Ukraine Russia Crisis: यूक्रेन-रूस टकराव क्या विश्व युद्ध की शुरुआत है? भारत के लिए भी चुनौती कम नहीं है, समझिए h3>
नई दिल्ली: पूरी दुनिया की नजरें इस समय यूक्रेन-रूस (Ukraine Russia News) के बीच बढ़े तनाव पर हैं। क्या लड़ाई शुरू हो जाएगी? क्या पूर्वी यूक्रेन के डोनेट्स्क (डीपीआर) और लुगांस्क क्षेत्रों में रूस के सैनिकों को भेजने का फैसला अगले विश्व युद्ध (World War 3 News) की शुरुआत है? या, यूक्रेन के NATO में शामिल होने के फैसले से गुस्साए व्लादिमीर पुतिन यूरोप और नाटो के साथ सुरक्षा समझौते को लेकर अमेरिका को संदेश देना चाहते हैं। दरअसल, रूस ने पिछले साल के आखिर में नाटो को एक मसौदा समझौता भेजा था और पश्चिमी देशों के लिए यूरोप में सुरक्षा गारंटी पर अमेरिका को संधि पर विचार करने को कहा था। तो क्या रूस एक रणनीति के तहत अपनी शर्तों पर यह कराना चाहता है?
रूस के टॉप सुरक्षा अधिकारियों के साथ लाइव मीटिंग में पुतिन को संबोधित करते हुए दुनिया ने देखा। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंध सीमित हो सकते हैं क्योंकि रूसी सैनिक ऐसे क्षेत्र में हैं जो फिलहाल मॉस्को के नियंत्रण में है। रूस पहले से ही काफी अलर्ट है और अमेरिका इस इंतजार में है कि रूस आगे कोई बड़ा उकसाने वाला कदम उठाए। वास्तव में, इस समय कोई भी अगला कदम उठाना नहीं चाहता। ऐसे में दुनिया के देशों की नजरें इस हफ्ते अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन और रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के बीच होने वाली मुलाकात पर थीं लेकिन वह रद्द हो गई है।
रूस की कार्रवाई दिखाती है कि वह मौजूदा संकट के समाधान के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाने को लेकर गंभीर नहीं है। इसलिए मैंने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ बृहस्पतिवार को होने वाली बैठक रद्द कर दी है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र की स्वतंत्रता को मान्यता देने का निर्णय अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन
रूस पर प्रतिबंध लगेंगे!
अगर तनाव बढ़ता है तो भारत समेत पूरी दुनिया प्रभावित हो सकती है। कुछ संभावनाएं ज्यादा चिंता पैदा करती हैं। रूस गिरावट की ओर जा रही अपनी अर्थव्यवस्था और पावर को जोखिम में डाल रहा है क्योंकि उस पर प्रतिबंध लग सकते हैं। इसके बाद उसके लिए अपमानजनक हालत बन जाएंगे। रिपोर्ट बता रही हैं कि यूक्रेन के लोग पहले से कहीं ज्यादा एकजुट हैं और वे रूस को खदेड़ना चाहते हैं।
काला सागर के इलाके पर क्या-क्या कर सकते हैं पुतिन?
लेकिन रूस बिना आक्रमण किए ही बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकता है। इसका असर न सिर्फ यूक्रेन बल्कि पूर्वी और मध्य यूरोप में हो सकता है। अगर काला सागर क्षेत्र में तनाव बढ़ता है तो सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती हैं। रूस ने 2015 में यूक्रेन के पावर ग्रिड को निशाना बनाया था और पिछले हफ्ते भी बड़े पैमाने पर साइबर अटैक हुए। ये हमले दूसरे देशों में भी हो सकते हैं। मॉस्को सबमरीन इंटरनेट केबल्स काट सकता है जिससे दुनियाभर में कम्युनिकेशन उसके घुटनों पर आ जाएगा। इतना ही नहीं, यूक्रेन-रूस से गेंहू और दूसरे अनाज के निर्यात में भी सुस्ती देखी जा सकती है।
चीन को संदेशदे रहा अमेरिका
उधर, अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी तकलीफदेह विदाई को भूल रूसी आक्रमण पर तेवर दिखा रहा है। इसके जरिए उसकी मंशा चीन को संदेश देने की भी है। दरअसल, अमेरिका यूक्रेन के उदाहरण के जरिए चीन को चेतावनी देना चाहता है कि वह ताइवान में अपनी हरकतों से बाज आए। इसके साथ ही अमेरिका यूरोप का प्रमुख सुरक्षा गारंटर भी बने रहना चाहता है।
क्या-क्या कर सकता है अमेरिका
अपनी आर्थिक ताकत और डॉलर के स्टेटस की बदौलत अमेरिका रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा सकता है जिसमें एक बड़ा कदम रूस को ग्लोबल स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से बाहर करने का भी है। इसके साथ ही उसका CAATSA प्रतिबंध भी गैर नाटो देशों के लिए मुसीबत पैदा कर सकता है। लेकिन अगर तनाव बढ़ता है तो राजनीतिक रूप से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को बहुत कुछ गंवाना भी पड़ेगा। प्रतिबंध लगने से तेल की कीमतें बढ़ेंगी और पहले से ही महंगाई झेल रहे अमेरिका में हालात और खराब हो सकते हैं।
