Siachin demilitarisation: खाली होगा दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र? सियाचिन से सेना हटाने पर क्या बोला पाकिस्तान h3>
हाइलाइट्स
- सियाचिन से सेना हटाने को लेकर पाकिस्तान ने दिया सकारात्मक संकेत
- 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के जरिए भारतीय सेना ने किया था कब्जा
- भारतीय सेना प्रमुख ने सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया था सियाचिन का जिक्र
इस्लामाबाद: दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन में भारतीय सेना के पराक्रम को देखकर पाकिस्तान डरा हुआ है। यही कारण है कि वह सियाचिन को पूरी तरह से सैनिकों से खाली करने के प्रस्ताव पर भारत के साथ बातचीत को तैयार है। खुद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह भारत के साथ संबंधों को सुधारने और सियाचिन पर बात करने के पक्ष में है। सियाचिन की भीषण ठंड और खतरनाक माहौल में भी भारतीय सेना के हजारों जवान हर समय मुस्तैदी से तैनात रहते हैं। भारतीय सेना ने साल 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के जरिए इस इलाके पर कब्जा जमाया था।
पाकिस्तान ने संभावनाओं को नहीं किया खारिज
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने शुक्रवार को सियाचिन ग्लेशियर से सैनिकों को हटाने की संभावना को खारिज नहीं किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ संबंध सुधारने और सार्थक, रचनात्मक, रिजल्ट देने वाले और लगातार बातचीत करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने दावा किया कि कई मौकों पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इस मामले (संवाद) पर हमारी स्थिति व्यक्त की है। लेकिन भारत ने माहौल को खराब कर दिया है। हमने बार-बार कहा है कि रचनात्मक बातचीत के लिए अनुकूल माहौल के लिए आवश्यक कदम उठाने की जिम्मेदारी भारत की है।
भारतीय सेना प्रमुख के बयान से बढ़ी हलचल
15 जनवरी को भारतीय सेना दिवस से पहले वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय थलसेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा था कि भारत सियाचिन ग्लेशियर से सेना हटाने के खिलाफ नहीं है। पर शर्त यह है कि पाकिस्तान को एक्चुअल ग्राउंड पोजिशन लाइन (एजीपीएल) को स्वीकार करना होगा। 110 किलोमीटर लंबी एजीपीएल भारत और पाकिस्तान को अलग करती है। जनरल नरवणे ने कहा था कि 1984 में सियाचिन में सेना की तैनाती पाकिस्तान के द्वारा यथास्थिति को एकतरफा बदलने के प्रयास का परिणाम था। इसी कारण भारत जवाबी कार्रवाई को मजबूर हुआ था।
1984 से बिना गोली चलाए भारत के 800 से अधिक जवान शहीद
1984 में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत के जरिए सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा किया था। तब से लेकर अब तक बिना एक भी गोली चलाए अत्याधिक ठंड और कठिन इलाके के कारण 800 से अधिक भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए हैं। सियाचिन को खाली करने के लिए पहले भी दोनों देशों की तरफ से कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन पाकिस्तान की हठधर्मिता के कारण यह मुमकिन नहीं हो सका है। दूसरी बड़ी बात यह है कि भारत सरकार और सेना को पाकिस्तान के वादे और दावे पर यकीन नहीं है।
पहले भी हो चुके हैं सियाचिन को खाली करवाने के प्रयास
भारत के पूर्व विदेश सचिव सचिव श्याम सरन ने 2017 में प्रकाशित अपनी किताब में दावा किया था कि दोनों देश 1989, 1992 और 2006 में एक समझौते के करीब आ गए थे। सरन ने अपनी किताब में कहा कि 2006 में तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन और सेना प्रमुख जनरल जे.जे. सिंह ने इस प्रस्ताव को रद्द करने के लिए अंतिम समय में हस्तक्षेप किया था। जिसके बाद सियाचिन को खाली करने का मामला ठंडे बस्ते में चला गया। पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने 2012 में सियाचीन में विनाशकारी हिमस्खलन के बाद भारत के साथ इस इलाके को खाली करने की आवाज उठाई थी। उस समय बर्फ खिसकने से पाकिस्तानी सेना के 124 सैनिक मारे गए थे।
हाइलाइट्स
- सियाचिन से सेना हटाने को लेकर पाकिस्तान ने दिया सकारात्मक संकेत
- 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के जरिए भारतीय सेना ने किया था कब्जा
- भारतीय सेना प्रमुख ने सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया था सियाचिन का जिक्र
पाकिस्तान ने संभावनाओं को नहीं किया खारिज
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने शुक्रवार को सियाचिन ग्लेशियर से सैनिकों को हटाने की संभावना को खारिज नहीं किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ संबंध सुधारने और सार्थक, रचनात्मक, रिजल्ट देने वाले और लगातार बातचीत करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने दावा किया कि कई मौकों पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इस मामले (संवाद) पर हमारी स्थिति व्यक्त की है। लेकिन भारत ने माहौल को खराब कर दिया है। हमने बार-बार कहा है कि रचनात्मक बातचीत के लिए अनुकूल माहौल के लिए आवश्यक कदम उठाने की जिम्मेदारी भारत की है।
भारतीय सेना प्रमुख के बयान से बढ़ी हलचल
15 जनवरी को भारतीय सेना दिवस से पहले वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय थलसेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा था कि भारत सियाचिन ग्लेशियर से सेना हटाने के खिलाफ नहीं है। पर शर्त यह है कि पाकिस्तान को एक्चुअल ग्राउंड पोजिशन लाइन (एजीपीएल) को स्वीकार करना होगा। 110 किलोमीटर लंबी एजीपीएल भारत और पाकिस्तान को अलग करती है। जनरल नरवणे ने कहा था कि 1984 में सियाचिन में सेना की तैनाती पाकिस्तान के द्वारा यथास्थिति को एकतरफा बदलने के प्रयास का परिणाम था। इसी कारण भारत जवाबी कार्रवाई को मजबूर हुआ था।
1984 से बिना गोली चलाए भारत के 800 से अधिक जवान शहीद
1984 में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत के जरिए सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा किया था। तब से लेकर अब तक बिना एक भी गोली चलाए अत्याधिक ठंड और कठिन इलाके के कारण 800 से अधिक भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए हैं। सियाचिन को खाली करने के लिए पहले भी दोनों देशों की तरफ से कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन पाकिस्तान की हठधर्मिता के कारण यह मुमकिन नहीं हो सका है। दूसरी बड़ी बात यह है कि भारत सरकार और सेना को पाकिस्तान के वादे और दावे पर यकीन नहीं है।
पहले भी हो चुके हैं सियाचिन को खाली करवाने के प्रयास
भारत के पूर्व विदेश सचिव सचिव श्याम सरन ने 2017 में प्रकाशित अपनी किताब में दावा किया था कि दोनों देश 1989, 1992 और 2006 में एक समझौते के करीब आ गए थे। सरन ने अपनी किताब में कहा कि 2006 में तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन और सेना प्रमुख जनरल जे.जे. सिंह ने इस प्रस्ताव को रद्द करने के लिए अंतिम समय में हस्तक्षेप किया था। जिसके बाद सियाचिन को खाली करने का मामला ठंडे बस्ते में चला गया। पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने 2012 में सियाचीन में विनाशकारी हिमस्खलन के बाद भारत के साथ इस इलाके को खाली करने की आवाज उठाई थी। उस समय बर्फ खिसकने से पाकिस्तानी सेना के 124 सैनिक मारे गए थे।