क्या शरद पूर्णिमा की रात को खुली छत में सोना चाहिए?

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शारदीय नवरात्रि के खत्म होने के बाद शरद पूर्णिमा आती है। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा मनाई जाती है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के चार माह के शयनकाल का अंतिम चरण होता है। माना जाता है कि इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर रातभर अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करता है।

धार्मिक मान्यता
पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में चंद्रमा की सोलह कलाओं से अमृत वर्षा होने पर ओस के कण के रूप में अमृत बूंदें खीर के पात्र में भी गिरेंगी जिसके फलस्वरूप यही खीर अमृत तुल्य हो जायेगी, जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से प्राणी आरोग्य एवं कांतिवान रहेंगे।

वैज्ञानिक मान्यता
क्या शरद पूर्णिमा की रात को खुली छत में सोने का कोई वैज्ञानिक या धार्मिक मान्यता नहीं है पर शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छिपा है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इसी के चलते सदियों से ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। एक अन्य वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। 

शरद पूर्णिमा पर उपाय
खीर में मिश्रित दूध, चीनी और चावल के कारक भी चंद्रमा ही हैं अतः इनमें चंद्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है जिसके परिणाम स्वरूप किसी भी जातक की जन्म कुंडली में चंद्रमा क्षीण हों, महादशा-अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा चल रही हो या चंद्रमा छठवें, आठवें या बारहवें भाव में हो तो चन्द्रमा की पूजा करते हुए स्फटिक माला से ॐ सों सोमाय मंत्र का जाप करें ऐसा करने से चंद्रजन्य दोष से शान्ति मिलेगी।

शरद पूर्णिमा का महत्व

आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के मध्य जब भगवान विष्णु शयन मुद्रा में होते हैं तो पृथ्वी पर भुखमरी, दरिद्रता व सूखे की देवी ‘अलक्ष्मी’ का साम्राज्य रहता है इन्हीं के साथ प्रलय के अन्य तीन देवता, ज्वर-बुखार जन्य रोंगों के स्वामी रूद्र, भूस्खलन बाढ़ और सूखे के स्वामी वरुण तथा अनेक रोंगों, दुर्घटनाओं एवं अकाल मृत्यु के स्वामी यम का पृथ्वी पर तांडव रहता है। इस अवधि में देवप्राण कमजोर पड़ जाते हैं और आसुरी शक्तियों का वर्चश्व बढ़ जाता है परिणाम स्वरुप पृथ्वी पर अधिक पाप बढ़ जाते हैं।

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