अमेरिका और पश्चिमी प्रतिबंधों के दुनियाभर में कई अनचाहे नतीजे भी देखने को मिल सकते हैं। फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, पोलैंड सभी के अपने हित हैं। तनाव बढ़ने पर यूरोप तेल कीमतों को गंवा सकता है जो 100 डॉलर प्रति बैरल पहुंच रहा है और अगर नॉर्ड स्ट्रीम का कनेक्शन टूटता है या रूस अपनी गैस सप्लाई को बंद कर देता है तो ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है।
अब भारत की बात और पाकिस्तान ऐंगल भी समझिए
भारत की बात करें तो उसके लिए अलग स्थिति पैदा हो गई है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोमवार को दिए बयान में भारत ने ‘क्षेत्रीय अखंडता’ शब्द का जिक्र नहीं किया जो कि एक तय लाइन है और पीओके से होते हुए चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट की बात जब भी होती है तो यह बार-बार कहा जाता है। भारत और रूस के कुछ लोगों का कहना है कि पुतिन अपने पड़ोस में ‘एक और पाकिस्तान’ नहीं बनने देना चाहते। लेकिन रूस वही कर रहा है जैसा पाकिस्तान अफगानिस्तान में करता आया है। तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो भारत भी प्रभावित होगा। अगर पूरी तरह से प्रतिबंध लगते हैं तो भारत के लिए मुश्किल स्थिति बन सकती है। रूस से जुड़े भारत के ऊर्जा हित प्रभावित हो सकते हैं और नई दिल्ली के लिए अमेरिका की काट्सा छूट हासिल कर पाना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा।
Russia Ukraine Conflict: रूस-यूक्रेन विवाद में अमेरिका का क्या काम ? ऐसे समझिए युद्ध की आशंका की असली वजह
वैसे, किसी संप्रभु राष्ट्र पर आक्रमण को भारत में समर्थन नहीं मिलता क्योंकि भारतीय क्षेत्र में चीन के अतिक्रमण पर गुस्सा पहले से रहा है। अब तक भारत की विदेश नीति भले ही कुछ अलग रही हो लेकिन आगे भारत को मॉस्को के लिए कुछ कहना ही होगा।
मौजूदा हालात क्या हैं?
रूसी संसद ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को देश से बाहर सेना के प्रयोग की अनुमति दे दी है। ऐसे में यूक्रेन के मुद्दे पर मॉस्को और पश्चिमी देशों के बीच गतिरोध बढ़ गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और यूरोपीय नेताओं ने इसके जवाब में रूस के बड़े व्यवसायियों और बैंकों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। बाइडन और पुतिन ने संकेत दिया है कि यह गतिरोध आगे और बढ़ सकता है। पुतिन, यूक्रेन पर डेढ़ लाख सैनिकों के साथ हमला करने को तैयार हैं और बाइडन ने अभी तक रूस को आर्थिक रूप से अधिक नुकसान पहुंचाने वाले प्रतिबंध नहीं लगाए हैं।
(लेखक विदेश मामलों की जानकार हैं)
रूस के टॉप सुरक्षा अधिकारियों के साथ लाइव मीटिंग में पुतिन को संबोधित करते हुए दुनिया ने देखा। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंध सीमित हो सकते हैं क्योंकि रूसी सैनिक ऐसे क्षेत्र में हैं जो फिलहाल मॉस्को के नियंत्रण में है। रूस पहले से ही काफी अलर्ट है और अमेरिका इस इंतजार में है कि रूस आगे कोई बड़ा उकसाने वाला कदम उठाए। वास्तव में, इस समय कोई भी अगला कदम उठाना नहीं चाहता। ऐसे में दुनिया के देशों की नजरें इस हफ्ते अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन और रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के बीच होने वाली मुलाकात पर थीं लेकिन वह रद्द हो गई है।
रूस की कार्रवाई दिखाती है कि वह मौजूदा संकट के समाधान के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाने को लेकर गंभीर नहीं है। इसलिए मैंने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ बृहस्पतिवार को होने वाली बैठक रद्द कर दी है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र की स्वतंत्रता को मान्यता देने का निर्णय अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन
रूस पर प्रतिबंध लगेंगे!
अगर तनाव बढ़ता है तो भारत समेत पूरी दुनिया प्रभावित हो सकती है। कुछ संभावनाएं ज्यादा चिंता पैदा करती हैं। रूस गिरावट की ओर जा रही अपनी अर्थव्यवस्था और पावर को जोखिम में डाल रहा है क्योंकि उस पर प्रतिबंध लग सकते हैं। इसके बाद उसके लिए अपमानजनक हालत बन जाएंगे। रिपोर्ट बता रही हैं कि यूक्रेन के लोग पहले से कहीं ज्यादा एकजुट हैं और वे रूस को खदेड़ना चाहते हैं।
काला सागर के इलाके पर क्या-क्या कर सकते हैं पुतिन?
