आजादी के बाद अब तक कितनें किसान आंदोलन हुए हैं

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किसान आंदोलन
किसान आंदोलन

किसान जो सबके लिए अन्न पैदा करता है. उसके हालात हमेशा से दयनीय रहें हैं. भारत का इतिहास चाहे प्राचीन हो या मध्यकाल हो या आधुनिक किसानों की हालात में ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है. भारत की आजादी से पहले जब अंग्रेजो की हुक्कुमत थी. तब भी किसानों की हालता खराब थी तथा आंदोलन किए जाते थें. आजादी के बाद भी किसानों की हालात में ज्यादा सुधार नहीं आया. हालातों से हारकर किसानों के खुदखुशी के मामले सामने आते रहते हैं. आजादी के बाद के मुख्य किसान आंदोलनों को देखते है.

किसान आंदोलन

आजादी के बाद 1987 की बात करें, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के कर्नूखेड़ी गाँव में बिजली घर जल गया. इलाक़े के किसान पहले से ही बिजली संकट का सामना कर रहे थे और इसके कारण उनकों बहुत समस्याएं आ रही थी. इसी समय किसानों के बीच से ही सामने आए एक किसान महेंद्र सिंह टिकैत ने सभी किसानों से बिजली घर के घेराव का आह्वान किया. ये दिन था 1 अप्रैल, 1987 का. इसी आंदोलन के बाद किसानों को अपनी शक्ति और एकता का के बारे में पता चला.

किसान आंदोलन

जनवरी 1988 में किसानों ने अपने नए संगठन भारतीय किसान यूनियन के झंडे तले मेरठ में 25 दिनों का धरना आयोजित किया. इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा मिली. इसमें पूरे भारत के किसान संगठन और नेता शामिल हुए. किसानों की मांग थी कि सरकार उनकी उपज का दाम वर्ष 1967 से तय करे.

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किसान आंदोलन का काला इतिहास भी है, जब मध्यप्रदेश के मंदसौर में 2017 में हुए किसान आंदोलन को लोग अभी भूले नहीं होंगे, जहां पुलिस की गोली से 7 किसानों की मौत हो गई थी. इसी तरह कर्ज माफी और फसलों के डेढ़ गुना ज्यादा समर्थन मूल्य की मांग को लेकर तमिलनाडु के किसानों ने 2017 एवं 2018 में राजधानी दिल्ली में प्रदर्शन किया. क्षेत्र स्तर पर अनेंक किसानों के आंदोलन होते रहे हैं.