Sri Lanka Crisis: असम के जंगलों में आर्मी ट्रेनिंग, चेन्नई से पढ़ाई, प्रभाकरण के LTTE को कुचला और अब श्रीलंका में इमरजेंसी लगाई, जानिए गोटबाया राजपक्षे को

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Sri Lanka Crisis: असम के जंगलों में आर्मी ट्रेनिंग, चेन्नई से पढ़ाई, प्रभाकरण के LTTE को कुचला और अब श्रीलंका में इमरजेंसी लगाई, जानिए गोटबाया राजपक्षे को

Sri Lanka Crisis: असम के जंगलों में आर्मी ट्रेनिंग, चेन्नई से पढ़ाई, प्रभाकरण के LTTE को कुचला और अब श्रीलंका में इमरजेंसी लगाई, जानिए गोटबाया राजपक्षे को

कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में उत्पन्न आर्थिक संकट के कारण जनता के विद्रोह पर काबू पाने के लिए आपाताकाल की घोषणा कर दी है। दूसरी तरफ सरकार के सभी मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया है। दिलचस्प बात यह है कि गोटबाया का पूरा परिवार ही सरकार में है। गोटबाया के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे तो प्रधानमंत्री ही हैं। बाकी दो भाई, चमल और बेजिल राजपक्षे समेत परिवार के कई लोग सरकार में शीर्ष पदों पर थे। गोटबाया 2019 का चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बने थे। वो श्रीलंका का पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनका राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है। गोटबाया मूलतः सैनिक रहे हैं जिन्हें लिट्टे उग्रवादियों के सफाये का श्रेय दिया जाता है।

भारत, अमेरिका, पाकिस्तान में ली मिलिट्री ट्रेनिंग

गोटबाया राजपक्षे का जन्म 20 जून, 1949 को एक बौद्ध सिंहली परिवार में हुआ था। मतारा जिले के पलतुवा में पैदा हुए गोटबाया कुल नौ भाई-बहनों में पांचवें स्थान पर हैं। पिता डीए राजपक्षे 18 वर्ष तक श्रीलंकाई संसद के सदस्य रहे थे। गोटबाया ने कोलंबो के आनंद कॉलेज से सेकंड्री एजुकेशन पूरा करने के बाद 1971 में श्रीलंकाई आर्मी जॉइन कर ली। आर्मी में सर्विस के दौरान गोटबाया ने यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से डिफेंस स्टडीज में मास्टर्स डिग्री ली और भारत, अमेरिका और पाकिस्तान में एडवांस्ड मिलिट्री ट्रेनिंग ली।

असम के जंगलों में ली स्पेशल ट्रेनिंग

गोटबाया ने 1983 में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से डिफेंस स्टडीज में मास्टर्स डिग्री ली। उससे पहले उन्होंने वेलिंगटन के डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज से कमांड एंड स्टाफ कोर्स पूरी कर ली थी। यह वही दौर था जब श्रीलंका में प्रभाकरण की अगुवाई में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम (LTTE) यानी लिट्टे ने पांव पसारना शुरू कर दिया। सिंहली बहुल देश में तमिल अल्पसंख्यक थे और दोनों के बीच अधिकारों का संघर्ष छिड़ा था। 1983 में लिट्टे ने 13 सैनिकों की हत्या कर दी। तीन साल पहले 1980 में असम के जंगल वॉरफेयर स्‍कूल से किया गया उग्रवाद विरोधी सैन्य अभ्यास (Counter Insurgency Military Training) गोटबाया को लिट्टे के खिलाफ रणनीति बनाने में बड़ा कारगर साबित हुआ।

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लिट्टे पर कहर बनकर बरपे गोटबाया

पढ़ाई और ट्रेनिंग पूरी करने के बाद गोटाबाया जब 1984 में श्रीलंका लौटे तो उन्हें गजाबा रेजीमेंट की पहली बटालियन का कमांड सौंप दिया गया। यही बटालियन जाफना में तैनात किया गया था जो तमिल विद्रोहियों के संगठन लिट्टे का मुख्यालय था। 1985 आते-आते तमिल विद्रोह उफान पर आ गया। उस पर नियंत्रण पाने की जिम्मेदारी भी गोटबाया की बटालियन को ही मिली। गोटबाया ने ऑपरेशन लिब्रेशन के तहत विद्रोहियों पर कहर ढा दिया और 1987 आते-आते लिट्टे का वादरमाराची से सफाया हो गया जहां उसका काफी प्रभाव था। बाद में उन्होंने मार्क्सवादी सिंहली विद्रोह को भी दबाया।

1991 में छोड़ी आर्मी और IT डिग्री लेकर की नौकरियां

गोटबाया ने 1991 में सेना से रिटायरमेंट ले लिया और कोलंबो स्थित जनरल सर जॉन कोटेलावल डिफेंस यूनिवर्सिटी से डिप्टी कमांडमेंट की जिम्मेदारी संभाली। अगले वर्ष उन्होंने कोलंबो यूनिवर्सिटी से सूचना तकनीक (IT) में मास्टर्स डिग्री ली और शहर की एक आईटी कंपनी में नौकरी करने लगे। 1998 में वो अमेरिका चले गए और लॉस एंजलिस स्थित लोयोला लॉ स्कूल में एक आईटी प्रफेशनल के रूप में नौकरी की। 2003 में वो अमेरिकी नागरिक बन गए। लेकिन 2005 में वो फिर से श्रीलंका लौट गए। उसी वर्ष उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे थे। गोटबाया ने चुनाव प्रचार में भाई का साथ दिया और फिर जीत मिल गई।

2005 में रक्षा सचिव बने और लिट्टे पर की कड़ी कार्रवाई

राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने छोटे भाई गोटबाया को रक्षा मंत्रालय का सचिव नियुक्त कर दिया। यह जिम्मेदारी निभाते हुए उन्होंने तमिल विद्रोहियों के प्रति रणनीतिक कार्रवाई की जिसका परिणाम हुआ कि वर्ष 2009 में लिट्टे चीफ प्रभाकरण मारा गया और करीब तीन दशकों का संघर्ष खत्म हो गया। उससे पहले, दिसंबर 2006 में गोटबाया तमिल टाइगर के आत्मघाती हमले में बाल-बाल बच गए थे।

गोटबाया पर वॉर क्राइम का आरोप

तमिल विद्रोह को कुचलने के क्रम में गोटबाया पर ‘वॉर क्राइम’ का आरोप लगा। कहा जाता है कि लिट्टे को खत्म करने के लिए चली आखिरी दौर की लड़ाई में 40 हजार अल्पसंख्यक तमिल मारे गए। सशस्त्र विद्रोह के पूरे तीन दशक में हुई हत्याओं का यह आधा आंकड़ा है। लड़ाई खत्म होने के बाद तमिल अल्पसंख्यकों पर हुए अत्याचार के सबूत भी सामने आए। उनमें कई तरह के अत्याचारों के लिए गोटबाया को जिम्मेदार माना जाता है।

2019 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बन गए गोटबाया

बहरहाल, 2015 में महिंदा राजपक्षे भ्रष्टाचार, वंशवाद, तानाशाही आदि के आरोप मेंराष्ट्रपति का चुनाव हार गए तो गोटबाया को भी नौकरी छोड़नी पड़ी। फिर 2019 के अगले चुनाव में महिंदा ने जनता का मूड भांपते हुए खुद की जगह गोटबाया को कैंडिडेट बना दिया। गोटबाया चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बन गए और उन्होंने महिंदा को प्रधानमंत्री बना दिया। फिर तो उनके परिवार के कई सदस्य सरकार के शीर्ष पदों पर तैनात कर दिए गए।

कैबिनेट भंग कर दी, लेकिन खुद नहीं दिया इस्तीफा

गोटबाया राजपक्षे की सरकार ने ही विकास कार्यों के लिए चीन से काफी लोन लिए, लेकिन उस पैसे का बंदरबांट हो गया। हालत यह हो गई कि जब लोन चुकता नहीं हो सका तो चीन ने हम्बनटोटा बंदरगाह पर कब्जा कर लिया। आज श्रीलंका की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि डीजल-पेट्रोल और दैनिक जरूरतों की कई वस्तुएं मयस्सर नहीं हो पा रही हैं। देश में 13 घंटे बिजली नहीं मिल रही है। जनता सड़कों पर उतरने लगी तो राजपक्षे सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी। फिर भी जनता का आक्रोश नहीं थमता देख सरकार ने कैबिनेट भंग कर दिया जिसमें राजपक्षे परिवार के कई सदस्य थे। हालांकि, गोटबाया अब भी श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं और उनके भाई महिंदा प्रधानमंत्री।



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