मुद्दा जेर-ए-बहस है। उधर जांच एजेंसियों को मुद्दा बनाते हुए बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की गोलबंदी शुरू हुई है और उसी दरम्यान निकाय चुनाव के जरिए यूपी का जनादेश सबके सामने होगा।
यूपी पर नजर की वजह
यूपी की राजनीतिक नब्ज की थाह लेने को अगर हर कोई बेकरार है तो उसकी वजह सिर्फ यह भर नहीं है कि यहां से लोकसभा की 80 सीट आती हैं बल्कि यह भी है कि 2014 और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने बड़ी जीत का जो रेकॉर्ड स्थापित किया, उसमें यूपी का सबसे बड़ा योगदान रहा है। 2014 के चुनाव में 80 सीटों में से बीजेपी+ के हिस्से 73 सीट गईं थीं और 2019 के चुनाव में 64 सीट जीतने में वह कामयाब रही थी। यानी बीजेपी अगर 2024 के चुनाव में रेकॉर्ड जीत की हैट्रिक बनाने को बेकरार है तो उसे यूपी में अपना पुराना प्रदर्शन बरकरार रखना होगा। क्या वह ऐसा कर पाएगी, निकाय चुनाव से इसका जवाब मिलना है।
योगी के कद पर नजर
दूसरे पिछले छह साल के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीजेपी शासित दूसरे राज्यों के लिए ‘रोल मॉडल’ बन गए हैं। ‘रोल मॉडल’ की ही बात नहीं, उनकी गिनती अब नरेंद्र मोदी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में होने लगी है। एक बड़े वर्ग में उन्हें देर सबेर केंद्र की राजनीति में नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा है। राष्ट्रीय राजनीति योगी के बढ़ते वर्चस्व के मद्देनजर भी यूपी के निकाय चुनाव के नतीजों पर सबकी टकटकी लगी हुई है। योगी के नेतृत्व में निकाय चुनाव में भी बीजेपी ने अगर धमाकेदार प्रदर्शन कर दिया तो ‘ब्रैंड योगी’ और मजबूत होगा।
निकाय चुनाव के नतीजों से इस बात का भी आंकलन होना है कि देश के सबसे बड़े राज्य में विपक्ष कितनी दमदारी के साथ बीजेपी के खिलाफ मुकाबिल है और हाल के दिनों में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने कई मुद्दों को धार दी भी है। खास तौर पर रामचरित मानस के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा वर्ग को गोलबंद करना चाहा है। वही पिछड़ा वर्ग जोकि इन दिनों पूरे देश में बीजेपी की ताकत बना हुआ है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी खुलकर यह आरोप लगा रही है कि योगी सरकार में एक जाति विशेष के लोगों को छोड़कर अन्य जाति के लोगों की उपेक्षा हो रही है।
अगर निकाय चुनाव में विपक्ष यहां पर दमदार प्रदर्शन करने में सफल रहा तो इससे विपक्ष को राष्ट्रीय राजनीति में नई ऊर्जा मिलेगी लेकिन अगर बीजेपी के मुकाबले विपक्ष का दम नहीं दिखा तो यह पूरे देश के लिए विपक्ष को एक बड़ा झटका होगा। इसी वजह से राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को गोलबंद करने वाले जो चेहरे हैं, उन्हें भी 13 मई का बेसब्री से इंतजार है ताकि वे भी यूपी के मूड से वाकिफ हो सकें।
बीजेपी के मुकाबले कौन
निकाय चुनाव के जरिए इस बात का भी फैसला हो जाएगा कि देश के सबसे बड़े राज्य की सियासत में बीजेपी के मुकाबले कौन है? राज्य में विपक्ष के नाम पर समाजवादी पार्टी गठबंधन है या बहुजन समाज पार्टी राज्य की सियासी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाए हुए है। 2012 से राज्य में बीएसपी राज्य की सियासत में लगातार हाशिए पर ही सिमटती जा रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में वह 10 लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन 2014 में जब वह अकेले चुनाव लड़ी थी तो एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।
2022 के विधानसभा चुनाव में भी उसे 403 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। अगर निकाय चुनाव में भी वह अपनी प्रासंगिकता साबित नहीं कर पाई तो राष्ट्रीय राजनीति में भी उसकी पूछ न के बराबर ही हो जाएगी और यूपी की सियासत में भी उसके लिए बहुत कुछ नहीं बचेगा। यह सब ऐसे वक्त होगा जब बीएसपी चीफ मायावती धीरे-धीरे अपने भतीजे आकाश को आगे बढ़ाना शुरू कर चुकी हैं।
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