Sharad Pawar News: अडानी मामले पर शरद पवार का रुख, पहली बार नहीं है जब सहयोगियों और सरकार को डाला असमंजस में
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने शनिवार को कहा कि शरद पवार के रुख से महाराष्ट्र के साथ-साथ देशभर में विपक्षी एकता में दरार नहीं आएगी। यह कोई पहला अवसर नहीं है जब पवार ने लगभग छह दशकों के अपने राजनीतिक जीवन में अपने सहयोगियों के साथ-साथ विरोधियों को भी अपने राजनीतिक रुख से परेशान किया हो। ऐसे समय में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी आक्रामक रूप से दिवंगत हिंदुत्व विचारक वी. डी. सावरकर को निशाना बना रहे हैं, तो पवार का कहना है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सावरकर की ओर से किए गए बलिदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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नगालैंड में NDA की सहयोगी सरकार को दिया है समर्थन
पिछले महीने, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को समर्थन देने की घोषणा की थी, जो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा है। एनसीपी ने कहा था कि उसने नगालैंड के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए रियो को समर्थन दिया है। एनसीपी ने महाराष्ट्र में 2004 से 2014 तक कांग्रेस के साथ और फिर नवंबर 2019 से जून 2022 तक उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (अविभाजित) के नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में शामिल होकर सरकार बनाई, जिसमें से कांग्रेस भी एक घटक है।
केरल में NCP वाम लोकतांत्रिक मोर्चे का हिस्सा
एनसीपी गोवा में भी कांग्रेस की सहयोगी है। केरल में, एनसीपी वाम लोकतांत्रिक मोर्चे का हिस्सा है, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे का कट्टर प्रतिद्वंद्वी है। अतीत में, बीजेपी-विरोधी और कांग्रेस-विरोधी मोर्चे के बारे में बात पवार के बिना अधूरी रही है। एक समय चर्चा की थी कि पवार (82) प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस से अलग राह अपना ली। पवार दूसरे दलों के नेताओं के साथ बेहतरीन तालमेल के लिए जाने जाते हैं। 2006 में, जब पवार की बेटी सुप्रिया सुले अपना पहला राज्यसभा चुनाव लड़ रही थीं, तो बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया था।
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मोदी ने बारामती का दौरा कर पवार की तारीफ की
2014 में जब बीजेपी महाराष्ट्र में बहुमत से पीछे रह गई, तो एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने घोषणा की कि पवार के नेतृत्व वाली पार्टी मध्यावधि चुनाव से बचने और राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी का समर्थन करेगी। बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के विश्वास मत साबित करने के दौरान एनसीपी मतदान से दूर रही। बाद में शिवसेना-बीजेपी फिर से एक साथ सरकार बनाने के लिए आगे आईं और फडणवीस ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 2014 में, नरेंद्र मोदी ने लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में पवार के खिलाफ प्रचार किया। उन्होंने एनसीपी को ‘स्वाभाविक रूप से भ्रष्ट पार्टी’ करार दिया था और बारामती में मतदाताओं से पवार परिवार से छुटकारा पाने के लिए कहा था। हालांकि, छह महीने बाद, प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने बारामती का दौरा किया और पवार की तारीफ की।
पवार के कार्यों और भाषणों की मंशा को समझना बहुत मुश्किल
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर कहते हैं कि पवार के कार्यों और भाषणों के पीछे की मंशा को समझना बहुत मुश्किल है। यह कहना मुश्किल है कि वह ऐसा क्यों करते हैं…क्या वह अपना महत्व बनाए रखने के लिए ऐसा करते हैं या कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी करने के लिए? उन्होंने कहा कि एक ओर वह कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा करना चाहते हैं, तो दूसरी ओर उसके साथ रहना चाहते हैं। ये चीजें उनकी विश्वसनीयता को चोट पहुंचाती हैं। 1978 में, पवार अपने समर्थकों के साथ प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट से बाहर निकल गए, जिसके बाद वसंतदादा पाटिल की सरकार गिर गई और वह 38 साल की आयु में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गए। उस समय जनसंघ पीडीएफ का हिस्सा था।
अडानी मुद्दे पर पवार की टिप्पणी से मचा हड़कंप
अडानी मुद्दे पर उनकी टिप्पणी से हड़कंप मच गया है, पवार ने शनिवार को कहा कि वह जेपीसी जांच के पूरी तरह से विरोध में नहीं हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की समिति अधिक उपयोगी और प्रभावी होगी। उन्होंने कहा कि मैं पूरी तरह से जेपीसी का विरोध नहीं कर रहा हूं … जेपीसी पहले भी बनी हैं और मैं कुछ जेपीसी का अध्यक्ष रहा हूं। जेपीसी का गठन (संसद में) बहुमत के आधार पर किया जाता है। जेपीसी के बजाय, मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनी समिति अधिक उपयोगी और प्रभावी है। इंटरव्यू के दौरान पवार ने अडानी समूह का समर्थन किया और समूह के बारे में हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पहले भी अन्य लोगों ने इस तरह के बयान दिए थे और कुछ दिन तक संसद में हंगामा भी हुआ था, लेकिन इस बार मामले को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया गया।