लेकिन रूस बिना आक्रमण किए ही बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकता है। इसका असर न सिर्फ यूक्रेन बल्कि पूर्वी और मध्य यूरोप में हो सकता है। अगर काला सागर क्षेत्र में तनाव बढ़ता है तो सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती हैं। रूस ने 2015 में यूक्रेन के पावर ग्रिड को निशाना बनाया था और पिछले हफ्ते भी बड़े पैमाने पर साइबर अटैक हुए। ये हमले दूसरे देशों में भी हो सकते हैं। मॉस्को सबमरीन इंटरनेट केबल्स काट सकता है जिससे दुनियाभर में कम्युनिकेशन उसके घुटनों पर आ जाएगा। इतना ही नहीं, यूक्रेन-रूस से गेंहू और दूसरे अनाज के निर्यात में भी सुस्ती देखी जा सकती है।
चीन को संदेशदे रहा अमेरिका
उधर, अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी तकलीफदेह विदाई को भूल रूसी आक्रमण पर तेवर दिखा रहा है। इसके जरिए उसकी मंशा चीन को संदेश देने की भी है। दरअसल, अमेरिका यूक्रेन के उदाहरण के जरिए चीन को चेतावनी देना चाहता है कि वह ताइवान में अपनी हरकतों से बाज आए। इसके साथ ही अमेरिका यूरोप का प्रमुख सुरक्षा गारंटर भी बने रहना चाहता है।
क्या-क्या कर सकता है अमेरिका
अपनी आर्थिक ताकत और डॉलर के स्टेटस की बदौलत अमेरिका रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा सकता है जिसमें एक बड़ा कदम रूस को ग्लोबल स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से बाहर करने का भी है। इसके साथ ही उसका CAATSA प्रतिबंध भी गैर नाटो देशों के लिए मुसीबत पैदा कर सकता है। लेकिन अगर तनाव बढ़ता है तो राजनीतिक रूप से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को बहुत कुछ गंवाना भी पड़ेगा। प्रतिबंध लगने से तेल की कीमतें बढ़ेंगी और पहले से ही महंगाई झेल रहे अमेरिका में हालात और खराब हो सकते हैं।
अमेरिका और पश्चिमी प्रतिबंधों के दुनियाभर में कई अनचाहे नतीजे भी देखने को मिल सकते हैं। फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, पोलैंड सभी के अपने हित हैं। तनाव बढ़ने पर यूरोप तेल कीमतों को गंवा सकता है जो 100 डॉलर प्रति बैरल पहुंच रहा है और अगर नॉर्ड स्ट्रीम का कनेक्शन टूटता है या रूस अपनी गैस सप्लाई को बंद कर देता है तो ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है।
अब भारत की बात और पाकिस्तान ऐंगल भी समझिए
भारत की बात करें तो उसके लिए अलग स्थिति पैदा हो गई है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोमवार को दिए बयान में भारत ने ‘क्षेत्रीय अखंडता’ शब्द का जिक्र नहीं किया जो कि एक तय लाइन है और पीओके से होते हुए चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट की बात जब भी होती है तो यह बार-बार कहा जाता है। भारत और रूस के कुछ लोगों का कहना है कि पुतिन अपने पड़ोस में ‘एक और पाकिस्तान’ नहीं बनने देना चाहते। लेकिन रूस वही कर रहा है जैसा पाकिस्तान अफगानिस्तान में करता आया है। तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो भारत भी प्रभावित होगा। अगर पूरी तरह से प्रतिबंध लगते हैं तो भारत के लिए मुश्किल स्थिति बन सकती है। रूस से जुड़े भारत के ऊर्जा हित प्रभावित हो सकते हैं और नई दिल्ली के लिए अमेरिका की काट्सा छूट हासिल कर पाना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा।
Russia Ukraine Conflict: रूस-यूक्रेन विवाद में अमेरिका का क्या काम ? ऐसे समझिए युद्ध की आशंका की असली वजह
वैसे, किसी संप्रभु राष्ट्र पर आक्रमण को भारत में समर्थन नहीं मिलता क्योंकि भारतीय क्षेत्र में चीन के अतिक्रमण पर गुस्सा पहले से रहा है। अब तक भारत की विदेश नीति भले ही कुछ अलग रही हो लेकिन आगे भारत को मॉस्को के लिए कुछ कहना ही होगा।
मौजूदा हालात क्या हैं?
रूसी संसद ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को देश से बाहर सेना के प्रयोग की अनुमति दे दी है। ऐसे में यूक्रेन के मुद्दे पर मॉस्को और पश्चिमी देशों के बीच गतिरोध बढ़ गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और यूरोपीय नेताओं ने इसके जवाब में रूस के बड़े व्यवसायियों और बैंकों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। बाइडन और पुतिन ने संकेत दिया है कि यह गतिरोध आगे और बढ़ सकता है। पुतिन, यूक्रेन पर डेढ़ लाख सैनिकों के साथ हमला करने को तैयार हैं और बाइडन ने अभी तक रूस को आर्थिक रूप से अधिक नुकसान पहुंचाने वाले प्रतिबंध नहीं लगाए हैं।
(लेखक विदेश मामलों की जानकार हैं)