Sharad Pawar: क्या महाराष्ट्र की सियासी हंडिया में कोई नई खिचड़ी पक रही है? पवार की पीएम मोदी से मुलाकात के बाद उठ रहे सवाल h3>
मुंबई: पिछले हफ्ते दिल्ली में शरद पवार की काफी सक्रियता देखी गई। उन्होंने एक डिनर रखा था, जिसमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी शामिल हुए। इसके बाद उनकी अगले दिन प्रधानमंत्री से भी मुलाकात हुई। प्रधानमंत्री से शरद पवार की जब भी मुलाकात होती है, तो अचानक कयासबाजी का दौर बढ़ जाता है। चूंकि इस वक्त महाराष्ट्र के गठबंधन में भी सब कुछ सहज नहीं है, इस वजह से दिल्ली में शरद पवार की सक्रियता ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी।
एनसीपी और बीजेपी के गठबंधन में सरकार बनाने की संभावना इसलिए बनी रहती है कि पिछले साल एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शरद पवार खुद यह बता चुके हैं कि प्रधानमंत्री की ओर से महाराष्ट्र में 2019 में बीजेपी और एनसीपी गठबंधन सरकार बनाने का प्रस्ताव था, जिसे उन्होंने मना कर दिया था।
हालांकि यह बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं है कि प्रधानमंत्री की ओर से उन्हें गठबंधन सरकार बनाने का प्रस्ताव मिला था। न ही यह महत्वपूर्ण है कि उनकी ओर से मना कर दिया गया। महत्वपूर्ण यह था कि बंद कमरे में जो प्रस्ताव मोदी ने उन्हें दिया था, उसे सार्वजनिक करना।
क्या ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ का हिस्सा है मुलाकात?
दरअसल बंद कमरे उस प्रस्ताव को सार्वजनिक करने की पीछे उनकी मंशा यह बताने की थी कि उनके (पवार) पास एक ऐसा भी ‘ऑफर’ है। वैसे पवार को लेकर राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जाता है कि मोदी से उनकी मुलाकात ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ का हिस्सा होती है, जबकि उनकी उनके ही ‘खेमे’ यानी विपक्ष में नहीं सुनी जा रही होती है या उन्हें कुछ मनवाना होता है तो वह मोदी से मुलाकात करने करने पहुंच जाते हैं। तमाम बार वह मोदी से मुलाकात की जो वजह बताते हैं, वह आसानी से इसलिए पचने वाली नहीं होती। कई बार लगता है कि इन वजहों से कोई क्यों प्रधानमंत्री से मुलाकात करेगा?
क्यों बार-बार मिलते हैं मोदी और शरद पवार ?
यह सवाल अपनी जगह कायम है कि आखिर शरद पवार बार-बार नरेंद्र मोदी से मुलाकात क्यों करते हैं। इसके पलट एक सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री बार-बार शरद पवार से मुलाकात के लिए कैसे उपलब्ध हो जाते हैं? शरद पवार को छोड़कर विपक्ष के किसी और नेता की तो प्रधानमंत्री से इस तरह से नियमित मुलाकात नहीं होती।
कहा जाता है कि यह मुलाकात दोनों को भाती है। शरद पवार अपने खेमे में ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ के तहत प्रधानमंत्री से मुलाकात करते रहते हैं तो प्रधानमंत्री शरद पवार से मुलाकात कर विपक्ष के खेमे में सहजता पैदा नहीं होने देते हैं।
विपक्ष पर इस मुलाकात का क्या होता है असर?
विपक्ष में शरद पवार ही वह शख्सियत हैं जिनको लेकर कहा जाता है कि वह यूपीए का नेतृत्व कर सकते हैं। लेकिन मोदी से मुलाकात के बाद विपक्ष में पवार को लेकर अविश्वास की खाई और चौड़ी हो जाती है। यूपीए के कई घटक दल ऐसे हैं, जो पवार पर जब भी भरोसा करने की ओर एक कदम बढ़ा ही रहे होते हैं, तब ऐसी मुलाकात उस भरोसे को पांच कदम पीछे भी कर देती है।
एक प्रमुख दल के नेता ने दिल्ली में मीडिया के साथ अनौपचारिक बातचीत में कहा भी था कि ‘पवार को यूपीए का सर्वमान्य नेता बनने के लिए यह भरोसा देना होगा कि कुछ भी हो जाए, वह बीजेपी के साथ नहीं जा सकते। आज की तारीख में एनसीपी और बीजेपी के बीच ऐसे रिश्ते हैं, जिसमें हर वक्त 50-50 की गुंजाइश बनी रहती है।’
पवार की सक्रियता के पीछे क्या है वजह?
