आज है वीर सावरकर की जंयती, हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने में रहा बड़ा योगदान

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ब्रिटिश राज में हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा को प्रबलता से उठाने वाले विनायक दामोदर सावरकर की आज 136वीं जयंती है। उनका जन्म 28 मई 1883 में तत्कालीन बंबई के नासिक के भागुर गांव में हुआ था। उन्हें वीर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन को राष्ट्रवाद के नाम पर समर्पित कर दिया। आज़ादी के बाद के दिनों में हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने में वीर सावरकर का अतुलनीय योगदान माना जाता है। उन्होंने 1857 के स्वत्रंता संग्राम पर ‘’द फर्स्ट वॉर ऑफ इंडेपेन्डेन्स’’ की भी लिखी।

हिन्दू राष्ट्रवादी रहे

वीर सावरकर को बचपन से ही हिन्दू शब्द से गहरा लगाव था और वह ज़िन्दगीभर हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिए काम करते रहे। वीर सावरकर को 20वीं सदी का सबसे बड़ा हिन्दूवादी माना जाता है और उन्हें छः  बार अखिल भारत हिंदू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना गया। 1937 में उन्हें हिंदू महासभा का अध्यक्ष चुना गया, जिसके बाद 1938 में हिंदू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया। बता दें कि हाल में निलंजन मुखोपाध्याय ने ‘’द आरएसएस आइकॉन्स ऑफ इंडियन राइट’’ किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने 11 हिन्दू राष्ट्रवादी नेताओं की जीवनी लिखी है। उनमें वीर सावरकर की भी जीवनी है।

काला पानी की हुई सज़ा

वीर सावरकर को नासिक ज़िले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के तहत 7 अप्रैल,1911 को  काला पानी की सज़ा सुनाई गई और अंडमान द्वीप में मौजूद सेलुलर जेल में भेजा गया। वीर सावरकर कहते थे कि यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतना काम करने के बावजूद भी भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। सावरकर 4 जुलाई 1911से 21 मई 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे।