Sri Lanka Clash : श्रीलंका की आग क्या भारत के तट तक पहुंच जाएगी? सबसे बड़ी चिंता की वजह समझिए

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Sri Lanka Clash : श्रीलंका की आग क्या भारत के तट तक पहुंच जाएगी? सबसे बड़ी चिंता की वजह समझिए

Sri Lanka Clash : श्रीलंका की आग क्या भारत के तट तक पहुंच जाएगी? सबसे बड़ी चिंता की वजह समझिए

नई दिल्ली: भारत का पड़ोसी मुल्क श्रीलंका सुलग रहा है। 1948 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद यह खूबसूरत देश सबसे गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। यहां गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गई है। प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनके पैतृक घर में आग लगा दी गई। राजधानी कोलंबो की सड़कों पर सेना उतार दी गई है। देश में सरकार समर्थकों और विरोधियों के बीच झड़प में सत्तारूढ़ पार्टी के एक सांसद सहित 8 लोगों की मौत हो चुकी। कर्फ्यू बुधवार सुबह सात बजे तक बढ़ा दिया गया है। सभी पुलिसकर्मियों की छुट्टियां अगले आदेश तक रद्द कर दी गई हैं। महिंदा राजपक्षे के समर्थकों द्वारा प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमला किए जाने के बाद पूरे देश में हिंसा भड़क गई है। क्रिकेट, चाय और पर्यटन के लिए दुनियाभर में मशहूर यह द्वीपीय देश अब भारत को भी प्रभावित कर सकता है। जी हां, श्रीलंका में जो कुछ हो रहा है जो आग वहां लग गई है उसकी आंच भारत के तट तक पहुंच सकती है।

पहले इस संकट की वजह जानिए
दरअसल, श्रीलंका का संकट मुख्य रूप से विदेशी मुद्रा की कमी के कारण पैदा हुआ। कोरोना काल में पर्यटन सेक्टर की कमर टूटने और चीन से भारी भरकम कर्ज के तले यह देश ऐसा दबा कि कंगाल हो गया। अब श्रीलंका मुख्य खाद्य पदार्थों और ईंधन के आयात के लिए भुगतान नहीं कर पा रहा। सरकार के पास दूसरे देशों से खरीदारी के लिए पैसा ही नहीं बचा है। भारत मदद कर रहा है लेकिन देश में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। लोगों का गुस्सा भड़का तो हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर आ गए। सरकार समर्थक और विरोधियों में झड़प शुरू हो गई। देश में पहले से ही आपातकाल की घोषणा हो चुकी है।

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श्रीलंका में अचानक ये हालात नहीं बने हैं। पिछले कई महीनों से लोगों की मुश्किलें बढ़ने लगी थीं। भुखमरी और गरीबी से बेहाल श्रीलंकाई तमिल अपने ‘दूसरे घर’ की ओर रुख करने लगे। मार्च-अप्रैल में आए इन तमिलों के लिए तमिलनाडु में शरणार्थी शिविर भी बना दिए गए। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि जिस तरह के हालात श्रीलंका में बने हैं उससे मजबूरन लोग भारत का रुख कर सकते हैं। जी हां, श्रीलंका से वहां के तमिलों का पलायन हो सकता है। मार्च में ही अधिकारियों ने आशंका जताई थी कि 4 हजार से ज्यादा श्रीलंकाई नागरिक भारत आ सकते हैं। अब राजनीतिक अस्थिरता के ताजा हालात में यह आंकड़ा काफी ज्यादा हो सकता है। लोगों की परेशानियों को इसी से समझा जा सकता है कि एलपीजी सिलेंडर की कीमत 5000 रुपये के करीब, 1900 रुपये किलो मिल्क पाउडर, 50 रुपये का एक अंडा हो गया है। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार श्रीलंका के आर्थिक संकट पर नजर रख रही है।

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दरअसल, श्रीलंका के थलाईमन्ना से तमिलनाडु के धनुषकोडी के बीच करीब 30 किमी की दूरी है। इसी रास्ते से अक्सर मछुआरे रास्ता भटक कर श्रीलंका के जलक्षेत्र में पहुंच जाते हैं। भारत को 1983 की तरह शरणार्थी संकट का सामना करना पड़ सकता है। उस समय श्रीलंका से हजारों शरणार्थियों का आना शुरू हो गया था।

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जी हां, साल था 1983, तब तक श्रीलंका का खूंखार संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे का आतंक शुरू हो चुका था। इसी बीच जुलाई के महीने एक रात लिट्टे ने श्रीलंका की सेना पर हमला कर दिया। 13 सैनिक मारे जाते हैं। इस हमले के विरोध में सिंहला समुदाय के लोगों ने तमिलों की हत्या करना शुरू कर दिया। जहां भी तमिल मिलते उन्हें मार दिया जाता। यहां तक कि जेलों में बंद तमिलों को भी मारा गया। ऐसे में जान बचाने के लिए हजारों की संख्या में तमिलों को जान बचाकर देश से भागना पड़ा। वे तलाइमन्नार-धनुषकोडी वाले रास्ते से ही आए थे। लिट्टे के सफाये के बाद भी भारत में करीब एक लाख तमिल शरणार्थी थे। ज्यादातर लोग वापस अपने देश लौट गए लेकिन कुछ अब भारत में तमिलनाडु प्रांत में रहे हैं। वही शरणार्थी संकट फिर से पैदा हो सकता है।


पूर्वज चाय बागानों में काम करने गए श्रीलंका
श्रीलंकाई तमिल मूल रूप से भारतीय मूल के तमिल हैं जिनके पूर्वज एक शताब्दी पहले श्रीलंका के चाय बागानों में काम करने गए थे। 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु के 107 शरणार्थी शिविरों में लगभग 19,000 परिवार हैं जिनमें 60,000 लोग रहते हैं।



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