शरद पवार की हालिया सक्रियता को महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को खतरा नहीं बताया जा रहा है। पवार की सक्रियता फिलहाल अपनी पार्टी के नेताओं को ईडी के शिकंजे से बचाने को लेकर है। ईडी का शिकंजा एनसीपी पर बढ़ता जा रहा है, उसके दो प्रमुख नेता जेल में हैं, लगभग एक दर्जन दूसरे नेताओं के खिलाफ जांच जारी है। देर सबेर उन सभी को भी जेल जाना पड़ सकता है। इस वजह से पार्टी पर बढ़ते संकट को उनके लिए खत्म कराना जरूरी हो गया है।
संकट को खत्म कराने के लिए पवार बीजेपी के साथ अपने रिश्तों का इस्तेमाल करना चाह रहे हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने ‘बीच का रास्ता’ निकालने का सुझाव भी दिया है। बीच का रास्ता यह हो सकता है कि अगर ईडी एनसीपी नेताओं पर चल रही जांच को ठंडे बस्ते में डाल दे, तो एनसीपी भी बीजेपी के खिलाफ हमलावर तेवर छोड़ देगी।
क्या कोई सहमति बनती दिख रही है?
हालांकि इस मुद्दे पर किस हद तक सहमति बनी, यह यकीनी तौर पर तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन गडकरी को लेकर कहा जा रहा है कि उन्होंने भरोसा दिया है कि वह कोई रास्ता निकलवाते हैं। यह कहा जाता है कि प्रधानमंत्री ने भी पवार के साथ मुलाकात में यह भरोसा दिया था कि राजनीतिक कारणों से किसी को परेशान करने का उनकी सरकार का कोई इरादा नहीं है।
मुलाकात की एक दूसरी वजह यह भी कही जा रही है कि जुलाई और अगस्त महीने में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं। प्रधानमंत्री की कोशिश विपक्ष के साथ आम सहमति बनाने की है। ऐसे वह कौन से नाम हो सकते हैं, जिन पर विपक्ष साथ आ सकता है, इसके लिए पवार को मध्यस्थ बनाना चाहते हैं। उपराष्ट्रपति पद किसी गैर बीजेपी नेता को भी दिया जा सकता है।
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हालांकि यह बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं है कि प्रधानमंत्री की ओर से उन्हें गठबंधन सरकार बनाने का प्रस्ताव मिला था। न ही यह महत्वपूर्ण है कि उनकी ओर से मना कर दिया गया। महत्वपूर्ण यह था कि बंद कमरे में जो प्रस्ताव मोदी ने उन्हें दिया था, उसे सार्वजनिक करना।
क्या ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ का हिस्सा है मुलाकात?
दरअसल बंद कमरे उस प्रस्ताव को सार्वजनिक करने की पीछे उनकी मंशा यह बताने की थी कि उनके (पवार) पास एक ऐसा भी ‘ऑफर’ है। वैसे पवार को लेकर राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जाता है कि मोदी से उनकी मुलाकात ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ का हिस्सा होती है, जबकि उनकी उनके ही ‘खेमे’ यानी विपक्ष में नहीं सुनी जा रही होती है या उन्हें कुछ मनवाना होता है तो वह मोदी से मुलाकात करने करने पहुंच जाते हैं। तमाम बार वह मोदी से मुलाकात की जो वजह बताते हैं, वह आसानी से इसलिए पचने वाली नहीं होती। कई बार लगता है कि इन वजहों से कोई क्यों प्रधानमंत्री से मुलाकात करेगा?
क्यों बार-बार मिलते हैं मोदी और शरद पवार ?
यह सवाल अपनी जगह कायम है कि आखिर शरद पवार बार-बार नरेंद्र मोदी से मुलाकात क्यों करते हैं। इसके पलट एक सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री बार-बार शरद पवार से मुलाकात के लिए कैसे उपलब्ध हो जाते हैं? शरद पवार को छोड़कर विपक्ष के किसी और नेता की तो प्रधानमंत्री से इस तरह से नियमित मुलाकात नहीं होती।
कहा जाता है कि यह मुलाकात दोनों को भाती है। शरद पवार अपने खेमे में ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ के तहत प्रधानमंत्री से मुलाकात करते रहते हैं तो प्रधानमंत्री शरद पवार से मुलाकात कर विपक्ष के खेमे में सहजता पैदा नहीं होने देते हैं।
विपक्ष पर इस मुलाकात का क्या होता है असर?
विपक्ष में शरद पवार ही वह शख्सियत हैं जिनको लेकर कहा जाता है कि वह यूपीए का नेतृत्व कर सकते हैं। लेकिन मोदी से मुलाकात के बाद विपक्ष में पवार को लेकर अविश्वास की खाई और चौड़ी हो जाती है। यूपीए के कई घटक दल ऐसे हैं, जो पवार पर जब भी भरोसा करने की ओर एक कदम बढ़ा ही रहे होते हैं, तब ऐसी मुलाकात उस भरोसे को पांच कदम पीछे भी कर देती है।
एक प्रमुख दल के नेता ने दिल्ली में मीडिया के साथ अनौपचारिक बातचीत में कहा भी था कि ‘पवार को यूपीए का सर्वमान्य नेता बनने के लिए यह भरोसा देना होगा कि कुछ भी हो जाए, वह बीजेपी के साथ नहीं जा सकते। आज की तारीख में एनसीपी और बीजेपी के बीच ऐसे रिश्ते हैं, जिसमें हर वक्त 50-50 की गुंजाइश बनी रहती है।’
पवार की सक्रियता के पीछे क्या है वजह?
शरद पवार की हालिया सक्रियता को महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को खतरा नहीं बताया जा रहा है। पवार की सक्रियता फिलहाल अपनी पार्टी के नेताओं को ईडी के शिकंजे से बचाने को लेकर है। ईडी का शिकंजा एनसीपी पर बढ़ता जा रहा है, उसके दो प्रमुख नेता जेल में हैं, लगभग एक दर्जन दूसरे नेताओं के खिलाफ जांच जारी है। देर सबेर उन सभी को भी जेल जाना पड़ सकता है। इस वजह से पार्टी पर बढ़ते संकट को उनके लिए खत्म कराना जरूरी हो गया है।
संकट को खत्म कराने के लिए पवार बीजेपी के साथ अपने रिश्तों का इस्तेमाल करना चाह रहे हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने ‘बीच का रास्ता’ निकालने का सुझाव भी दिया है। बीच का रास्ता यह हो सकता है कि अगर ईडी एनसीपी नेताओं पर चल रही जांच को ठंडे बस्ते में डाल दे, तो एनसीपी भी बीजेपी के खिलाफ हमलावर तेवर छोड़ देगी।
क्या कोई सहमति बनती दिख रही है?
हालांकि इस मुद्दे पर किस हद तक सहमति बनी, यह यकीनी तौर पर तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन गडकरी को लेकर कहा जा रहा है कि उन्होंने भरोसा दिया है कि वह कोई रास्ता निकलवाते हैं। यह कहा जाता है कि प्रधानमंत्री ने भी पवार के साथ मुलाकात में यह भरोसा दिया था कि राजनीतिक कारणों से किसी को परेशान करने का उनकी सरकार का कोई इरादा नहीं है।
मुलाकात की एक दूसरी वजह यह भी कही जा रही है कि जुलाई और अगस्त महीने में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं। प्रधानमंत्री की कोशिश विपक्ष के साथ आम सहमति बनाने की है। ऐसे वह कौन से नाम हो सकते हैं, जिन पर विपक्ष साथ आ सकता है, इसके लिए पवार को मध्यस्थ बनाना चाहते हैं। उपराष्ट्रपति पद किसी गैर बीजेपी नेता को भी दिया जा सकता है।
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