The Kashmir Files : मुझे आज भी याद है दहशत और दर्द की वो डरावनी रात | The Kashmir Files kashmiri pandits Pain of a daughter | Patrika News

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The Kashmir Files : मुझे आज भी याद है दहशत और दर्द की वो डरावनी रात | The Kashmir Files kashmiri pandits Pain of a daughter | Patrika News

The Kashmir Files : मुझे आज भी याद है दहशत और दर्द की वो डरावनी रात | The Kashmir Files kashmiri pandits Pain of a daughter | Patrika News

The Kashmir Files : कश्मीर की एक बेटी का दर्द

जयपुर

Updated: March 14, 2022 01:33:20 pm

जयपुर। अपनी मिट्टी की वो सोंधी खुशबू, हवाओं की वो ताजगी, बागों की हरियाली, सुकून का वो आशियाना, खुशियां-हंसी-संपन्नता और हमारी आत्मा, सब हमसे एक ही रात में छीन लिया गया। हमारी चीखें-दर्द बंदूकों के शोर में दब गया। आज भी जब कश्मीर छोड़ने की वो रात याद करती हूं तो आंसू बह निकलते हैं, हाथ-पैर मानों सुन्न हो जाते हैं, दिल की धड़कने तेज हो जाती हैं। दहशत भरे वो दिन आज भी दिल को दर्द देते हैं। हमारे साथ जो हुआ, उसका एहसास किसी को नहीं था, लेकिन आज एक फिल्म के कारण दुनिया हमारा दर्द-पीड़ा जान रही है। मैं इंदू कौल एक कश्मीरी पंडित हूं और आज भी अपनी उस स्वर्ग सी जमीं को उतना ही प्यार करती हूं…याद करती हूं।

The Kashmir Files : मुझे आज भी याद है दहशत और दर्द की वो डरावनी रात

मानों किसी ने शरीर से आत्मा निकाल ली हो मैं तब आठवीं क्लास में पढ़ती थी। धरती के स्वर्ग में जीवन बहुत ही खुशहाल था। चारों ओर हरियाली की चादर ओढ़े पहाड़ और उनका श्रृंगार करती बर्फ। साफ पानी के चश्मे, झरने… स्वर्ग सा हमारा कश्मीर। हर आम बच्चे की तरह मैं भी अपने भाइयों के साथ स्कूल जाती थी। स्कूल से लौटने पर मैं अपने भाइयों के साथ कभी हमारे अखरोठ के बाग में दौड़ लगाती तो कभी सेब के बागों में खेलती। लेकिन इन खुशियों को दहशतगर्दें की नजर लग गई। एक दिन ऐसा आया जब हमें फरमान सुना दिया गया कि या तो कश्मीर छोड़ों या फिर जान से जाओ। मेरे माता-पिता को सबसे ज्यादा चिंता थी तो हम बहन-भाइयों की। मुझे लेकर चिंता और भी ज्यादा थी। हमारे आस-पास रहने वाले हिंदू परिवार घर छोड़कर जाने लगे। उस समय उम्र छोटी थी, लेकिन परिवार में फैली उस दहशत और चिंता को मैं समझ पा रही थी। पुरखों की विरासत, पुश्तैनी बंगले, बीघाओं में फैले बाग एक ही दिन में छोड़कर जाना आसान नहीं था। लगभग सभी हिंदू परिवारों के सामने यही दुविधा थी, लेकिन परिवार को बचाना सभी की प्राथमिकता थी। 1990 में वो रात आई जब पापा ने बोला, अब कश्मीर में और नहीं रुक सकते। रात के करीब ग्यारह बजे थे। पापा ने मम्मी को कहा, दो घंटे में ही निकलना है, जो हो सके साथ ले लो। पापा की ये बात सुन कर हम सन्न रह गए। जैसे किसी ने शरीर से आत्मा को अलग करने का फैसला सुना दिया हो। मां ने हिम्मत जुटाई और जो हाथ आया वो लेकर हम जम्मू रवाना हो गए।

हम स्वर्ग से सीधे नरक में जा पहुंचे थे आगे क्या होने वाला था ये हमें नहीं पता था। सभी के मन में आशंका थी कि जम्मू जिंदा पहुंचेंगे भी या नहीं। क्योंकि हिंदुओं के साथ हुई बर्बरता के कई मामले हमने देखे और सुने थे। कई परिवारों को तो कश्मीर छोड़ने के दौरान ही निशाना बना लिया गया था। वो रास्ता हमने जिस डर में पार किया, वो शब्दों में बताना मुश्किल है। खैर, ईश्वर ने साथ दिया और हम जम्मू पहुंच गए। अपने तीन मंजिला बंगले को छोड़कर अब हम जम्मू के एक शरणार्थी कैंप के टेंट में आ चुके थे। मुझे आज भी याद है, जब बारिश आती थी तो मेरे पापा और बड़े भाई रातभर डंडे से टेंट को उठाकर रखते थे, जिससे पानी अंदर न आ जाए। यहां शौचालय तक की सुविधा नहीं थी। स्वर्ग से सीधे हम नरक में जा पहुंचे थे। मुझे आज भी याद है हमारे घर में आने-जाने वालों की मां खूब खातिरदारी करती थीं, घर में तरह-तरह के पकवान बनते ही रहते थे। लेकिन इस शरणार्थी कैंप में हमारे पास कुछ नहीं था। जैसे-तैसे पापा ने जम्मू में एक कमरा किराए पर लिया। कश्मीर में हमारे दो बंगले थे। लेकिन अब हमारा पूरा परिवार इस एक कमरे में रहने लगा, हमारी रसोई भी यही थी और बैडरूम भी।

आज भी दिल में है गम अब हमारे सामने चुनौती थी जिंदगी फिर से शुरू करने की, गम भुलाने की इसलिए नहीं कहूंगी, क्योंकि वो दर्द आज भी हर कश्मीरियों के दिल में है। पापा ने पीडब्ल्यूडी में नौकरी करना शुरू किया। हालात कुछ ठीक होने लगे, लेकिन शायद ही ऐसा कोई दिन होता था, जब हमें कश्मीर और हमारा घर याद न आता हो। अब हम मानसरोवर में रहते हैं, लेकिन आज भी हर त्योहार पर कश्मीर की याद आती है।

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